धूमिल हुए ब्रॉडगेज ट्रेन में सफर के सपने

By: Dec 6th, 2018 12:07 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

जोगिंद्रनगर-पठानकोट रेल ट्रैक के हवाई सर्वेक्षण के बाद उनकी उसे ब्रॉडगेज में न बदलने की घोषणा चौंकाने वाली है। बेहतर होता पहले वे कांगड़ा-चंबा और मंडी संसदीय क्षेत्रों के अपने सांसदों से राय-मशविरा कर लेते और एक कमेटी द्वारा पुनः इस रेलमार्ग के ब्रॉडगेज में बदलने की संभावनाओं को टटोलते…

हिमाचल प्रदेश में पहाड़ पर रेल चढ़ाने की शुरुआत अंग्रेजों ने कालका-शिमला रेलमार्ग पर 9 नवंबर, 1903 को की थी। यूनेस्को द्वारा इस रेलमार्ग को 24 जुलाई, 2008 से विश्व धरोहर घोषित कर दिया गया है। रोजाना इस ट्रैक पर डेढ़ हजार यात्री सफर करते हैं और पहाड़ की खूबसूरती का नजारा लेते हैं। इसी प्रकार पठानकोट से जोगिंद्रनगर के 181 किलोमीटर लंबे रेलवे ट्रैक का निर्माण 1925 में तत्कालीन अंग्रेज अफसर कर्नल बीसी बैटी की देख-रेख में करवाया गया था, ताकि शानन विद्युत प्रोजेक्ट के लिए लंदन से आई भारी मशीनरी को ट्रेन द्वारा जोगिंद्रनगर तक पहुंचाया जा सके। अब इस रेल ट्रैक के भी विश्व धरोहर में शामिल होने की पूरी संभावना है। पिछले कई वर्षों से हिमाचल प्रदेश की आम जनता और राजनीतिक पार्टियों के नेता बिलासपुर-भानुपल्ली,  चंडीगढ़-बद्दी, नंगल-तलवाड़ा और ऊना-हमीरपुर रेलमार्गों के पूरा होने की आस लगाए बैठे हैं।

पिछले लंबे समय से चीन की ओर से बढ़ती सामरिक चुनौतियों के दृष्टिगत भी पठानकोट-जोगिंद्रनगर रेलवे लाइन को ब्रॉडगेज में बदलकर पहाड़ पर रेल चढ़ाने की मांग की जा रही है। शुक्रवार को रेल मंत्री पीयूष गोयल के कालका-शिमला रेलमार्ग से विस्टाडोम पारदर्शी नए कोच से सोलन तक सवारी करने के बाद उनके द्वारा इस हेरिटेज रेलमार्ग को स्तरोन्नत कर इस मार्ग पर चलने वाली रेलगाडि़यों की स्पीड बढ़ाने की घोषणा से यह उम्मीद जगी थी कि पठानकोट-जोगिंद्रनगर रेलमार्ग के विस्तारीकरण और उसे ब्रॉडगेज में बदलने की कांगड़ा वासियों की बहुप्रतीक्षित मांग पर भी स्वीकृति की मुहर लगेगी, लेकिन प्रदेशवासियों की आशाओं पर उस समय तुषारापात हो गया, जब रविवार शाम को धर्मशाला में केंद्रीय रेलमंत्री ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की उपस्थिति में पठानकोट-जोगिंद्रनगर रेल ट्रैक के ब्रॉडगेज में न बदलने की एकतरफा घोषणा कर डाली। जोगिंद्रनगर-पठानकोट रेल ट्रैक के हवाई सर्वेक्षण के बाद उनकी उसे ब्रॉडगेज में न बदलने की घोषणा चौंकाने वाली है। बेहतर होता पहले वे कांगड़ा-चंबा और मंडी संसदीय क्षेत्रों के अपने सांसदों से राय-मशविरा कर लेते और एक कमेटी द्वारा पुनः इस रेलमार्ग के ब्रॉडगेज में बदले जाने की संभावनाओं को टटोल लेते। केंद्रीय रेल मंत्री से मुलाकात में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कालका-शिमला और पठानकोट-जोगिंद्रनगर रेल ट्रैक पर ट्रेन की स्पीड बढ़ाने की मांग के साथ-साथ रेलवे की भूमि पर व्यावसायिक परिसर और बहुमंजिला पार्किंग निर्माण की भी मांग रखी है। कांगड़ा-चंबा लोकसभा सीट से सांसद शांता कुमार भी अपने स्तर पर केंद्र सरकार से पठानकोट-जोगिंद्रनगर रेलवे लाइन के विस्तारीकरण और उसे ब्रॉडगेज में बदलने की मांग समय-समय पर उठाते रहे हैं, लेकिन लगता है अब भी प्रदेश के नागरिकों को इस मामले में लंबा इंतजार करना पड़ेगा।

रेल मंत्रालय के रेल नीति- निर्माण, निर्देशन और अनुसंधान संगठन द्वारा इसी ट्रैक का दो बार सर्वेक्षण करवाया जा चुका है। भारतीय रेलवे आम भारतीय लोगों की जीवन रेखा मानी जाती है। नेटवर्क के आकार से भारतीय रेलवे का दुनिया में तीसरा स्थान है, तो प्रति किलोमीटर यात्रियों को ढोने के लिहाज से पहला और माल ढुलाई के मामले में दुनिया में चौथा स्थान है। आजादी के समय कुल भारतीय रेलवे नेटवर्क 53996 किलोमीटर था, जो अब बढ़कर लगभग 67368 किलोमीटर लंबा हो गया है। आज भारतीय रेलवे प्रतिदिन लगभग 14 हजार ट्रेनों का संचालन करती है, जिनका रनिंग ट्रैक 121407 किलोमीटर है। रेलवे 33057 किलोमीटर लंबी ट्रैक का विद्युतीकरण कर चुकी है। भारत में कुल रेलवे स्टेशनों की संख्या 7172 है। प्रतिदिन 2-3 करोड़ यात्री रेलवे द्वारा यात्रा करते हैं और इससे रेलवे को एक तिहाई राजस्व की आमदनी होती है, जबकि रेलवे को दो तिहाई राजस्व माल ढुलाई से प्राप्त होता है। रेलवे सबसे बड़ी रोजगार प्रदाता एजेंसी भी है, जिसमें इस समय कुल 13 लाख से ज्यादा कर्मचारी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। आधुनिक जमाने की बदलती जरूरतों के मुताबिक भारतीय रेलवे भी अपने आप को अधुनातन बनाने में जुटी हुई है। जनवरी 2019 से रेलवे अपने टीटीई को हैंडहेल्ड टर्मिनल डिवाइस देने जा रही है, ताकि चलती ट्रेन में टिकट कैंसिल होने की सूचना टीटीई को मिल जाए और वह वेटिंग लिस्ट वाले यात्रियों को टिकट दे सकें।

पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश भी ब्रॉडगेज रेल नेटवर्क से जुड़े यह हर हिमाचली की चाहत है और केंद्र सरकार के पास बढ़ते राजस्व एवं जीडीपी के दृष्टिगत तथा आधुनिक तकनीकों, मशीनरी द्वारा पहाड़ पर रेल चढ़ाना कोई बड़ी चुनौती भी नहीं दिखता। आखिरकार भारतीय रेलवे कोंकण रेल और कटरा से कश्मीर घाटी के बीच भी तो नया रेलवे नेटवर्क स्थापित करने में कामयाब हो चुकी है। ऐसे में पठानकोट-जोगिंद्रनगर रेल ट्रैक को ब्रॉडगेज में बदलना और उसे लेह तक पहुंचाना कोई बहुत बड़ी चुनौती भी नहीं लगता। सिर्फ केंद्र सरकार के एक इशारे की जरूरत है और पहाड़ पर ब्रॉडगेज रेलवे ट्रैक पर ट्रेन दौड़ने की हिमाचली हसरतें भी पूरी हो जाएंगी। आशा है केंद्रीय रेलमंत्री अपने निर्णय पर पुनर्विचार करेंगे।

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