ध्यान की विधियां

By: Dec 29th, 2018 12:05 am

ओशो

ध्यान में कुछ अनिवार्य तत्त्व हैं, विधि कोई भी हो, वे अनिवार्य तत्त्व हर विधि के लिए आवश्यक है। पहली है, एक विश्रामपूर्ण अवस्था। मन के साथ कोई संघर्ष नहीं, मन पर कोई नियंत्रण नहीं, कोई एकाग्रता नहीं। दूसरा, जो भी चल रहा है उसे बिना किसी हस्तक्षेप के  बस शांत सजगता से देखो, शांत होकर, बिना किसी निर्णय और मूल्यांकन के, बस मन को देखते रहो। ये तीन बातें हैं, विश्राम, साक्षीत्व और धीरे-धीरे एक गहन मौन तुम पर उतर आता है। तुम्हारे भीतर की सारी हलचल समाप्त हो जाती है। तुम हो, लेकिन मैं हूं का भाव नहीं है, बस एक शुद्ध आकाश है। ध्यान की एक सौ बारह विधियां हैं। उनकी संरचना में भेद है, परंतु उनके आधार वही हैं। विश्राम,  साक्षीत्व और तर्क-वितर्क से परे दृष्टिकोण। लाखों लोग ध्यान से चूक जाते हैं क्योंकि ध्यान ने गलत अर्थ ले लिए हैं। ध्यान बहुत गंभीर लगता है। यह उन्हीं लोगों के लिए है जो उदास हैं, गंभीर हैं, जिन्होंने उत्साह, मस्ती, प्रफुल्लता, उत्सव सब खो दिया है। जो व्यक्ति वास्तव में ध्यानी है वह खेलपूर्ण होगा, जीवन उसके लिए मस्ती है, जीवन एक लीला, एक खेल है। वह जीवन का परम आनंद लेता है। वह गंभीर नहीं होता, विश्रामपूर्ण होता है। बहुत बार जल्दबाजी से ही देर लग जाती है। जब तुम्हारी प्यास जगे, तो धैर्य से प्रतीक्षा करो, जितनी गहन प्रतीक्षा होगी, उतनी जल्दी ही वह आएगा। तुमने बीज बो दिए, अब छाया में बैठे रहो और देखो क्या होता है। तुम प्रक्रिया को तेज नहीं कर सकते। क्या हर चीज के लिए समय नहीं चाहिए। तुम कार्य तो करो, लेकिन परिणाम परमात्मा पर छोड़ दो। जीवन में कुछ भी व्यर्थ नहीं जाता। विशेषतः सत्य की ओर उठाए गए कदम। परंतु कई बार अधैर्य उठता है, पर वह बाधा है। अधैर्य में संघर्ष होता है और कोई उत्कंठा नहीं होती। अधैर्य में मांग होती है और कोई प्रतीक्षा नहीं होती। अधैर्य में बेचैन संघर्ष होता है। सत्य पर आक्रमण नहीं किया जा सकता,  वह तो समर्पण से पाया जाता है, संघर्ष से नहीं। अहंकार परिणामोन्मुख है, मन सदा परिणाम के लिए लालायित रहता है। मन का कर्म में कोई रस नहीं होता, परिणाम में ही रस होता है, इससे मुझे क्या मिलेगा। यदि कृत्य से गुजरे बिना ही मन परिणाम पा सके, तो वह छोटे मार्ग का ही चुनाव करेगा। यही कारण है कि शिक्षित लोग चालाक हो जाते हैं, क्योंकि वे छोटे मार्ग खोजने में सक्षम होते हैं। यदि तुम न्यायोचित ढंग से धन कमाओ, तो तुम्हारा पूरा जीवन भी इसमें लग सकता है। शिक्षित व्यक्ति बुद्धिमान नहीं बनता, बस चालाक हो जाता है। वह इतना चालाक हो जाता है कि बिना कुछ किए सब कुछ पा लेना चाहता है। ध्यान उन्हीं लोगों को घटता है जो परिणामोन्मुख नहीं होते। ध्यान परिणामोन्मुख न होने की दशा है। जब होश में हो तो होश का आनंद लो और जब बेहोश हो तो बेहोशी का आनंद लो। कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि बेहोशी एक विश्राम की भांति है। वरना होश एक तनाव हो जाता। दिन में तुम सजग रहते हो, रात में तुम विश्राम करते हो और वह विश्राम तुम्हें दिन में और सजग होने में मदद करता है। ऊर्जाएं विश्राम की एक अवधि से गुजर जाती हैं और सुबह ज्यादा जीवंत हो जाती हैं। ध्यान में भी ऐसा ही होगा। कुछ क्षण के लिए तुम बिलकुल होश में होते हो, शिखर पर होते हो और फिर कुछ क्षण के लिए घाटी में पहुंच जाते हो, विश्राम करते हो। होश विदा हो गया, तुम भूल गए। बेहोशी से फिर होश उठेगा युवा होकर और यह चलता रहेगा।


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