नई राह दिखाता हिमालयन रेजिमेंट

By: Dec 20th, 2018 12:05 am

वरुण शर्मा

लेखक, नूरपुर से हैं

प्रदेश में सरकारी स्तर पर सेना भर्ती की तैयारी के लिए कोचिंग संस्थान शुरू करना भी प्रशंसा योग्य है। आज प्रदेश में बहुत से ऐसे संस्थान खुले हैं, जो युवाओं को सेना भर्ती की तैयारी कराने के लिए कृत्संकल्प तो हैं, परंतु बहुत से युवा वसूली जा रही फीस देने में असमर्थ हैं। इनके लिए सरकार को हर जिले में कम से कम एक ऐसा संस्थान खोलने की आवश्यकता है…

हिमाचल प्रदेश न केवल देवभूमि के रूप में अपितु वीरभूमि के रूप में भी विख्यात है। हिमाचल की धरती ने देश को न जाने कितने ऐसे वीर दिए हैं, जिन्होंने देशहित में अपना बलिदान देकर इस पहाड़ी प्रदेश का मस्तक सदैव ऊंचा रखा। भारतीय सेना विश्व की सर्वाधिक शक्तिशाली सेनाओं में गिनी जाती है और इसमें बहुत सी रेजिमेंट, बटालियन और न जाने कितने छोटे-बड़े समूह सम्मिलित हैं, जो हर क्षण देश की सेवा में लगे रहते हैं। उनके लिए देश, उनकी जन्मभूमि ही सर्वोपरि है। कहा भी गया है ‘जननी जन्मभूमि, स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात मां और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊंचा है। हिमाचल प्रदेश एक छोटे पहाड़ी राज्य के रूप में मान्यता प्राप्त है। मंदिरों और देवताओं की इस धरती का आशीर्वाद सदा से ही यहां की जनता पर रहा है और इसी आशीष का तिलक मस्तक पर सजाकर हिमाचली वीर देश की सेना में अप्रतिम साहस का परिचय देते आए हैं। देश के सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से सर्वप्रथम सम्मानित होने का श्रेय भी हिमाचल के रणबांकुर मेजर सोमनाथ शर्मा को जाता है।

इसके अतिरिक्त  कैप्टन विक्रम बत्रा और शहीद अमोल कालिया जैसे वीरों ने भी कारगिल युद्ध के दौरान अपनी शहादत दी, ताकि भारत मां के सीने पर कोई आंच न आ सके। न केवल युद्ध क्षेत्र, अपितु खेल के मैदान पर भी हिमाचल के सैनिक वीर प्रदेश का गौरव बढ़ाते चले आ रहे हैं। निशानेबाज विजय कुमार ने सेना में भर्ती होने के बाद पूरी लगन से स्वयं को विश्व स्तर की प्रतियोगिता के लिए तैयार किया और ओलंपिक खेलों में रजत पदक जीत कर प्रदेश का नाम रोशन किया। इसके अतिरिक्त और भी बहुत से हिमाचली वीर कई कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। चाहे रक्षा सेवाओं की कोई भी शाखा हो, हर ओर हिमाचली युवाओं ने अपना परचम लहराया है।

इस वर्ष भी हिमाचल के एक युवा को भारतीय सैन्य अकादमी की पासिंग आउट परेड के दौरान सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए ‘स्वॉर्ड ऑफ ऑनर’ से सम्मानित किया गया, जिसमें पंद्रह हिमाचली युवाओं को सेना के विभिन्न विभागों में अधिकारियों के तौर पर नियुक्ति मिली है। वायु सेना, नौसेना और अन्य रक्षा सेवाओं में भी हिमाचली सपूत शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं और इसके साथ ही हजारों की संख्या में प्रदेश के युवा रक्षा सेवाओं में लगातार भर्ती हो रहे हैं। युद्ध के मोर्चों पर शत्रु सेनाओं के साथ दो-दो हाथ करने के लिए आगे आने वाले प्रदेश के सैनिक वीरों ने अपनी मातृभूमि को सदैव आह्लादित किया है। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और 1999 में हुई कारगिल की लड़ाई का इतिहास हिमाचली वीरों की शौर्य गाथा का बखान करता है। 1971 में प्रदेश के लगभग दो सौ सैनिक मातृभूमि की रक्षा के लिए शहादत का जाम पी गए। कारगिल युद्ध के दौरान भी हिमाचल के युवा सैन्य अधिकारी शहीदों की सूची में अग्रिम पंक्ति में शामिल रहे। अब तक कुल ग्यारह सौ से अधिक सैन्य वीरता पदक, जिनमें चार परमवीर चक्र, दस के लगभग महावीर चक्र और न जाने कितने वीर चक्र, शौर्य चक्र, अशोक चक्र एवं अन्य वीरता पुरस्कार हिमाचल के रणवीर प्राप्त कर चुके हैं। प्रदेश के बहुत से जिलों में कई सारे ऐसे परिवार हैं, जिनकी लगातार पीढि़यां सेना में सेवा दे रही हैं। कुछ परिवारों से तो सभी जनरल रैंक के अधिकारी पद तक पहुंचे हैं, जो कि अपने आप में ही कीर्तिमान है। ये आंकड़े यह इंगित करते हैं कि इस पहाड़ी राज्य की देशसेवा में लगन और तत्परता कितनी अधिक है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए ही इस बार शीतकालीन सत्र में ‘हिमालयन रेजिमेंट’ की मांग को लेकर जो प्रस्ताव रखा गया, वह सर्वथा जायज है। हर कोई इसके समर्थन में खड़ा है और साथ ही प्रदेश का सेना भर्ती में कोटा बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि हिमाचली युवाओं के हृदय में पनप रही देशसेवा रूपी धड़कन को नई जान मिल सके। हिमाचल प्रदेश की सेना में अपनी रेजिमेंट होने का अवश्य ही लाभ मिलेगा। इसकी स्थापना से प्रदेश के युवाओं में रक्षा सेवाओं को लेकर सोच और अधिक सकारात्मक और बलबती होगी। इससे प्रदेश से निकलने वाले सैन्य अधिकारियों की संख्या में वृद्धि की संभावना और अधिक प्रबल होने के आसार हैं। प्रदेश के लिए एक अलग रेजीमेंट की मांग काफी पहले से की जा रही थी। पूर्व सरकारों के समय में भी इस पर कई बार चर्चा हुई, पर न जाने क्यों यह मांग हमेशा ही फाइलों के बोझ तले दब कर रह गई। इस विधानसभा सत्र के दौरान संबंधित विषय पर लिया गया निर्णय अवश्य ही प्रदेश हित में पक्ष और विपक्ष के मध्य सामंजस्य के भाव को प्रदर्शित करता है।

हिमाचल सरकार द्वारा प्रदेश में सरकारी स्तर पर सेना भर्ती की तैयारी के लिए कोचिंग संस्थान शुरू करने की कवायद भी प्रशंसा के योग्य है। आज प्रदेश में पूर्व सैनिकों और पढ़े-लिखे युवाओं द्वारा बहुत से ऐसे संस्थान खोले गए हैं, जो युवाओं को सेना भर्ती की तैयारी कराने के लिए कृत्संकल्प तो हैं, परंतु वसूली जा रही फीस देने में बहुत से युवा असमर्थ हैं। इनके लिए सरकार को हर जिले में कम से कम एक ऐसा संस्थान खोलने की आवश्यकता है। यह संस्थान जिले में ऐसी जगह खुलने चाहिएं, जहां तक सभी इच्छुकों की पहुंच हो। बड़े जिलों में इनकी संख्या दो या अधिक होनी जरूरी है। ‘हिमालयन रेजिमेंट’ की स्थापना का लक्ष्य लेकर चलना भी एक बड़ी बात है, किंतु यदि सकारात्मक प्रयास किए जाएं, तो अवश्य ही सफलता प्राप्त होगी। पूर्व सैनिकों और रक्षा सेवाओं में वर्तमान में कार्यरत सैन्य अधिकारियों से भी हर संभव सहायता की पूरी अपेक्षा की जा सकती है। आवश्यकता है तो आवाज को और बुलंद करने की, ताकि ‘हिमालयन रेजिमेंट’ के स्वप्न को चार चांद लग सकें।


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