पर्दा हटाने की कोशिश

By: Dec 7th, 2018 12:05 am

बीते दिनों अर्जेंटीना में जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने आर्थिक अपराधियों और भगोड़ों का मुद्दा उठाया था। दुनिया के 20 बड़े देशों के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री वहां मौजूद थे। भारतीय प्रधानमंत्री का आग्रह था कि सभी प्रमुख देश इस मुद्दे पर साझा रणनीति तय करें और ऐसे अपराधियों की धरपकड़ के मद्देनजर प्रत्यर्पण कानूनों में संशोधन करें। प्रधानमंत्री मोदी के सुझाव और आग्रह का भरपूर स्वागत किया गया। चूंकि प्रत्येक देश के प्रत्यर्पण कानून और संधियां बेहद पेचीदा हैं, लिहाजा जी-20 के मंच पर अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सकता था। संभावना है कि भविष्य में ऐसे संशोधन सामने आएं, जिनके मद्देनजर आर्थिक अपराधियों और भगोड़ों की पनाहगाहों के दरवाजे बंद हो सकें। जी-20 के मंच पर प्रधानमंत्री मोदी ने जब यह मुद्दा उठाया, तो उनके जेहन में विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी सरीखे ‘बदनामों’ की छवि घूम रही होगी! हालांकि माल्या के प्रत्यर्पण को लेकर ब्रिटिश सरकार से बातचीत जारी है और लंदन की अदालत में भी केस चल रहा है। इसी दौरान भारतीय राजनयिक और सीबीआई के प्रयासों को सफलता मिली है कि करीब 3600 करोड़ रुपए के अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलीकॉप्टर घोटाले के ‘दलाल’ क्रिश्चियन मिशेल का प्रत्यर्पण संयुक्त अरब अमीरात की सरकार ने कर दिया। अब वह ‘बिचौलिया’ सीबीआई की रिमांड पर है। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल करीब एक साल से अपने स्तरों पर कोशिश कर रहे थे कि यह रक्षा दलाल भारत सरकार को सौंप दिया जाए, ताकि अगस्ता घोटाले के ‘राज’ की परतें खोली जा सकें। बेशक सरकार और भ्रष्टाचार के संदर्भ में यह बड़ी उपलब्धि है। मिशेल अगस्ता हेलीकॉप्टर घोटाले का सूत्रधार और ‘राजदार’ रहा है। वह घूस की परतें खोलकर रहस्य को बेनकाब करेगा या नहीं, यह जांच का भविष्य ही तय करेगा, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने राजस्थान में चुनाव प्रचार के आखिरी दिन यह मुद्दा उठाया और गांधी परिवार को लपेटने की कोशिश की। चूंकि भ्रष्टाचार कांग्रेस की दुखती रग रही है, लिहाजा इस घोटाले के जरिए चुनावी फायदा लेने की मंशा भी जरूर रही होगी, लेकिन प्रधानमंत्री की अपनी कुछ मर्यादाएं होती हैं। ऐसे गंभीर घोटाले राष्ट्रीय / अंतरराष्ट्रीय प्रभाव के होते हैं, लिहाजा प्रधानमंत्री को सहिष्णुता और गंभीरता दिखानी चाहिए थी। हालांकि राहुल गांधी ने भी राफेल विमान सौदे को एक घोटाले की तरह ही चुनाव प्रचार में पेश किया है। यही हमारी राजनीति की विडंबना है। ‘राजदार’ के पकड़े जाने के मायने ये नहीं हैं कि गांधी परिवार के भ्रष्टाचार की पुष्टि हो गई। बेशक इटली अदालत के एक फैसले में किसी ‘मैडम’ को ‘ड्राइविंग फोर्स’ करार दिया गया था और परोक्ष रूप से तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह का नाम भी सामने आया था, लेकिन इसके मायने भी गांधी परिवार को ‘भ्रष्ट’ साबित नहीं कर सकते। अगस्ता हेलीकॉप्टर घोटाले में पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी समेत 13 आरोपी हैं। जब तक भारतीय अदालतों का निर्णायक निष्कर्ष सामने नहीं आता और जांच एजेंसियों के आरोप-पत्र में भी सोनिया गांधी को आरोपी नहीं बनाया जाता, तब तक गांधी परिवार के चेहरे पर कीचड़ मलना नैतिकता नहीं है, बेशक इस पर राजनीति करते रहें। एक और तथ्य गौरतलब है कि घोटाला उजागर होने के बाद 2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी को ‘प्रतिबंधित’ कर उसे काली सूची में डाल दिया था, लेकिन 2014 में मोदी सरकार आने के बाद उसी कंपनी को ‘मेक इन इंडिया’ में सूचीबद्ध कैसे और क्यों किया गया है? बहरहाल यह मामला तो हेलीकॉप्टर घोटाले के ‘दलाल’ का है, लेकिन व्यापक तौर पर हमारी अर्थव्यवस्था को हमारे अपने ही उद्योगपतियों ने चूना लगाया है और मोटी राशियां डकार कर वे विदेशों में बैठे हैं। उनका प्रत्यर्पण और बैंकों के पैसे की वापसी महत्त्वपूर्ण मुद्दे हैं। यदि उनमें मोदी सरकार को कोई सफलता मिलती है, तो देश शाबाश भी देगा और प्रधानमंत्री को ‘चोर’ या ‘दामदार’ भी नहीं कहा जा सकेगा।

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