बाबा चरपट ने खोजी मणिमहेश झील

By: Dec 22nd, 2018 12:07 am

देवभूमि हिमाचल में समय-समय पर परंपरा के अनुसार देवयात्राओं और धार्मिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है। इसी कड़ी में भोले नाथ के दर्शन को समर्पित मणिमहेश झील पर हर साल हजारों की तादाद में श्रद्धालु उमड़ते हैं। कहा जाता है कि चंबा जनपद के भरमौर जनजातीय क्षेत्र से 13 किलोमीटर दूर हड़सर से करीब 13390 फुट की ऊंचाई पर स्थित मणिमहेश झील की खोज सबसे पहले बाबा चरपट नाथ ने की थी। किंवदंती है कि बाबा चरपट नाथ ने ही छठी शताब्दी में मणिमहेश की पवित्र डल झील के किनारे शिवलिंग की स्थापना की थी। बताया जाता है कि यह शिवलिंग भरमौर रियासत के तत्कालीन राजा मेरूवर्मन को राजस्थान रियासत के एक राजा ने भेंट किया था। इसके बाद राजा मेरूवर्मन ने इस शिवलिंग को बाबा चरपट नाथ को दिया और उन्होंने इसे राधाष्टमी के दिन मणिमहेश झील के किनारे विधिवत पूजा-अर्चना के बाद स्थापित कर दिया। इसके बाद बाबा चरपट नाथ हर साल अपने चेलों के साथ राधाष्टमी को झील किनारे पूजा-अर्चना एवं स्नान करने के लिए जाते रहे। हड़सर से धन्छो व सुंदरासी से होते हुए गौरी कुंड पहुंचने के बाद करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मणिमहेश झील में स्नान करने के बाद श्रद्धालु यहां स्थापित शिवलिंग पर जल चढ़ाकर पूजा-अर्चना करते हैं और यहीं से कैलाश पर्वत यानी मणिमहेश का भव्य नजारा भी देखने को मिलता है। खास बात यह है कि मौसम साफ  होने पर कभी-कभी ब्रह्ममुहूर्त में जोत स्वरूप मणि के दर्शन भी गौरी कुंड या डल झील के सामने स्थित कैलाश पर्वत से होते हैं और श्रद्धालु भोलेनाथ के जयकारों के साथ इसका अभिनंदन करते हैं। यह नजारा कुछ सेकंड भर का ही होता है। मणिमहेश के लिए पैदल यात्रा हड़सर से शुरू होती है और धन्छो, सुंदरासी, शिवघराट व गौरीकुंड के पड़ाव के बाद खड़ी चढ़ाई चढ़कर डल झील पहुंचा जा सकता है। कुछ यात्री हड़सर से कुगती होकर मणिमहेश पहुंचते हैं, इसे परिक्रमा की संज्ञा भी दी जाती है,क्योंकि ऐसा माना जाता है कि कुगती से होकर डल डील में पहुंचने से कैलाश पर्वत की परिक्रमा हो जाती है, जिसे पहाड़ी भाषा में कुछ लोग फेरी भी कहते हैं। कुछ यात्री डल झील में स्नान करने के बाद कमल कुंड में जाकर भी पूजा-अर्चना करते हैं। यात्रा के दौरान जगह-जगह सामाजिक संगठनों के सौजन्यों से लंगर एवं निःशुल्क चिकित्सा सुविधा मुहैया करवाई जाती है। यात्रा शुरू करने से पहले लोग भरमौर से डूग्गा सार पहाड़ी पर स्थित माता ब्रह्माणी के दर्शनों के लिए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि मणिमहेश यात्रा से पहले माता ब्रह्माणी के दरबार में हाजिरी लगाना जरूरी है, क्योंकि, कभी ब्रह्मपुर के नाम से प्रख्यात भरमौर में ब्रह्मा की पुत्री ब्रह्माणी का वास हुआ करता था। भगवान भोले नाथ ने माता ब्रह्माणी को यह वरदान दिया था कि जो भी व्यक्ति मेरे दर्शन के लिए मणिमहेश आएगा, वह पहले माता ब्रह्माणी के दर्शन करेगा, तभी उसकी यात्रा सफल होगी। कहा जाता है कि माता ब्रह्माणी को नवदुर्गा में ब्रह्मचारिणी का रूप स्वीकारा गया है और माता ब्रह्माणी  के नाम पर ही ब्रह्मपुर यानी भरमौर की स्थापना हुई थी।  माता ब्रह्माणी भरमौर वासियों की कुलदेवी है और यहां पर साल भर यज्ञ एवं भंडारों का आयोजन होता रहता है। कहा जाता है कि माता ब्रह्माणी कभी चैरासी मंदिर भरमौर के प्रांगण में विराजमान हुआ करती थी। माता ब्रह्माणी यहां स्थित एक विशालकाय देवदार वृक्ष के समीप तपस्या किया करती थी।

                  -कपिल मेहरा, जवाली     


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