भारतीय रेल के हिमाचली अर्थ

By: Dec 4th, 2018 12:04 am

हिमाचल के जिस लाल कालीन पर केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल चले, उसे अब यह मुगालता नहीं रहेगा कि प्रदेश में किसी तरह का रेल विस्तार होने जा रहा है। गोयल भले ही शिमला की रेल को तेज भागने की मंजूरी दें या कांगड़ा घाटी में अंग्रेजों की विरासत पर बिछी पटरियों को आशीर्वाद दें, लेकिन यह स्पष्ट है कि केंद्र ने हमें फिर लाल झंडी ही दिखाई है। इसमें दो राय नहीं कि हिमाचल के शिमला व कांगड़ा के नसीब में धरोहर ट्रेन की मिलकीयत का अपना इतिहास है और इनका पर्यटन की दृष्टि से महत्त्व निरंतर बढ़ रहा है। सवाल उस गति पर उठना स्वाभाविक है, जिसे लेकर रेल मंत्री उदारता दिखा रहे हैं। क्या शिमला और कांगड़ा घाटी की रेलों को तेज दौड़ाने का सामर्थ्य पुरानी हो चुकी पटरियों को हासिल है या धरोहर ट्रेनों के आंसू पोंछने के लिए यही एक विकल्प बचा है। हम दो उद्देश्य एक ही तरह की पटरी पर नहीं ढो सकते। क्या इन रेलवे लाइनों को एक पल धरोहर और दूसरे पल यात्री ट्रेन बना सकते हैं। दोनों ही परिप्रेक्ष्य में संभावना, जरूरत, गति, विस्तार व अपेक्षाओं में अंतर है। धरोहर होने का अर्थ यह होना चाहिए कि भारतीय रेल इन्हें पर्यटन मोड पर चलाए तथा इसी के अनुरूप सुविधाएं तथा अधोसंरचना विकसित करे। शिमला ट्रैक पर पारदर्शी कोच की शुरुआत इस लिहाज से कारगर सिद्ध होगी और कांगड़ा घाटी रेल पैकेज भी चाय के बागीचों की सुगंध और धौलाधार की चांदनी को समेट सकता है, लेकिन ये नजारे यहीं मुकम्मल नहीं हो सकते और न ही भारतीय रेल के मायने केवल ब्रिटिश के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर भर कर देने से पूरे होंगे। भारतीय रेल के हिमाचली अर्थ व संदर्भ नई मंजिलें खोज रहे हैं। कम से कम जिस तरह राजनीतिक मंचों पर हिमाचली रेल विस्तार की चर्चा होती रही है, उससे कहीं हटकर पीयूष गोयल ने हकीकत से अवगत करा कर, राष्ट्र की महत्त्वाकांक्षा का लबादा हटा दिया है। हिमाचल यूं तो लेह रेल के सपनों में राष्ट्रीय परियोजना की परिकल्पना कर रहा है और जनता गवाह है कि इस परियोजना पर किसने क्या कहा। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने अगर भानुपल्ली-बिलासपुर की दिशा से लेह रेल के सपने सजाए, तो पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद शांता कुमार ने पठानकोट-मंडी से लेह तक सपनों की पटरी बिछा दी। पूर्व कांगे्रस सरकार ने अंब-अंदौरा तक पहुंची ट्रेन को वाया नादौन आगे बढ़ाने का खाका सजाया, तो सांसद अनुराग का अपना सर्वेक्षण इसे सीधे हमीरपुर का संसदीय संसर्ग देता रहा। अब जबकि भारत में बिना इंजन की ट्रेन 180 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार पकड़ रही है, तो हिमाचल की बूढ़ी शिमला रेल को 35 किलोमीटर प्रति घंटा की गति तक पहुंचाया जा रहा है। यानी शिमला ट्रेन को अपनी जान लड़ाकर भी देश की उच्चतम गति से पांच गुना नीचे चलना पड़ेगा। क्या यही है हिमाचल की यात्री गाडि़यों का भविष्य। आखिर है क्या हिमाचल ट्रेन का रोड मैप और इसे हासिल करने की वजह कब समझी जाएगी। हमारा मानना है कि न तो पठानकोट की बड़ी ट्रेन से हिमाचल जुड़ेगा और न ही लेह परियोजना को केंद्र का आर्थिक कंधा मिलेगा। ऐसे में कोंकण रेल परियोजना सरीखे प्रयास में प्रदेश को आगे बढ़ना होगा और इस उद्देश्य को सक्षम बनाने के लिए सर्वप्रथम धार्मिक पर्यटन को इससे जोड़ना चाहिए। हिमाचल में केवल ऊना रेल परियोजना को भीतर की तरफ मोड़ कर ही लाभ होगा और इसके लिए सर्वप्रथम मंदिर रेल परियोजना को सफल बनाने की जरूरत है। रेल मंत्रालय के पचास फीसदी सहयोग तथा केंद्रीय पर्यटन विभाग या एडीबी की वित्तीय मदद से मंदिर रेल को कोंकण रेल परियोजना की तर्ज पर चलाया जा सकता है। अंब-अंदौरा से करीब पचास किलोमीटर दूर ज्वालामुखी मंदिर की दिशा में आरंभिक पटरी बिछाई जाए, तो इसकी फंडिंग संभव है। इस तरह चिंतपूर्णी व ज्वालामुखी सीधे श्रद्धालु पहुंच जाएंगे, जबकि अगले चरण में ज्वालामुखी से कांगड़ा, मंडी तथा बिलासपुर-हमीरपुर की दिशा में इसी आधार पर रेलवे का खाका पूरा किया जा सकता है। विभिन्न मंदिरों की आय को भी मंदिर रेल परियोजना से जोड़ते हुए, एक नए और क्षमतावान पर्यटन की शुरुआत संभव है। केंद्रीय रेल मंत्री ने अपने हवाई सर्वेक्षण से यह बता दिया कि अभी हिमाचल केवल रेल का धरोहर मूल्यांकन ही कर सकता है या उन हवाई बातों पर गौर न करें, जो नेताओं की वजह से विकास का भ्रम पैदा करती हैं। केंद्र के सामने हिमाचल की हैसियत का अंदाजा केंद्रीय परियोजनाओं के जरिए ही लगता है, इसलिए कनेक्टिविटी के आधार पर नए नेशनल हाई-वे तथा हवाई अड्डों के विस्तार पर भी वर्षों से उम्मीदों को वास्तविकता से दरकिनार ही होना पड़ रहा है।

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