भूगोल में करियर धरातल पर उतारें स्वप्‍न

By: Dec 19th, 2018 12:08 am

सृष्टि के आरंभ से ही मनुष्य का भूगोल से वास्ता रहा है। भूगोल मानव जाति जितना ही पुराना है। पृथ्वी पर अपने अस्तित्व के प्रारंभिक काल से ही मनुष्य को अपने पर्यावरण, भोजन और आवास के लिए गंभीरता से विचार करना पड़ता था। भूगोल पृथ्वी पर विभिन्न स्थलों की जानकारी देता है। भूगोल धरातल पर पाए जाने वाले विभिन्न तथ्यों का अध्ययन करता है…

एक ऐसा स्वतंत्र विषय है, जिसका उद्देश्य लोगों को इस विश्व का, आकाशीय पिंडों का, स्थल, महासागर, जीव-जंतुओं, वनस्पितियों तथा भू-धरातल पर देखी जाने वाली प्रत्येक वस्तु का ज्ञान प्राप्त करवाना है। सृष्टि के आरंभ से ही मनुष्य का भूगोल से वास्ता रहा है। भूगोल मानव जाति जितना ही पुराना है। पृथ्वी पर अपने अस्तित्व के प्रारंभिक काल से ही मनुष्य को अपने पर्यावरण, भोजन और आवास के लिए गंभीरता से विचार करना पड़ता था। भूगोल पृथ्वी पर विभिन्न स्थलों की जानकारी देता है। भूगोल धरातल पर पाए जाने वाले विभिन्न तथ्यों का अध्ययन करता है। सबसे पहले प्राचीन यूनानी विद्वान इरैटीस्थनीज ने भूगोल को धरातल के एक विशिष्ट विज्ञान के रूप में मान्यता दी। ज्योग्राफी शब्द यूनानी भाषा के ‘जी’ और ‘ग्राफी’  शब्दों से मिलकर बना है। ‘जी’ शब्द का अर्थ पृथ्वी और ‘ ग्राफी’ शब्द का अर्थ है वर्णन करना। इस प्रकार ज्योग्राफी का सामान्य अर्थ है पृथ्वी का वर्णन करना।

परिभाषा

भूगोल वह शास्त्र है, जिसके द्वारा पृथ्वी के ऊपरी स्वरूप  और उसके प्राकृतिक भागों(जैसे पहाड़, देश, नदी, नगर, समुद्र, झील और वन आदि) का ज्ञान होता है। प्राकृतिक विज्ञानों के निष्कर्ष के बीच कार्य- कारण संबंध स्थापित करते हुए पृथ्वी तल की विभिन्नताओं का मानवीय दृष्टिकोण से अध्ययन ही भूगोल का सार तत्त्व है। पृथ्वी की सतह पर जो स्थान विशेष हैं, उनकी समताओं और विषमताओं का कारण और उनका स्पष्टीकरण भूगोल का निजी क्षेत्र है। भूगोल एक प्रैक्टिकल विषय है। यह कक्षा में बैठ कर सीखने वाला विषय नहीं है। व्यावहारिक रूप से फील्ड में जाकर इसको जानना सरल है। यात्रा करते हुए अनेक भौगोलिक तथ्यों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यात्रा के दौरान धरातल के बदलते लक्षणों, वनस्पति, फसलों, लोगों की वेशभूषा और मकानों की बनावट आदि को ध्यान से देखकर भौगोलिक ज्ञान में निरंतर वृद्धि होती है। किसी बड़े नगर का स्टेशन आने से पहले ही खेतों में फसलें बदल जाती हैं। अनाज के खेतों का स्थान सब्जी के खेत ले लेते हैं। पर्वतीय यात्रा के समय सीढ़ीदार खेत तथा उनमें उगी विशिष्ट फसलें और ऊंचाई के साथ वृक्षों की बदलती हुई जातियां भूगोल की कई बातें अनायास ही बता जाती हैं। समुद्र के तट पर खेलते बच्चे और समुद्र में नाव खेते मछुआरे भूगोल की कितनी ही जानकारियां देते हैं। इसलिए भूगोल को भ्रमण का विषय कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

इतिहास

वैसे तो भूगोल का इतिहास सृष्टि के शुरू से ही माना जाता है, पर फिर भी ज्ञात जानकारी के अनुसार 2300 ईसा पूर्व मेसोपोटामिया के लगश नामक स्थान पर पत्थर पर पहला नगर मानचित्र मिला। उसके बाद 450 ईसा पूर्व हेरोडोटस ने ज्ञात संसार का मानचित्र बनाया। यूनान के दार्शनिकों ने भूगोल के सिद्धांतों की रचना की। वर्तमान में जो भौगोलिक सिद्धांत बने हैं, वे 18वीं शताब्दी में बने हैं।

भूगोल का अन्य विषयों से संबंध

भूगोल को एक प्रगतिशील विज्ञान माना जाता है। इसकी विषय वस्तु में निरंतर बदलाव हो रहा है। अपनी विषय वस्तु को समृद्ध बनाने के लिए भूगोल अन्य विज्ञानों से विषयवस्तु ग्रहण करता है। भूगोल का एक अलग दृष्टिकोण है। इसी कारण अन्य विज्ञानों से ली गई विषयवस्तु को आत्मसात कर के भी वह अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। यही नहीं, भूगोल अपनी विषयवस्तु की समृद्धि के लिए भौतिक विज्ञानों और सामाजिक विज्ञानों पर आश्रित है।

भूगोल के भाग

भूगोल की भी कई शाखाएं (फिजिकल ज्योग्राफी, ह्यूमन ज्योग्राफी, एन्वायरनमेंटल ज्योग्राफी) होती हैं। फिजिकल ज्योग्राफी में जहां पृथ्वी, नदी, खाली स्थानों, जलवायु आदि का अध्ययन किया जाता है, वहीं ह्यूमन ज्योग्राफी में मानव सहित राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है। इसी तरह एन्वायरनमेंटल ज्योग्राफी में प्रोफेशनल्स पर्यावरण और उसका मानव जीवन पर प्रभाव, मौसम और जलवायु आदि का गहनता से अध्ययन करते हैं।

भूगोलवेता के कार्य

भूगोल को पृथ्वी का विज्ञान कहा जाता है। इसके अंतर्गत धरती एवं उसके आसपास पाए जाने वाले तत्त्वों का अध्ययन किया जाता है। सही मायने में देखा जाए तो ज्योग्राफर की भूमिका एक साइंटिस्ट की भांति होती है। पृथ्वी की संरचना तथा उसके अंदर होने वाली हलचलों, नदी-घाटी परियोजना आदि पर कार्य करने की जिम्मेदारी भी ज्योग्राफर की होती है। एक ज्योग्राफर को कई विभागों से तालमेल बिठा कर काम करना होता है।

प्रमुख संस्थान

 हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी, शिमला(हिप्र)

 पीजी कालेज धर्मशाला(हिप्र)

 राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिलासपुर(हिप्र)

 अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़

 बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी

 एमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा

 बिरला इंस्टीच्य़ूट ऑफ  टेक्नोलॉजी, रांची

 इंस्टीच्यूट ऑफ  ज्यो इन्फार्मेटिक्स एंड रिमोट सेंसिंग, कोलकाता

 जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली

 दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली

प्रमुख कोर्स एवं अवधि

 बीए, बीएससी ज्योग्राफी- 3 वर्ष

 एमएससी ज्योग्राफी- 2 वर्ष

 एमएससी ज्योइन्फोर्मेटिक्स- 2 वर्ष

 पीएचडी ज्योग्राफी- 3 वर्ष

 पीएचडी ज्योमेग्नेटिज्म -3 वर्ष

 पीजी सर्टिफिकेट कोर्स इन ज्योइन्फोर्मेटिक्स

 एंड रिमोट सेंसिंग – छह माह

 पीजी डिप्लोमा इन ज्योग्राफिकल कार्टोग्राफी-एक वर्ष

बाहरवीं के बाद रखें कदम

इसमें बैचलर से लेकर पीएचडी लेवल तक के कोर्स मौजूद हैं। छात्र बारहवीं के बाद अपनी किस्मत आजमा सकते हैं। बीए, बीएससी में दाखिला बारहवीं के बाद और एमएससी में दाखिला स्नातक के बाद मिलता है। इसके बाद पीएचडी की राह आसान हो जाती है। पीजी डिप्लोमा भी स्नातक के बाद किया जा सकता है। इसमें कई सर्टिफिकेट कोर्स भी हैं, जिन्हें स्नातक के बाद  किया जा सकता है। इसमें रेगुलर व पत्राचार दोनों तरह के कोर्स मौजूद हैं।

रोजगार की संभावनाएं

सफलतापूर्वक कोर्स करने के बाद इस क्षेत्र में रोजगार की कोई कमी सामने नहीं आती। सेटेलाइट टेक्नोलॉजी और ज्योग्राफिकल इन्फार्मेशन सिस्टम (जीआईएस) के प्रयोग में बढ़ोतरी के चलते संबंधित कोर्स और प्रोफेशनल्स की डिमांड भी बढ़ी है। इसमें सरकारी व प्राइवेट, दोनों क्षेत्रों में काम की प्रचुरता है। इसके अलावा एनजीओ, ज्योग्राफिकल सर्वे ऑफ  इंडिया, मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट, रिसर्च इंस्टीच्य़ूट, स्कूल-कालेज, मैप पब्लिशर व ट्रैवल एजेंसियां अपने यहां योग्य लोगों को जॉब देती हैं। प्रोफेशनल्ज चाहें तो फ्रीलांसर व कंसल्टेंट के अलावा विदेश जाकर अपनी क्षमता आजमा सकते हैं।

आवश्यक स्किल्स इसमें कोर्स के अलावा कई तरह के गुण

प्रोफेशनल्ज को कदम-कदम पर मदद पहुंचाते हैं। मसलन कम्प्यूटर का ज्ञान, लॉजिकल व एनालिटिकल थिंकिंग, अच्छी कम्युनिकेशन स्किल, शारीरिक रूप से फिट, आंकड़ों व समस्याओं को सुलझाने का कौशल, आकलन का गुण आदि हमेशा काम आते हैं।


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