मृत्युंजय वर्मन का नाम एक शिलालेख पर मिलता है

By: Dec 26th, 2018 12:05 am

ब्राह्मण की दृष्टि उस निशान पर पड़ी। उसने अनुभव किया कि यह चिन्ह किसी राजा के पांव का हो सकता है और यह बालक अवश्य किसी उच्च कुल से होगा। उसने रानी से पूछा, रानी ने अपना भेद खोलते हुए कहा कि वह ब्रह्मपुर के राजा लक्ष्मी वर्मन की पत्नी है और यह उस राजा का पुत्र है …

गतांक से आगे …

एक दिन ऐसा हुआ कि इस ब्राह्मण के घर में कहीं आटा पड़ा हुआ था। बच्चे का पैर  उस पर पड़ गया और उसके निशान आटे पर पड़ गए। ब्राह्मण की दृष्टि उस निशान पर पड़ी। उसने अनुभव किया कि यह चिन्ह किसी राजा के पांव का हो सकता है और यह बालक अवश्य किसी उच्च कुल से होगा। उसने रानी से पूछा, रानी ने अपना भेद खोलते हुए कहा कि वह ब्रह्मपुर के राजा लक्ष्मी वर्मन की पत्नी है और यह उस राजा का पुत्र है। वह ब्राह्मण रानी और मुशान वर्मन को साथ लेकर सुकेत के राजा के पास गया और सारे समाचार राजा सुकेत को कह सुनाए। राजा ने उन दोनों को बड़े आदर से अपने यहां रखा। राजा ने मुशान वर्मन की शिक्षा-दीक्षा का भी उचित प्रबंध किया। जब वह बड़ा हुआ तो राजा ने अपनी का विवाह उससे करा दिया। राजा ने उसे बहुत सा धन तथा ‘पांगण परगना’ भी दहेज में दिया। उसे एक बड़ी सेना भी दी, जिसकी सहायता से उसने अपने राज्य ब्रह्मपुर से आक्रमणकारियों को मार भगाया और  अपने राज्य को फिर से ब्रह्मपुर में स्थापित किया।

बहुत काल तक राज्य करने के बाद उसके उपरांत निम्नलिखित अन्य ये राजा हुए-

  1. हंस वर्मन 2. सार वर्मन 3. सेन वर्मन 4. सजन वर्मन
  2. मृत्युंजय वर्मन : इस राजा का नाम एक शिलालेख पर मिलता है। यह लेख धौलाधार ‘पैरोली रगाला’ स्थान पर है। वंशावली में इस राजा का नाम नहीं मिलता है।

साहिल वर्मन (लगभग 920) ःचंबा के राजाओं में यह सभी से प्रसिद्ध और प्रतापी राजा माना जाता है। इस राजा ने रावी की निचली घाटी को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया और अपनी राजधानी को ब्रह्मपुर से स्थानांतरित कर आज के चंबा नगर में स्थापित किया। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि इस राजा के गद्दी पर बैठने के पश्चात ही ब्रह्मपुर की सेनाओं  ने फिर से कुल्लू पर आक्रमण किया। कुल्लू के लोगों ने आक्रमणकारियों को रात के एक भोज के लिए आमंत्रित किया, परंतु रात के अंधेरे में उन्हें राहला के निकट व्यास नदी के किनारे मार भगाया। बाद में दोनों में समझौता हो गया। साहिल वर्मन के राजा बनने के थोड़े समय बाद ब्रह्मपुर में 84 योगियों की एक टोली आई। उनके भक्ति भाव से राजा बड़ा प्रभावित हुआ और उनका बड़ा आदर सत्कार किया। उस समय राजा के कोई संतान नहीं थी। उन्होंने राजा को वरदान किया कि तेरे दस पुत्र होंगे। राजा ने उसने अनुरोध किया कि जब तक उनका दिया हुआ वरदान पूरा न हो वे ब्र्रह्मपुर में ही ठहरें। समय बीतने के साथ उसके दस पुत्र और एक पुत्री हुई। सबसे बड़े पुत्र का नाम युगांकर और पुत्री का नाम चंपावती था।


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