रिवायत के कितना आगे

By: Dec 10th, 2018 12:05 am

सियासी परंपराओं से कितना आगे जयराम सरकार देख रही है, इसका हिसाब करता विधानसभा का शीत कालीन सत्र पुनः हाजिर है। सरकार के एक साल की इबारत से रंगा माहौल और कदम ताल करती विपक्षी सरफरोशी की मुलाकात का अवसर अपने पैमानों से बाहर। राजनीतिक सूर्य पर धरती की छाया का असर और दुबक कर बैठे विपक्षी वाज का आकाश को चीरने का प्रयत्न। सदन का तपोवन में आना यानी सत्ता के प्रतीकों का कांगड़ा में टहलना तथा इस बहाने सियासी संतुलन की खोज में, विपक्षी आधार की तफतीश का शीर्षासन कराती बहस का प्रदर्शन भी देखा जाएगा। बहस के सत्र में एक दिन बढ़ा कर सरकार ने आगे बढ़ने की कोशिश की है, लिहाजा अपने विधायी कार्यों को कुशलता से निपटाने की राह पर भी तपोवन का मंजर देखा जाएगा। विपक्ष की राजनीतिक मजबूरियां जो भी हों, लेकिन आगामी लोकसभा चुनावों की जुगत में हिमाचल कांग्रेस को अपना दीया जलाना है, तो धौलाधार के सामने सजे मंच पर एकजुटता व एकाग्रता का परिचय देना पड़ेगा। यह भी देखना होगा कि चार्जशीट बनाने को आतुर कांग्रेस सदन में सत्ता की कारगुजारियों का जिक्र महज विरोध से आगे, कैसे दस्तावेजी बनाती है। बतौर नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री की कमान में विरोध की प्रणाली, विपक्ष की रखवाली और जनता के समक्ष अपनी पारी को संवारने की एक और कड़ी भी जुड़ रही है। प्रदेश के नजरिए में विपक्षी धार के कई सवाल होंगे, लेकिन सरकार की आर्थिक सेहत, बढ़ती बेरोजगारी तथा स्थानांतरणों की रफ्तार से विपक्ष को अपना विरोध पेश करने का स्वाभाविक हुनर हासिल रहेगा। निरंतर बढ़ता कर्ज बोझ से बहस के लपेटे में सरकार का पक्ष क्या होगा या सरकार की अब तक की प्राथमिकताओं में कितना क्षेत्रवाद  झलकता रहा है, इस पर विपक्ष की विरोध कला का प्रदर्शन देखा जा सकता है। अपने प्रदर्शन में आगे रहे शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज के सामने स्मार्ट यूनिफार्म का प्रश्न तो उठेगा और यह भी कि जिन सुधारों का वादा किया था, उनका हुआ क्या। सरकारी नियुक्तियों की पड़ताल कहां और किस विभाग तक विपक्ष कर पाता है और सरकार कितने आश्वासन व कितने यथार्थ को बांट पाती है, इस पर हिमाचल के युवावर्ग की नजर भी रहेगी। विधानसभा सत्र से ठीक पहले केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल का हिमाचल दौरा अपने साथ बहस की जो पटरी छोड़ गया, उस पर विपक्ष जरूर चलेगा। लेह रेल परियोजना के फलक पर अब तक की घोषणाएं व सियासी पैमाइश करती भाजपा के लिए हिमाचल बनाम केंद्र की जवाबदेही प्रतीक्षित है। केंद्रीय योजनाओं से लाभान्वित जयराम सरकार का पलड़ा भारी होता है या विपक्ष यह बताएगा कि किस तरह हिमाचल ठगा रह गया। सड़कों के विस्तार पर डीपीआर की चुगली और हवाई अड्डों के विस्तार पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की अधोसंरचना में मंडी एयरपोर्ट पर भी तो विपक्ष पूछेगा। उड़ान एक से दो तक शिमला की घटती उड़ानों का जिक्र, तो बाकी शहरों की मंजिल में योजना की असफलता पर पूछा जाएगा। बेशक सरकार के अपने पैमानों का जिक्र तथा एक साल की उपलब्धियों का लेखाजोखा बढ़-चढ़ कर बोलेगा और नई योजनाओं के सुर जब गूंजेंगे, तो विपक्ष की रौ का पता चलेगा। यह दीगर है कि नशे के खिलाफ सरकार की सख्ती में विपक्ष भी दम लगाएगा, लेकिन अवैध खनन पर आंखें दिखाएगा। विभिन्न विभागों , निगमों तथा बोर्डाें के संचालन में आउटसोर्स नियुक्तियों के खिलाफ विपक्ष की पहरेदारी से सवाल उठ सकते हैं। सवाल कुछ मंत्रियों के प्रदर्शन और कुछ सत्ता लाभ के आबंटन पर जब होंगे, तो जनता किसानों- बागबानों तथा बेरोजगारों के हित की बात सुनना चाहेगी। बंदरों , वन्य प्राणियों व आवारा पशुओं के खिलाफ सरकारी तेज देखा जाएगा, तो घाटे के निगमों-बोर्डों को निस्तेज करते माहौल से पूछा जाएगा कि आखिर इस प्रदर्शन की मजबूरी क्या है। इस दौरान सरकार के अच्छे खाके में बंटते राशन, अस्पतालों में बढ़ते डाक्टर, किसान-बागबानों के हक में हुए भाषण और नई योजनाओं -परियोजनाओं के आसन की बात होगी, तो पिछली सरकार तक चर्चा हो जाएगी। शीतकालीन सत्र के दर पर फरियादी आएंगे और जनता भी पक्ष और विरोध में खड़ी रहेगी, लेकिन अगर बीच में बहस छोड़कर विपक्ष बाहर रहेगा, तो सदन के घुंघरुओं को खामोश करने की सजा किसे मिलेगी। जनता जो चाहती है, इसके बिंब और प्रतिबिंब में तपोवन में सदन की हर कार्यवाही से गुजारिश है कि इसके हर पल की कीमत अदा करते प्रतिनिधि आगे बढ़ें, रिवायतों से आगे और प्रदेश के हर हित में।

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