लोग इस प्रशासकीय प्रणाली से संतुष्ट नहीं थे

By: Dec 26th, 2018 12:05 am

प्रदेश के विकास कार्य तथा वित्त व अर्थव्यवस्था जैसे मामलों में इसकी कोई पूछ नहीं थी। लोग इस प्रशासकीय प्रणाली से संतुष्ट नहीं थे। अतः प्रजातंत्र की पुनः प्राप्ति के लिए उन्होंने अपना शांतिमय संघर्ष चालू रखा। प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने भारत के गृहमंत्री को इस बारे में एक ज्ञापन दिया …

गतांक से आगे …

हिमाचलः पूर्ण राज्यत्व की ओरः

1957ई. में क्षेत्रीय परिषद (टेरीटोरियल काउंसिल) के लिए चुनाव हुए।  ठाकुर कर्म सिंह ने 15 अगस्त, 1957 ई. को परिषद के अध्यक्ष की शपथ ली। प्रशासन के सभी अधिकार उप-राज्यपाल के पास थे। क्षेत्रीय परिषद केवल एक स्थानीय स्वशासन मात्र था। प्रदेश के विकास कार्य तथा वित्त व अर्थव्यवस्था जैसे मामलों में इसकी कोई पूछ नहीं थी।

लोग इस प्रशासकीय प्रणाली से संतुष्ट नहीं थे। अतः प्रजातंत्र की पुनः प्राप्ति के लिए उन्होंने अपना शांतिमय संघर्ष चालू रखा। प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने भारत के गृहमंत्री को इस बारे में एक ज्ञापन दिया। अतः गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 29 मार्च, 1961 को लोकसभा में बयान दिया कि अगर लोगों को उसके संवैधानिक अधिकार देने हैं तो खुले दिल से दिए जाएं। फिर 1962 में ‘हिमाचल प्रदेश परिषद’ ने एक प्रस्ताव पास किया। लोगों की भावनाओं को देखते हुए लोकसभा ने 1963 ई. में ‘गवर्नमेंट आफ यूनियन एक्ट 1963’ पास किया। इसके फलस्वरूप  पहली जुलाई, 1963 को हिमाचल प्रदेश क्षेत्रीय प्रदेश परिषद को हिमाचल प्रदेश विधानसभा में परिवर्तित कर दिया गया तथा तीन सदस्यीय मंत्रिमंडल का गठन हुआ। नई व्यवस्था में डा. यशवंत सिंह परमार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने।

 हिमाचल प्रदेश के लोगों तथा प्रदेश के नेताओं की बहुत समय से एक मांग चली आ रही थी कि हिमाचल प्रदेश के साथ लगते हुए कांगड़ा, कुल्लू, लाहुल-स्पीति, शिमला, ऊना, डलहौजी, नालागढ़ के पर्वतीय क्षेत्र भी हिमाचल के साथ मिलाए जाएं। इनका तर्क था कि ये क्षेत्र संस्कृति, सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक स्थिति की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश से जुड़े हैं। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए हिमाचल के नेताओं ने कांगड़ा तथा शिमला के प्रमुख लोगों से संपर्क स्थापित किया। उधर, पंजाब में पंजाबी सूबा का नारा उठ खड़ा हुआ। इससे कांगड़ा, कुल्लू, लाहुल-स्पीति, शिमला, नालागढ़ आदि  के लोगों को अपने वास्तविक भौगोलिक-अस्तित्व का आभास हुआ।

फलस्वरूप ‘विशाल हिमाचल’ का विचार लोगों के मन में उभर आया। इसके कट्टर समर्थक थे भागमल सौहटा और सत्यदेव बुशहरी। हिमाचल प्रदेश के सांसदों ने तथा पंजाब विधानसभा  में पंजाब के पहाड़ी क्षेत्र के विधानसभा सदस्यों ने सदन तथा सभा में बार-बार इसके बारे में बात उठाई। भारत सरकार ने सन् 1965 ई. में ‘पंजाब राज्य पुनर्गठन आयोग’ नियुक्त किया।  हिमाचल सरकार ने भी भारत सरकार को ‘विशाल हिमाचल’ का पूरा मसौदा भेजा और पंजाब राज्य पुनर्गठन आयोग के अध्यक्ष हाकम सिंह को भी यह मसौदा दिया।


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