श्रीविश्वकर्मा पुराण

By: Dec 22nd, 2018 12:05 am

प्रत्यक्ष प्रमाण देने की विश्वावसु की बात को सुनकर आए हुए पंडित अत्यंत प्रसन्न हुए उनको अब विश्वास हो गया था कि हमारी जीत होगी, इसलिए उन्होंने तुरंह ही प्रत्यक्ष प्रमाण वाली बात की जानने के लिए तैयारी बताई। विश्वावसु ने तुरंत राजा से कहा हे राजन! आप इन सब महलों के स्तंभों को तोड़ने की आज्ञा दो और इसके लिए योग्य आदमियों को काम पर लगा दो। विश्वावसु ने इस प्रकार सुनकर राजा ने तुरंत ही सब महल के स्तंभ तोड़ने की आज्ञा दे दी। इस तरफ विश्वावसु ने मय दानव की हरी हुई मायावी विद्या का आह्वान किया तथा उस विद्या के जोर से प्रत्येक महल के कोने में अदृश्य मायावी स्तंभ खड़े कर दिए। इस तरह करने वाले आदमी वजनदार साधन लेकर स्तंभ को तोड़ने के प्रयत्न करने लगे। चारों आए हुए पंडितों को आनंद हो रहा था। प्रजा का मन अधीरता से बेचैन हुआ जा रहा था। परंतु स्तंभ तोड़ने वालों का तो जीव जानो पुड़ीया में बध गया हो, अत्यंत मेहनत के बाद एक के बाद एक स्तंभ टूटने लगे, परंतु सबके आश्चर्य के बीच महल की एक कनी नहीं गिर रही थी। यह देखकर सभी सभा के लोग आश्चर्य में डूब गए। राजा भी अत्यंत प्रसन्न हुआ और सीमंत तथा उसके पुत्रों को आनंद का तो कोई पार ही न था। सारी सभा में आनंद की आवजे होने लगी तथा सब जगह सीमंत की तथा उसके पुत्रों की जय-जयकार होने लगी। आगंतुक पंडितों के मुंह तो जानों काली स्याही से रंगे हुए से हो गए थे। अब क्या बोलना उनकी समझ में नहीं आ रहा था। वह तो यहां से भागने के लिए कब से तैयारी कर रहे थे, कारण कि वह हार गए थे और शर्त के अनुसार राजा उनका वध करेगा ऐसा ही उनको विश्वास था, परंतु वह यहां से भागे उससे पहले ही राजा के कर्मचारी उनके आगे पीछे आकर खड़े हो गए थे। हे ऋषियो! एक ही स्तंभ के ऊपर बने हुए इन राजमहलों में रहने वाले राजा का तथा उसके परिवार का रक्षण किस तरह हो सकता था, ऐसे पंडितों के प्रश्न के उत्तर में विश्वावसु ने जो प्रमाण दिया था, उस प्रत्यक्ष प्रमाण को तथा आविभिक्त हुए राजमहल को देखकर उस सभा में एकत्र हुए सभी लोगों ने विश्वावसु की तथा राजपुरोहित सीमंत की जय-जयकार करना शुरू कर दिया। यह देख वह चारों पंडित कुछ भी बोले बिना जैसे के तैसे एक पुतले की तरह बैठे रहे। राजा के कर्मचारियों ने अत्यंत मेहनत के पश्चात प्रजाजनों को शोरगुल शांत किया। भवन के एकमात्र आधार रूप स्तंभों का चूरा हुआ पड़ा था फिर भी वह आठों महल विमान की तरह हवा में अधर लटक रहे थे और राज सभा के लोग उन अधर लटके महलों को देख रहे थे और मन ही मन विश्वावसु की अनेक प्रकार से प्रशंसा कर रहे थे। सब सभा को शांत हुई देखकर विश्वावसु अपने आसन के ऊपर से उठे तथा राजा की आज्ञा लेकर वह बोले, हे राजन! पूज्य पंडितवर तथा नगरजनों आपको इस तरह अधर रहे हुए भवनों को देखकर नई बात लग रही होगी, परंतु श्रीविराट विश्वकर्मा के सान्निध्य में रहने वाले ऐसे प्रभु परमभक्तों को तो यह प्रभु को एकमात्र निर्जीव लीलाओं में कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं दिखता। प्रभु ने अपने भक्तों को ऐसे आचार्यों द्वारा महान शिल्पशास्त्रों का इतना विस्तार किया और उससे भी ऐेसे विचित्र रचना वाले भवनों का निर्माण का उल्लेख किया है। वह सब उन्होंने क्या बिना विचारे ही किया होगा, नहीं ऐसा नहीं हो सकता। प्रभु ने जो कुछ निर्माण किया है उसकी रक्षा के भी उपाय उन प्रभु के निर्माण के साथ ही तय किए हैं। ये जो भवन आपके देखने में आ रहे हैं उन सब भवनों की रचना आद्य शिल्पाशास्त्र के पूर्व महान आचार्यों के ही निर्देश से किए हैं।


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