सफलता का रहस्य

By: Dec 29th, 2018 12:05 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

यहां भाषण विस्तारपूर्वक उद्धृत किया गया है। उन्होंने गिरजे और क्लबों में इतनी बार उपदेश दिया है कि उनके धर्म से अब हम भी परिचित हो गए हैं। उनकी संस्कृति, उनकी वाक्पटुता, उनके आकर्षक एवं अद्भुत व्यक्तित्व ने हमें हिंदू सभ्यता का एक नया आलोक दिया है। उनके सुंदर तेजस्वी मुखमंडल तथा उनकी गंभीर सुललित वाणी ने अनायास अपने वश में कर लिया है। बिना किसी प्रकार के नोट्स की सहायता के ही वे भाषण देते हैं, अपने तथ्य तथा निष्कर्ष को वे अपूर्व ढंग से एवं आंतरिक्ता के साथ सम्मुख रखते हैं और उनकी स्वतःस्फूर्त प्रेरणा उनके भाषण को कई बार अपूर्व वाक्पटुता से युक्त कर देती है। वही विवेकानंद निश्चय ही धर्म महासभा में महानतम व्यक्ति हैं। उनका भाषण सुनने के बाद यह मालूम होता है कि इस राष्ट्र को धर्मोपदेशक भेजना कितनी मूर्खता है। हेरल्ड (यहां का सबसे बड़ा समाचारपत्र) इतना उद्धृत करके अब मैं समाप्त करता हूं, नहीं तो आप मुझे घमंडी समझ बैठेंगे, परंतु आपके लिए इतना आवश्यक था, क्योंकि आप प्रायः कूप मंडूक बने बैठे हैं और दूसरे स्थानों में संसार किस गति से चल रहा है यह देखना भी नहीं चाहते। मेरे उदार मित्र! मेरा मतलब आपसे व्यक्तिशः नहीं है, सामान्य रूप से हमारे संपूर्ण राष्ट्र से है। मैं यहां वही हूं,जैसा भारत में था, केवल यहां इस उन्नत सभ्य देश में गुणग्राहकता है, सहानुभूति है, जो हमारे अशिक्षित मूर्ख स्वप्न में भी नहीं सोच सकते। वहां हमारे स्वजन हम साधुओं को रोटी का टुकड़ा भी कांख-कांख कर देते हैं, यहां एक व्याख्यान के लिए ये लोग एक हजार रुपए देने को और उस शिक्षा के लिए सदा कृतज्ञ रहने को तैयार रहते हैं। संगठन एवं मेल ही पाश्चात्य देशवासियों की सफलता का रहस्य है। यह तभी संभव है, जब परस्पर भरोसा, सहयोग और सहायता का भाव हो। उदाहरणार्थ यहां जैन धर्मावलंबी श्री वीरचंद गांधी हैं, जिन्हें आप मुंबई में अच्छी तरह जानते थे। ये महाशय इस विकट शीतकाल में भी निरामिष भोजन करते हैं और अपने देशवासियों एवं अपने धर्म का दृढ़ता से समर्थन करते हैं। यहां के लोगों को वे बहुत अच्छे लगते हैं, परंतु जिन लोगों ने उन्हें भेजा, वे क्या कर रहे हैं? वे उन्हें जातिच्युत करने की चेष्टा में लगे हैं। दासों में ही स्वभावतः ईर्ष्या उत्पन्न होती है और फिर वह ईर्ष्या ही उन्हें पतितावस्था की खाई में ले जाती है। यहां थे, सब चाहते थे कि व्याख्यान देकर कुछ धनोपार्जन करें। कुछ उन्होंने किया भी परंतु मैंने उनसे अधिक सफलता प्राप्त की।


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