सार्वजनिक धन की फिजूलखर्ची

By: Dec 14th, 2018 12:08 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

विचारों की एक पाठशाला मानती है कि शादी अथवा जीवन से जुड़े अन्य समारोहों पर लोग निजी रूप से जो धन खर्च करते हैं, वह जाया नहीं जाता है क्योंकि इससे एक बड़ी आबादी को काम मिलते हैं तथा आय होती है। इसके बावजूद  मेरी समझ से यह बाहर की बात है कि क्यों लोग दौलत का अनावश्यक प्रदर्शन करते हैं तथा यह सब कुछ बिना किसी सामाजिक प्रतिबंध के हो रहा है। यह प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। निजी दौलत व सार्वजनिक संपदा में एक बड़ा अंतर होता है। पहले वाली किसी व्यक्ति के अपने प्रयासों का फल होता है, जबकि बाद वाली दौलत जनता पर कर लगा कर जुटाई जाती है जिसे जनता के हित में ही खर्च किया जाना चाहिए…

इन दिनों चुनावों व शादियों में दौलत की बरसात हो रही है। देश के पांच राज्य इन दिनों चुनावों के दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन चुनावों से अधिक अभिजात्य वर्ग के लोगों की शादियों को लेकर मीडिया में सुर्खियां बन रही हैं। इन शादियों में फिल्म स्टार तथा बड़े उद्योगपतियों की शादियां शामिल हैं। एक टेलीविजन समाचार चैनल पर एक दिन मैंने बड़ी सुर्खियों की छह आइटम राजनीति या राष्ट्र से जुड़े मसलों की देखी, किंतु 13 सुर्खियां फिल्म स्टार अथवा बड़े चेहरों की शादियों से संबंधित थी। स्क्रीन पर बाकी सारा प्रदर्शन सोने अथवा चांदी की चमक से भरपूर था। ऐसी स्थिति में जबकि देश की एक-तिहाई आबादी गरीबी की रेखा से नीचे रह रही है, किसी को इस बात की चिंता नहीं है कि ऐश्वर्य के साधनों पर बहुत ज्यादा खर्च हो रहा है तथा लगता ऐसे है जैसे पैसे को पानी की तरह बहाया जा रहा हो। इस बात में कोई संदेह नहीं कि समाजवाद की मंद ध्वनि के बीच कई लोग हरेक मापदंड के अनुसार अद्भुत ढंग से अमीर होते जा रहे हैं। मैं जंगलों से भरपूर एक गांव में रहता हूं तथा पिछले दस वर्षों में मैंने देखा कि लोग पोशाक, जीवन स्तर व परिवहन साधनों के मामले में अमीर हुए हैं। इस गांव में दो सौ घर आबाद हैं तथा हर दूसरे घर के पास एक कार अथवा बाइक है। हर घर शादी या जन्म दिन कार्यक्रमों पर खुले हाथों से धन खर्च करता है तथा गांव में हर दूसरे हफ्ते डीजे बज रहा होता है।

विचारों की एक पाठशाला मानती है कि शादी अथवा जीवन से जुड़े अन्य समारोहों पर लोग निजी रूप से जो धन खर्च करते हैं, वह जाया नहीं जाता है क्योंकि इससे एक बड़ी आबादी को काम मिलते हैं तथा आय होती है। इसके बावजूद  मेरी समझ से यह बाहर की बात है कि क्यों लोग दौलत का अनावश्यक प्रदर्शन करते हैं तथा यह सब कुछ बिना किसी सामाजिक प्रतिबंध के हो रहा है। यह प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। निजी दौलत व सार्वजनिक संपदा में एक बड़ा अंतर होता है। पहले वाली किसी व्यक्ति के अपने प्रयासों का फल होता है, जबकि बाद वाली दौलत जनता पर कर लगा कर जुटाई जाती है जिसे जनता के हित में ही खर्च किया जाना चाहिए। जब मुकेश अंबानी ने 27 मंजिला भवन बनाया तो लोगों ने इसे केवल विस्मय के साथ देखा।  यह उनके अपने पैसे थे, किंतु क्या उन्हें इस तरह का मकान बनाने की जरूरत थी और यहां तक कि अगर जरूरत भी थी क्योंकि इसमें कार्यालय भी शामिल थे, तो भी इस तरह के दिखावे की क्या जरूरत थी।

इसके बावजूद यह उनका अपना धन था तथा इसे खर्च करने का अधिकार भी उनको है। परंतु कई अवसरों पर सार्वजनिक धन की फिजूलखर्ची देखकर जनता को दुख होता है। मिसाल के तौर पर घाटे की अर्थव्यवस्था में चल रहे तथा कर्ज के बल पर अपनी गाड़ी चला रहे हिमाचल जैसे राज्य को क्या जरूरत थी कि 10 लग्जरी कारों की खरीद पर 2.3 करोड़ रुपए खर्च कर दिए जाते अथवा इसके विधायक बिना किसी सार्वजनिक अंकुश के अपना वेतन बढ़ा लेते हैं। इसमें कोई सार्वजनिक सरोकार भी दिखाई नहीं देता है। इसी तरह तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने 50 एकड़ जमीन में सरकारी आवास, जिसमें आफिस की सुविधा भी है, बना डाला। उधर पंजाब सरकार ने 400 लग्जरी कारों की खरीद को मंजूरी दे दी। सार्वजनिक धन की यह फिजूलखर्ची सरकारी धन के दुरुपयोग के बराबर है। राज्यों के मुखिया तथा प्रभावशाली सरकारी अधिकारियों पर फिजूलखर्ची आम हो गई है। सरकारी अधिकारियोें के लिए धन या सत्ता का प्रदर्शन निंदनीय माना जाना चाहिए तथा खुले हाथों से सरकारी धन की बर्बादी पर कोई न कोई प्रतिबंध अवश्य लगाया जाना चाहिए। जबकि सार्वजनिक सेवकों को दिखावे के मामले में विनम्र होना चाहिए, यहां तक कि अधिकता में दौलत का निजी प्रदर्शन भी एक अच्छी परिपाटी नहीं है, भले ही यह गैर कानूनी बात नहीं है। अनुष्का कोहली की शादी हाल में खूब धूम-धड़ाके के साथ हुई। उनकी शादी को इटैलियन गोल्डन टच दिया गया। उधर प्रियंका चोपड़ा तथा दीपिका पादुकोण की शादियों में भी दौलत के प्रदर्शन को लेकर प्रतिस्पर्धा चली। अंबानी के एक समारोह में भी पानी की तरह पैसा बहाया गया।

वहां विदेश से इंटरटेनमेंट करने वाले बुलाए गए और इस पर करीब 10 करोड़ रुपए खर्च किए गए। दिखावे की इस अंधी दौड़ का परिणाम यह है कि इसने हमारे ग्रामीण जीवन तथा कस्बों को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। जिस जनजातीय गांव में मैं रहता हूं, वहां प्रत्येक शादी में डिस्को जॉकी व इंटरटेनर होते हैं। अपनी संस्कृति व परंपराओं को संरक्षित करने के बजाय हम बिना किसी सामाजिक सरोकार के ऐश्वर्य के पीछे भाग रहे हैं। कई अवसरों पर मैं लोक नृत्य को प्राथमिकता देने की बात कहता हूं, परंतु अगर कहीं डिस्को नृत्य चल रहा हो, तो इस तरह की मांग को कोई तवज्जो नहीं देता है। कई अवसरों पर समारोहों में हम इतना शोर मचा देते हैं कि परस्पर कोई संवाद भी नहीं हो पाता तथा न ही एक-दूसरे को नमस्कार हो पाता है। मितव्ययिता का एक समय ऐसा था जब मैंने विश्वविद्यालय में प्रथम आने पर स्वर्ण पदक के बजाय रजत पदक प्राप्त किया।

मेरे विरोध पर मुझे बताया गया कि इसे यूनिवर्सिटी मेडल कहते हैं। अपनी शादी में मैंने 22 कैरेट गोल्ड पर सरकार का प्रतिबंध सहन किया तथा मैंने 18 सीटी रिंग प्राप्त की। अब जबकि प्रतिबंध को हटा दिया गया है, मैंने वो अंगूठी अभी भी संरक्षित रखी हुई है। आखिर शादी पर दी गई यह अंगूठी प्यार व सम्मान की प्रतीक है जो कि निश्चित ही हीरे जडि़त व मिलियन डालर मूल्य वाली नहीं है। नैतिक व सामाजिक मूल्यों का क्षय हो रहा है, जबकि दौलत की शक्ति हमारे महिमा मंडन अथवा पारिवारिक प्रतिष्ठा पर हावी हो रही है। हमारे नेताओं को सादगी की मिसाल कायम करनी चाहिए तथा मितव्ययी होना चाहिए।

महात्मा गांधी की विचारधारा में विश्वास रखने वाले लोगों को विनम्र व सादगी से भरपूर होना चाहिए। एक शिष्ट व सादा जीवन गांधी जी की आत्मा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है।


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