स्कंद पुराण की महिमा

By: Dec 29th, 2018 12:05 am

गतांक से आगे…

आकाश गंगा तीर्थ का वर्णन करते हुए पुराणकार विष्णु और रामानुजाचार्य की भेंट कराते हैं। रामानुजाचार्य वैष्णव संप्रदाय के संस्थापक थे। राम की पूजा सारे भारत में स्थापित करने का श्रेय इन्हें जाता है। भगवान विष्णु रामानुजाचार्य को स्वयं बताते हैं कि सूर्य की मेष राशि में चित्रा नक्षत्र से युक्त पूर्णिमा को जो भी व्यक्ति आकाश गंगा तीर्थ में स्नान करेगा, उसे अनंत पुण्य प्राप्त होंगे। भगवान के सच्चे भक्तों के लक्षण स्वयं विष्णु भगवान रामानुजाचार्य को बताकर उनका सम्मान करते हैं। यहां पुराणकार पूजा-पाठ और कर्मकांड के बजाय सादा जीवन, सदाचार, अहिंसा, जीव-कल्याण, समभाव तथा परोपकार पर अधिक बल देता है। स्कंद पुराण कहता है कि ममता मोह त्याग कर निर्मल चित्त से मनुष्य को भगवान के चरणों में मन लगाना चाहिए।

तभी वह कर्म के बंधनों से मुक्त हो सकता है। मन के शांत हो जाने पर ही व्यक्ति योगी हो पाता है। जो व्यक्ति राग-द्वेष छोड़कर क्रोध और लोभ से दूर रहता है, सभी पर समान दृष्टि रखता है तथा शौच-सदाचार से युक्त रहता है, वही सच्चा योगी है।

बद्रिकाश्रम  की महिमा का बखान करते हुए स्वयं शंकर जी कहते हैं कि इस तीर्थ में नारद शिला,मार्कंडेय शिला, गरुड़ शिला, वराह शिला और नारसिंही शिला, ये पांच शिलाएं संपूर्ण मनोरथ सिद्ध करने वाली हैं। बद्रीनाथ प्रसिद्ध ब्रह्मतीर्थ है। यहां भगवान विष्णु ने ह्यग्रीव का अवतार लेकर मधु-कैटभ दैत्यों से वेदों को मुक्त कराया था। इसी खंड में श्रावण और कार्तिक मास के माहात्म्य का वर्णन भी प्राप्त होता है। तदुपरांत वैशाख मास का महात्म्य प्रतिपादित है। इस मास में दान का विशेष महत्त्व दर्शाना गया है। इसी खंड में अयोध्या माहात्म्य का वर्णन भी विस्तारपूर्वक किया गया है।

ब्रह्म खंड – ब्रह्म खंड में रामेश्वर क्षेत्र के सेतु और भगवान राम द्वारा बालुकामय शिवलिंग की स्थापना की महिमा गाई गई है। इस क्षेत्र के अन्य चौबीस प्रधान तीर्थों, चक्र तीर्थ, सीता सरोवर तीर्थ, मंगल तीर्थ, ब्रह्म कुंड, हनुमत्कुंड, अगस्त्य तीर्थ, राम तीर्थ, लक्ष्मण तीर्थ, लक्ष्मी तीर्थ, शिव तीर्थ, शंख तीर्थ, गंगा तीर्थ, कोटि तीर्थ, मानस तीर्थ, धनुषकोटि तीर्थ आदि की महिमा का वर्णन भी विस्तार से है। तीर्थ माहात्म्य के उल्लेख के उपरांत धर्म और सदाचार माहात्म्य का वर्णन भी किया गया है। ह्यग्रीव, कलिधर्म और चतुर्मास स्नान के महत्त्व का भी उल्लेख हुआ है। अश्वत्थामा द्वारा सोते हुए पांडव पुत्रों के वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए धनुषकोटि तीर्थ में स्नान करने की कथा कही गई है। इसी खंड में पंचाक्षर मंत्र की महिमा का भी वर्णन है। भगवान शिव ने स्वयं ॐ नमः शिवाय नामक आद्य मंत्र कहा था। जो व्यक्ति इस मंत्र का उच्चारण करके शिव का ध्यान करता है, उसे किसी तीर्थ, किसी जप-तप अथवा व्रत आदि करने की आवश्यकता नहीं होती। उक्त मंत्र समस्त पापों का नाश करने वाला है। यह मंत्र कभी भी, कहीं भी और कोई भी जप करता है। यह सभी का कल्याण करने वाला मंत्र है। काशी खंड- काशी खंड में तीर्थों, गायत्री महिमा, वाराणसी के मणिकर्णिका घाट का आख्यान, गंगा महिमा वर्णन, दशहरा स्तोत्र कथन, वाराणसी महिमा, ज्ञानवापी माहात्म्य, योगाख्यान, दशाश्वमेघ घाट का माहात्म्य, त्रिलोचन आविर्भाव वर्णन तथा व्यास भुजस्तंभ आदि का उल्लेख किया गया है।काशी के माहात्म्य का वर्णन करते हुए पुराणकार कहता है

असि संभेदतोगेन काशीसंस्थोऽमृतो भवेत।

देहत्यागोऽत्रवैदानं देहत्यागोऽत्रवैतपः॥

अर्थात अनेक जन्मों से प्रसिद्ध प्राकृत गुणों से युक्त तथा असि सम्भेद के योग से काशीपुरी में निवास करने से विद्वान पुरुष अमृतमय हो जाता है। वहां अपने शरीर का त्याग कर देना ही दान होता है। यही सबसे बड़ा तप है। इस पुरी में अपना शरीर छोड़ना बड़ा भारी योगाभ्यास है, जो मोक्ष तथा सुख देने वाला है।


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