हाटी समुदाय के सब्र का टूटता बांध

By: Dec 22nd, 2018 12:06 am

दिनेश कुमार पुंडीर

लेखक, गिरिपार से हैं

प्रदेश सरकार और नोडल एजेंसियां प्रदेश से अपनी रिपोर्ट भेजती हैं कि हाटी कबायली क्षेत्र जनजातीय मांग का हकदार है, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर फाइलों में हमेशा कोई न कोई आपत्ति दर्ज करवाकर फाइल लौटा दी जाती है। इससे क्षेत्र के युवा वर्ग मेंआंदोलन की चिंगारी सुलगने लगी है। युवा वर्ग आगामी लोकसभा चुनाव से पूर्व इस मामले में सकारात्मक परिणाम की मांग कर रहा है। हाटी समुदाय तो पिछले पांच दशकों से अधिक समय से दोनों दलों से सवाल पूछ रहा है कि आखिर उनकी मांग पूरी भी होगी या सिर्फ इसे चुनावी हथियार के तौर पर ही इस्तेमाल किया जाएगा…

हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर की अढ़ाई लाख से अधिक आबादी वाले गिरिपार क्षेत्र के लोगों की इस क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित करने की मांग को पांच दशक से अधिक का समय हो गया है, लेकिन अभी तक इस मामले में फाइल कछुआ गति से आगे सरक रही है।  हर वह जायज और शांतिपूर्ण ढंग से प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे क्षेत्र की जनता को यह अधिकार मिल सके। यह प्रयास करीब पांच दशकों से चल रहे हैं। प्रशासनिक और राजनीतिक स्तर पर समिति ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है, फिर भी यह मामला पूरा नहीं हो रहा, जिससे यह मांग कम और राजनीतिक स्टंट ज्यादा प्रतीत हो रहा है। पिछले करीब डेढ़ दशक से तो यह मुद्दा बंद बोतल में जिन्न की तरह चुनाव में ही बाहर निकलता दिखाई देता है। वादे किए जाते हैं, लेकिन पूरे नहीं हो रहे हैं। अब केंद्रीय हाटी समिति तो गांधी जी के नक्शे कदमों पर चलकर अहिंसा से इस मांग को पूरा करने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन क्षेत्र के युवाओं का सब्र अब जवाब देने लगा है। प्रदेश सरकार और नोडल एजेंसियां प्रदेश से अपनी रिपोर्ट भेजती हैं कि हाटी कबायली क्षेत्र जनजातीय मांग का हकदार है, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर फाइलों में हमेशा कोई न कोई आपत्ति दर्ज करवाकर फाइल लौटा दी जाती है। इससे क्षेत्र के युवा वर्ग मेंआंदोलन की चिंगारी सुलगने लगी है। इस मामले को लेकर क्षेत्र में ‘हाटी अधिकार मंच’ के नाम से एक युवा संगठन खड़ा हो गया हैं और मांग को लेकर यह मंच दो-तीन जगह प्रदर्शन भी कर चुके हैं। युवा वर्ग आगामी लोकसभा चुनाव से पूर्व इस मामले मेंसकारात्मक परिणाम की मांग कर रहा है। हाटी समुदाय तो पिछले पांच दशकों से अधिक समय से दोनों दलों से सवाल पूछ रहा है कि आखिर उनकी मांग पूरी भी होगी या सिर्फ इसे चुनावी हथियार के तौर पर ही इस्तेमाल किया जाएगा।

गौरतलब है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने व नाहन में चुनावी सभा में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के हाटी समुदाय को जनजाति का दर्जा दिलाने के लिए दिए आश्वासन और प्रदेश की सरकार द्वारा गिरिपार की जनजातिय सर्वे की रिपोर्ट केंद्र को भेजे जाने के बाद ट्रांसगिरी क्षेत्र के अढ़ाई लाख हाटियों की उम्मीदें फिर से जगी। उसके बाद हरिपुरधार में जनजातीय मामले के केंद्रीय मंत्री जुएल ओराम ने भी क्षेत्र के लोगों की इस मांग को पूरा करने का आश्वासन दिया। कई बार हाटी समिति की केंद्रीय कार्यकारिणी का प्रतिनिधिमंडल केंद्र में जाकर पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमाहेन सिंह और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक से मिल चुका है और अपनी बात तथ्यों के साथ उनके समक्ष रख चुका है। जिला सिरमौर का ट्रांसगिरी क्षेत्र काफी व्यापक है। यह गिरि नदी के पार का इलाका है। इसमें शिलाई विधानसभा क्षेत्र की तहसील शिलाई कमरउ तहसील, रोनहाट उप-तहसील, पांवटा विधानसभा क्षेत्र के आंज-भौज क्षेत्र, रेणुका विधानसभा क्षेत्र की संगड़ाह, नौहराधार व पच्छाद विधानसभा क्षेत्र के राजगढ़ तहसील की 133 पंचायतों व एक नगर पंचायत में करीब अढ़ाई लाख से अधिक हाटी समुदाय के लोग रहते हैं। हाटी समिति के अध्यक्ष डा. अमीं चंद और महासचिव कुंदन सिंह शास्त्री ने बताया कि हाटी समुदाय के लोग जनजाति दर्जे की मांग को लेकर 50 सालों से भी अधिक समय लगातार संघर्ष कर रहे हैं। हाटी लोग जौनसार बाबर की तर्ज पर जनजाति की मांग कर रहे हैं। क्षेत्र के लोगों का तर्क है कि जब ट्रांसगिरि के हाटियों व जौनसार बाबर क्षेत्र में रहने वाले जौनसारियों का रहन-सहन, धार्मिक परंपरा, खान-पान, रीति-रिवाज, पहनावा व भौगोलिक संरचना एक समान है, तो फिर हाटियों को जनजाति के दर्जे से वंचित रखना अनुचित है। पड़ोसी राज्य उत्तराखंड, जो पहले उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था, के जौनसार बाबर क्षेत्र के जौनसारियों को जनजाति का दर्जा 1967 में मिल चुका है, जबकि दोनों क्षेत्रों में बहुत सारी समानताएं हैं।

उस समय गिरिपार क्षेत्र को यह दर्जा नहीं मिला। तभी से इसी के साथ लगते क्षेत्र के हाटी समुदाय के लोग भी जनजाति की मांग करते आ रहे हैं। जनजाति का दर्जा देने के लिए समितियों का गठन किया गया। मांग उठाने के लिए प्रतिनिधिमंडल सरकार से मिला। 1986 में केंद्र सरकार ने प्रदेश सरकार को हाटी जनजाति की रिपोर्ट पेश करने को कहा। गठित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट प्रदेश सरकार को भेजी, जिसमें हाटियों की मांग को जायज बताया गया। 1991 में विधानसभा ने सदन में हाटी को जनजाति का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को अपनी सिफारिश भेजी। इसके बाद केंद्र के एससी और एसटी आयोग में जनजातीय दर्जे की फाइल धूल फांकती रही। प्रदेश मेंभाजपा सरकार बनने के बाद यह मामला फिर से आगे बढ़ा। प्रदेश की भाजपा सरकार ने क्षेत्र की मांग की सर्वे फाइल आरजीआई को भेजी, जिसमें कुछ आपत्तियां लगाकर फाइल वापस केंद्र सरकार को भेजी गई हैं, जिसके बाद युवा मंच में रोष व्याप्त है। युवा आगामी लोकसभा चुनाव के बहिष्कार तक की चेतावनी दे रहे हैं।

हाटी अधिक मंच के संयोजक इंद्र सिंह राणा कहते हैं कि यदि शांतिपूर्ण ढंग से यह मामला हल होना होता, तो पांच दशक नहीं लगते। उनका कहना है कि आजादी की लड़ाई में भले ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा की नीति का बड़ा रोल रहा हो, लेकिन क्रांतिकारी नेताजी, चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह आदि युवाओं के योगदान को भी नहीं भुलाया जा सकता है। लगता है कि अब इस मामले में युवाओं के सड़कों पर उतरने का समय आ गया है।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।                       -संपादक


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