हिमाचली मिलकीयत के लुटेरे

By: Dec 5th, 2018 12:05 am

कहीं तो हिमाचल का गलत दोहन, हमारी मुसीबतें बढ़ाने और हर तरह का अपराध अपने घोंसले बनाने लगा। सिरमौर के कालाअंब में जीएसटी फ्रॉड का अनावृत्त चेहरा, हमारी मिलकीयत के लुटेरों का हुलिया बयान कर रहा है। यह हिमाचल के कर साम्राज्य में ऐसी सेंध है, जो सीधे राज्य के खजाने पर प्रहार करती रही। प्रसन्नता का विषय यह है कि प्रदेश का आबकारी एवं कराधान विभाग चौकसी से ऐसे लोगों के खिलाफ शिकंजा कस रहा है। जीएसटी के सधे हुए हाथ जिस पारदर्शिता का हवाला दे रहे थे, उसमें सुराख ढूंढने की यह कोशिश तो पकड़ी गई, लेकिन चोर रास्तों को तहस-नहस करने की जरूरत अभी बाकी है। विडंबना यह भी कि जहां कहीं हिमाचल का औद्योगिक विस्तार हुआ, वहां कुछ ऐसे तत्त्वों की घुसपैठ भी हो गई, जो हिमाचल को आर्थिक अपराध की बेडि़यां पहनाने लगे। इंडियन टेक्नोमैक घोटाले के बाद जीएसटी हेराफेरी का पर्दाफाश यह भी साबित कर रहा है कि औद्योगिक आस्तीन में कितने सांप छिपे हैं। बीबीएन के फार्मा हब बनने की छवि अब धीरे-धीरे दवाइयों के मानकों की अनदेखी या घटिया उत्पादन तक पहुंच गई, तो अपराध का ताना-बाना कहीं गहराई तक अपना काला चेहरा बता रहा है। हिमाचल में आर्थिक अपराध केवल औद्योगिक बस्तियों में ही नहीं, बल्कि जमीनों की खरीद-फरोख्त से बैंकिंग प्रणाली तक की आंखों में धूल झोंकने तक विराजित है। धीरे-धीरे राज्य के सहकारी क्षेत्र ने भी लोगों के विश्वास को लूटना शुरू किया है। इस क्षेत्र की अपराध डायरी इतनी मोटी हो चुकी है कि अब दाग केंद्रीय सहकारी बैंकों के दामन पर भी लग चुके हैं। कांगड़ा केंद्रीय सहकारी बैंक ने जो सुर्खियां अभी हाल में बटोरी हैं, उनका ताल्लुक एनपीए की स्थिति को भयावह बताता है। इसलिए यह लाजिमी तौर पर देखना होगा कि ऐसे कौन से कारिंदे हैं, जो सहकारी बैंक की दीवारों पर दीमक की तरह पसर चुके हैं। विडंबना यह भी कि हिमाचल अब श्रम के बजाय आसानी से उपलब्ध धन पर कहीं ज्यादा केंद्रित हो रहा है। जिस राज्य में राशन से भाषण तक के एवज में सबसिडी मिलती हो, वहां आर्थिक अपराधों की जमीन स्वयं तैयार होती है। कब हिमाचल माफिया की जकड़ में आ गया, इसके बनिस्पत अब संपर्क साधना से एक बड़ा वर्ग राज्य की मिलकीयत को किसी न किसी रूप में हड़पना चाहता है। कहीं कर नीतियों की अस्पष्टता तथा नियमों की ढील भी इसका कारण बनती रही है। कर वंचना के मामलों में वृद्धि का आलम यह कि पद्धति और परिणाम के बीच चेतावनियां ही खोखली हो गईं। बैंकों की राशि लौटाने में असमर्थ वे भी दिखाई दे रहे हैं, जिन्हें कड़े कानूनों की पैरवी के लिए जनता ने समर्थन दिया। दुर्भाग्यवश राजनीतिक चार्जशीटों के खेल में असली माफिया दबंग होता गया और अब करोड़ों की कर चोरी भी आसानी से होने लगी। ऐसे में जब जयराम सरकार इन्वेस्टमेंट के अपने लक्ष्यों का खाका खींच चुकी है, तो यह लाजिमी तौर पर सुनिश्चित होना चाहिए कि निवेश की चहलकदमी में फ्रॉड तत्त्व प्रदेश को आशियाना न बना डालें। कमोबेश आज तक जो भी क्षेत्र निवेश के लिहाज से आगे बढ़ा, उसमें आर्थिक अपराध का ग्रॉफ भी खड़ा हो गया। बाहरी तत्त्वों के कारण आ रहे अपराध को रोकने के लिए व्यवस्थागत सतर्कता के अलावा नियम, नीति व कानूनों की फेहरिस्त भी सख्त करनी पड़ेगी। आपराधिक जगत के लिए प्रदेश की तरक्की के बीच अपनी तरक्की का हिसाब है, अतः प्रदेश को विभिन्न क्षेत्रों में पनपे हर तरह के अपराध से सतर्क होना पड़ेगा। बीबीएन में लूट, गुटीय संघर्ष के अलावा आर्थिक अपराधों में हुआ इजाफा हमारी कानून व्यवस्था के शोध, तैयारी और प्रशिक्षण को चुनौती दे रहा है। हिमाचली समाज जिस तीव्रता से मेहनत के बजाय आराम से जीने के महीने चुन रहा है, उसके कारण प्रवासी मजदूर, हुनर तथा संपर्क अपने साथ ऐसे मामले बटोर रहे हैं, जो पहले सुने नहीं। कुछ व्यसन इस दौरान आयात हो गए और इसी के साथ आयातित अपराध ने अपनी शाखा में हिमाचल का भी नाम लिख लिया। जाहिर है प्रदेश को अपनी आर्थिक तरक्की के रास्तों पर सतर्कता बढ़ाते हुए यह भी तय करना है कि भविष्य को रेखांकित करने का मसौदा क्या होगा। समय आ गया है जब प्रदेश अपनी आर्थिक राजधानी के रूप में बीबीएन को संवारे। आर्थिक पैमानों पर राज्य की सोच, व्यवस्था की पूर्णता तथा टैक्स साम्राज्य की सतर्कता के हिसाब से बीबीएन को उस मुकाम पर देखना होगा, ताकि इसके केंद्र में राज्य अपनी आर्थिकी, बैंकिंग प्रणाली, कर एकत्रिकरण तथा जांच-पड़ताल मशीनरी का बेहतर ढंग से संचालन कर सके। शिमला से आर्थिक, वित्तीय तथा करों से संबंधित विभागों के मुख्यालय बीबीएन स्थानांतरित करके, हिमाचल अपनी सतर्कता का नया मॉडल बना सकता है।

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