अघोषित करों से छुटकारा चाहिए

By: Jan 31st, 2019 12:05 am

अमृत महाजन

लेखक नूरपुर से हैं

बजट पास होने के कुछ ही समय के बाद बसों के किराए बढ़ा दिए जाते हैं। रेल किराए व भाड़े में भी वृद्धि कर दी जाती है। रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ जाती हैं। यहां तक कि सरकारी डिपुओं में गरीबों को मिलने वाली वस्तुओं की कीमतें भी कई बार बढ़ जाती हैं। यह कैसा करमुक्त बजट है? अगले महीने हिमाचल प्रदेश का वर्ष 2019-20 का बजट पेश होने जा रहा है। संभावना यही है कि यह भी करमुक्त बजट ही होगा…

यह सर्वविदित है कि हर वर्ष की तरह इस वर्ष का बजट भी विधानसभा में पेश होने जा रहा है। मैं जब से पैदा हुआ हूं, तब से लेकर आज तक हिमाचल का बजट करमुक्त पेश होता आया है और तालियों की गड़गड़ाहट से स्वीकृत भी हो जाता है। करमुक्त बजट का सीधा अर्थ है कि आगामी वर्ष में जनता पर कोई अतिरिक्त कर नहीं लगेगा। जनता खुश हो जाती है कि इस वर्ष महंगाई से छुटकारा मिल जाएगा, लेकिन यह बात लोगों को बेवकूफ बनाने जैसी है।

बजट पास होने के कुछ ही समय के बाद बसों के किराए बढ़ा दिए जाते हैं। रेल किराए व भाड़े में भी वृद्धि कर दी जाती है। रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ जाती हैं। यहां तक कि सरकारी डिपुओं में गरीबों को मिलने वाली वस्तुओं की कीमतें भी कई बार बढ़ जाती हैं। यह कैसा करमुक्त बजट है? अगले महीने हिमाचल प्रदेश का वर्ष 2019-20 का बजट पेश होने जा रहा है और देखिएगा कि यह भी परंपरा के अनुसार करमुक्त बजट ही होगा। करमुक्त बजट की एक बेमिसाल खूबी यह है कि हिमाचल सरकार के आदेशानुसार कुछ कर तो ऐसे लगाए जाते हैं कि जनता को पता ही न चले कि उनकी जेब कब कट गई? मिसाल के तौर पर पानी के बिलों का कमाल देखिए। हर वर्ष अप्रैल माह से चुपचाप पानी के बिलों में दस फीसदी अघोषित कर जोड़ दिया जाता है।

कुछ वर्षों में पानी के बिल इस निरंतर बढ़ोतरी से कई गुणा बढ़ चुके हैं। क्या यह बढ़ोतरी कर नहीं है? वैसे तो जब भी नई सरकार आती है, पिछली सरकार के निर्णयों की समीक्षा करती है। ऐसा रिवाज बन चुका है, लेकिन वही फैसले बदले जाते हैं जो उनके हित में होते हैं। क्या यह सरकार इस अनुचित फैसले को निरस्त करेगी? बिजली के बिल वर्ष के मध्य में कई बार बढ़ाए जाते हैं, वह भी चुपचाप बिना किसी घोषणा के। नूरपुर में कुछ महीनों से अजीब वसूली की जा रही है जिसका कारण विभाग के कर्मचारियों को भी पता नहीं है। बिल कम्प्यूटर से काटे जाते हैं, लेकिन जब बिल जमा करवाने जाते हैं तो कार्यालय का कम्प्यूटर कुछ और ही बोलता है, उसमें बिल की राशि ज्यादा बताई जाती है और उपभोक्ताओं को बढ़ा हुआ बिल देना पड़ता है। ऐसे कई प्रकार के अघोषित कर हैं जो जनता को देने पड़ते हैं। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि बजट में विधायकों तथा मंत्रियों के वेतन, भत्तों की बढ़ोतरी का जिक्र नहीं किया जाता और न ही कोई प्रावधान किया जाता है, लेकिन फिर भी जब जी चाहे, उनके लाखों के वेतन-भत्ते एक ही आवाज में स्वीकृत हो जाते हैं।

जब किसी मजदूर की दिहाड़ी बढ़ानी होती है तो पांच से दस रुपए प्रतिदिन बढ़ाई जाती है, उसके लिए भी मजदूर को 26 जनवरी या 15 अगस्त की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। इसके विपरीत अगर माननीयों को करोड़ों रुपए का प्रति वर्ष लाभ देना हो तो बजट में प्रावधान भी निकल आता है, पता नहीं यह कौनसा फार्मूला है। हिमाचल सरकार वरिष्ठ नागरिकों की बात तो करती है, लेकिन उनकी छोटी-छोटी मागों पर चुप्पी साध लेती है। सेवानिवृत्त कर्मचारियों के समागम में नेता तथा मुख्यमंत्री महोदय शिरकत तो अवश्य करते हैं, उनसे हमदर्दी भी जताते हैं, लेकिन घोषणा कोई नहीं करते। ये कर्मचारी कई वर्षों से 65-70-75 वर्ष के आयु वर्ग के लिए क्रमशः 5-10-15 फीसदी भत्ते को उनकी मूल पेंशन में समायोजित करने के लिए सरकार से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन पिछली सरकार की तरह इस सरकार के राज में भी मायूसी ही हाथ लगी है।

इस मांग को पूरा करने में भारी धनराशि की भी आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता है तो सिर्फ सकारात्मक सोच की। इसलिए जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके वरिष्ठ नागरिकों की मांग पूरी कर दी जाए तो शायद मौजूदा सरकार को आगामी लोकसभा चुनाव में लाभ मिल जाए। वरन लाखों की संख्या में ये वरिष्ठ नागरिक नोटा का सहारा लेने को मजबूर हो जाएंगे। इसलिए प्रदेश की जनता यह आशा रखती है कि पानी के बिलों की प्रति वर्ष अघोषित बढ़ोतरी पर ब्रेक लगेगी और सेवानिवृत्त कर्मचारियों की छोटी-छोटी मांगों को मानने की कृपा सरकार करेगी। आशा की जाती है कि इस वर्ष का बजट हर वर्ग के लिए राहत लेकर आएगा। वैसे अगर जनता से पूछा जाए कि भारत में सबसे अधिक आश्चर्यजनक तथा जनता को बेवकूफ बनाने वाली वस्तु क्या है तो वह बेबाक कहेंगे कि यह वस्तु विधानसभा में पेश होने वाला बजट है और यह एक कटु सत्य है। इसलिए इस बार यह आशा की जाती है कि सरकार अघोषित रूप से कोई कर नहीं लगाएगी तथा जो कर अभी तक अघोषित रूप से लगाए गए हैं, उन्हें हटाने के लिए पहल करेगी। सरकार का यह दायित्व बनता है कि वह जनता पर अघोषित करों का बोझ न लादे। अब तक चली आ रही अघोषित करों की परंपरा को सरकार को रोकना ही होगा अन्यथा इस वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में लोग सरकारी पक्ष वाली पार्टी को मतदान नहीं करेंगे। आशा है कि सरकार इस दिशा में त्वरित रूप से विचार करेगी तथा जनता को अघोषित करों के बोझ से मुक्ति दिलाकर उसका आशीर्वाद प्राप्त करेगी।


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