अस्तित्व को जूझती जैव-प्रौद्योगिकी

By: Jan 29th, 2019 12:06 am

सतपाल

सीनियर रिसर्च फेलो, अर्थशास्त्र विभाग

जैव-प्रौद्योगिकी व सूक्ष्म जीव विज्ञान जहां एक ओर समाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है, वहीं हिमाचल प्रदेश में इन विषयों का महाविद्यालयों में अध्यापन नहीं किया जा रहा है। अगर है भी तो प्रदेश के मात्र एक- दो महाविद्यालयों तक ही सीमित है…

जैव-प्रौद्योगिकी वर्तमान में मानव जीवन में एक महत्त्वपूर्ण विषय के रूप में उभरकर सामने आया है। मानवीय उपयोगिताओं के लिए सूक्ष्म जीवधारियों, जीवित पादप एवं जंतुओं की कोशिकाओं का औद्योगिक उपयोग कर उत्पाद तैयार करना जैव-प्रौद्योगिकी है। जैव-प्रौद्योगिकी मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। जैव-प्रौद्योगिकी जीव-विज्ञान में तकनीकी के प्रयोग से एक नए विषय के रूप में उभरकर सामने आया है। जब हम चिकित्सा के क्षेत्र में जैव-प्रौद्योगिकी के प्रयोग को देखते हैं, जैसे तरह-तरह के टैस्ट एड्स की जांच के लिए एलिसा एवं वेस्टर्न ब्लॉट कीट का निर्माण, आणविक स्तर पर डीएनए, स्टेम सेल विकास व क्लोनिंग  इत्यादि करना उसे रेड-जैव-प्रौद्योगिकी के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है। जैव-प्रौद्योगिकी का उपयोग जब पौधों एवं वनस्पतियों में आनुवांशिक रूप से संशोधित फसल, उत्तक संवर्धन एवं जैव-उर्वरक के लिए किया जाता है, तो उसे ग्रीन-जैव-प्रौद्योगिकी के नाम से जाना जाता है।

जैव-प्रौद्योगिकी में औद्योगिक उत्पादन एवं प्रक्रियाएं जैसे एंजाइम, एंटीबाडी, हर्मोनोस उत्पादन व अल्कोहल उत्पादन वाइट जैव-प्रौद्योगिकी में तथा मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए मच्छरों को आनुवांशिक बदलाव कर रोगाणु वाहक होने के गुण समाप्त करना येलो-जैव प्रौद्योगिकी के अंतर्गत आता है। इतना ही नहीं, आज मनुष्य जीवन का ऐसा कोई पहलु शायद ही बचा हो, जिसमें जैव-प्रौद्योगिकी अपना योगदान न दे रहा हो। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में जैव-प्रौद्योगिकी विषय को स्नातकोत्तर कक्षा में शुरू करके एक अनूठी पहल की थी, जब नब्बे के दशक में इस विषय को शुरू किया गया था। आज हिमाचल विश्वविद्यालय में प्रतिवर्ष अनेक युवा अपनी जैव-प्रौद्योगिकी में स्नातकोत्तर की उपाधि के साथ-साथ एमफिल व पीएचडी की उपाधि प्राप्त करते हैं, परंतु जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रदेश में कोई भी रोजगार के अवसर न पाकर इन उपाधिधारकों को दर-दर की ठोकरें खाने पर विवश होना पड़ रहा है। प्रदेश में कृषि के साथ-साथ बागबानी की अपार संभावनाएं हैं। अतः कृषि व बागबानी को अधिक उन्नत, विकसित व आधुनिक बनाने के लिए जैव-प्रौद्योगिकी का उत्कृष्ट योगदान हो सकता है, जिसके लिए निरंतर प्रयास करने की जरूरत है। इससे न केवल कृषि व बागबानी को लाभ होगा, बल्कि जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में रोजगार की संभवनाएं भी विकसित होंगी। प्रदेश में स्वास्थ्य क्षेत्र में भी जैव-प्रौद्योगिकी अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देने में समर्थ है, परंतु प्रदेश में अस्पताल में विकसित सभी प्रयोगशालाएं ठेकेदारों द्वारा मुनाफा कमाने की दृष्टि से चलाई जा रही हैं, जिसमें जैव-प्रौद्योगिकी विषय में यहां तक की पीएचडी धारक भी शोषित होकर काम करने को  विवश हैं। हिमाचल प्रदेश में जैव-प्रौद्योगिकी के साथ-साथ सूक्ष्म जीव विज्ञान भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता हुआ दिखाई पड़ता है। जैव-प्रौद्योगिकी व सूक्ष्म जीव विज्ञान जहां एक ओर समाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है, वहीं प्रदेश में इन विषयों का महाविद्यालयों में अध्यापन नहीं किया जा रहा है। अगर है भी तो प्रदेश के मात्र एक-दो महाविद्यालयों तक ही सीमित है। उन महाविद्यालयों में भी इन विषयों का अध्यापन स्वयं वित्त पाठ्यक्रम अर्थात सेल्फ  फाइनेंस कोर्स योजना के अंतर्गत किया जा रहा है। अतः जैव-प्रौद्योगिकी व सूक्ष्म जीव विज्ञान का अध्यापन प्रदेश में महाविद्यालय स्तर पर महंगा होने के साथ-साथ दुर्लभ भी है, जिससे प्रदेश के अनेक छात्र इन विषयों की पढ़ाई करने से वंचित रहते हैं। अतः उन्हें अध्ययन के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है, इसके बावजूद इतनी महंगी शिक्षा प्राप्त करके प्रदेश में रोजगार के उचित अवसर नहीं मिलते, यह देख युवाओं में मायूसी का होना लाजिमी है। प्रदेश में जहां एक ओर इन विषयों की महाविद्यालयों में अधययन उपलब्धता की कमी है, वहीं दूसरी ओर इन विषयों में राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) व राज्य पात्रता परीक्षा (सेट) उत्तीर्ण छात्र महाविद्यालयों में अध्यापन के अपने सपने को पूर्ण करने में सफलता प्राप्त करने में असमर्थ हैं। इतना ही नहीं, इन विषयों में नेट व सेट की परीक्षा के लिए छात्र जीव विज्ञान विषय में परीक्षा देने के लिए पात्र होते हैं अर्थात इन विषयों में स्नातकोत्तर उम्मीदवार जीवन विज्ञान विषय में नेट व सेट की परीक्षा दे सकता है, परंतु परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात उनको जीव विज्ञान विषय में सहायक आचार्य की परीक्षा देने के लिए अयोग्य घोषित किया जाता है।

इससे इन विषयों में नेट, सेट व जेआरएफ उत्तीर्ण छात्र दोहरी मार झेलने को विवश हैं।  अतः नीतिकारों व शिक्षाविदों को इस ओर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। प्रदेश में उद्योगों को स्थापित करने से पहले यह प्रावधान किया गया है कि यहां पर स्थापित उद्योगों में अस्सी प्रतिशत हिमाचलियों को रोजगार की सुविधा उपलब्ध की जाएगी। आज प्रदेश के उद्योग केंद्र अथवा औद्योगिक क्षेत्र के नाम से पहचाने जाने वाले बद्दी, बरोटीवाला व नालागढ़ में अनेक कंपनियां अस्तित्व में हैं तथा इनमें प्रदेश के गैर-तकनीकी युवा केवल श्रम का कार्य कर रहे हैं। तकनीकयुक्त युवा अब भी प्रदेश में न होने के कारण दूसरे राज्यों के युवा उनका स्थान ले रहे हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए प्रदेश के स्कूलों में व्यावसायिक शिक्षा को शुरू किया गया है, ताकि तकनीकयुक्त युवा तैयार हो सकें, परंतु इस शिक्षा को ठेकेदारों के माध्यम से चलाना कदापि तर्कसंगत नहीं है।

अतः जैव-प्रौद्योगिकी व सूक्ष्म जीव विज्ञान विषयों को अहमियत देकर प्रदेश के अनेक युवा जो जैव-प्रौद्योगिकी व सूक्ष्म जीव विज्ञान के क्षेत्र में उपाधियां प्राप्त कर चुके हैं या करना चाहते हैं, उनके सपनों को साकार करने का एक मौका मिल सकता है, जो आधुनिकता के इस दौर में इस दिशा में सराहनीय कदम होगा।


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