ईश्वर के चरणों में स्वामी विवेकानंद

By: Jan 26th, 2019 12:05 am

गतांक से आगे…

ईश्वर के चरणों में अपना दिल खोलकर रख दो और तब तुम्हें शक्ति, सहायता और अदम्य उत्साह की प्राप्ति होगी। गत दस वर्षों से मैं अपना मूलमंत्र घोषित करता आया हूं। संघर्ष करते रहो और अब भी मैं कहता हूं कि अविराम संघर्ष करते चलो। जब चारों ओर अंधकार ही अंधकार दिखता था, तब मैं कहता था, संघर्ष करते चलो, डरो मत मेरे बच्चो। अनंत नक्षत्रखचित आकाश की ओर भयभीत दृष्टि से ऐसे मत ताको, जैसे कि वह हमें कुचल ही डालेगा। धीरज धरो, देखोगे कि कुछ ही घंटों में यह सबका सब तुम्हारे पैरों तले आ गया है। धीरज धरो, न धन से काम होता है, न नाम से, न यश काम आता है, न विद्या, प्रेम ही से सब कुछ होता है। चरित्र ही कठिनाइयों की संगीन दीवारें तोड़कर अपना रास्ता बना सकता है। अब हमारे सामने समस्या यह है कि स्वाधीनता के बिना किसी प्रकार की उन्नति संभव नहीं है। हमारे पूर्वजों ने धार्मिक विचारों में स्वाधीनता दी थी और उसी से हमें एक आश्चर्यजनक धर्म मिला है। पर उन्होंने समाज के पैर बड़ी-बड़ी जंजीरों से जकड़ दिए और इसके फलस्वरूप हमारा समाज, एक शब्द में, भयंकर और पैशाचिक हो गया है। पाश्चात्य हमारे समाज को सदैव स्वाधीनता मिलती रही, इसलिए उनके समाज को देखो। उनके धर्म को भी देखो। उन्नति की पहली शर्त है स्वाधीनता। जैसे मनुष्य को सोचने-विचारने और उसे व्यक्त करने की स्वाधीनता मिलनी चाहिए, वैसे ही उसे खान-पान, पोशाक-पहनावा, विवाह-शादी, हरेक बात में स्वाधीनता मिलनी चाहिए, जब तक कि वह दूसरों को हानि न पहुंचाए। हम मूर्खों की तरह भौतिक सभ्यता की निंदा किया करते हैं। अंगूर खट्टे हैं न! उस मूर्खाचित बात को मान लेने पर भी यह कहना पड़ेगा कि सारे भारतवर्ष में लगभग एक लाख नर-नारी ही यथार्थ रूप से धार्मिक है। अब प्रश्न यह है कि क्या इतने लोगों की धार्मिक उन्नति के लिए भारत के तीस करोड़ अधिवासियों को बर्बरों का सा जीवन व्यतीत करना और भूखों मरे? मुसलमानों के लिए हिंदुओं को जीत सकना, कैसे संभव हुआ? यह हिंदुओं के भौतिक सभ्यता का निरादर करने के कारण ही हुआ। भौतिक सभ्यता, यहां तक कि विलासमयता की भी जरूरत होती है, क्योंकि उससे गरीबों को काम मिलता है। रोटी! मुझे इस बात का विश्वास नहीं है कि वह भगवान जो मुझे यहां पर रोटी नहीं दे सकता, वही स्वर्ग में मुझे अनंत सुख देगा। राम कहो! भारत को उठाना होगा, गरीबों को भोजन देना होगा। शिक्षा का विस्तार करना होगा और पुरोहित प्रपंच की बुराइयों का निराकरण करना होगा।


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