कविता

By: Jan 13th, 2019 12:04 am

 बचपन

बच्चों पर चिल्लाना छोड़ो

उन पर हाथ उठाना छोड़ो

इनके भी तो दिल होते हैं

बात-बात पर ताना छोड़ो

ये तो सच के पुतले होते

इनको झूठ सिखाना छोड़ो

मीठे-मीठे गीत सुनाएं

पक्का राग सुनाना छोड़ो

अपने मन के ये भी राजा

इनका ठौर-ठिकाना छोड़ो

आप नहीं हो अब ठग सकते

उल्लू इन्हें बनाना छोड़ो।

-डा. प्रत्यूष गुलेरी

 


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