कारोबारी सुगमता के कठिन पग भरता प्रदेश

By: Jan 30th, 2019 12:06 am

संजय शर्मा

लेखक, शिमला से हैं

हिमाचल एक पहाड़ी प्रदेश होने के कारण औद्योगिकरण से जुड़ी कुछ मुलभूत समस्याओं से भी दो-चार होता रहा है, मसलन मैदानी राज्यों के मुकाबले खर्चीले औद्योगिक व सामाजिक मूलभूत ढांचे का विकास, बाजार की कमी, उद्योगों की स्थापना के लिए बडे़ औद्योगिक क्षेत्रों का अभाव, समुचित दक्ष श्रमशक्ति का न मिलना तथा समय पर कच्चे माल की आपूर्ति न होना इत्यादि। फिर भी प्रदेश कारोबारी सुगमता में आगे बढ़ रहा है…

आज के वैश्वीकरण व उदारवादी परिदृश्य में ‘‘कारोबारी सुगमता’’ शब्द बहुत चर्चित हो गया है। लाइसेंस राज का जमाना अब बहुत पुरानी बात हो गई है। विश्व के सभी देश अपने कारोबारी माहौल को अधिक से अधिक सुगम बनाने का प्रयास कर रहे हैं। भारत में सही मायनों में इस प्रक्रिया की शुरुआत वर्तमान केंद्र सरकार के वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद हुई, जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2014 को लालकिले की प्राचीर से ‘‘मेक इन इंडिया’’ कार्यक्रम की घोषणा की। परंतु यह कार्यक्रम तभी फलीभूत हो सकता था जब एक निवेशक को कम से कम समय में सभी आवश्यक अनुमतियां सरकार से बिना किसी परेशानी के मिल जाएं व कारोबारी माहौल ‘‘निवेशक मित्र’’ हो। इसके लिए भारत सरकार के ‘‘औद्योगिक नीति व संवर्द्धन विभाग’’ द्वारा सब राज्य सरकारों के लिए वार्षिक ‘‘कारोबारी सुधार कार्य योजना’’ तैयार की, जिसके आधार पर राज्यों का आकलन किया जाना था। आज न्यूजीलैंड विश्व में प्रथम स्थान पर है जहां निवेशक को सभी अनुमतियां एक दिन के भीतर प्राप्त हो जाती हैं व हमारे देश का स्थान कारोबारी सुगमता में 142 वें पायदान से उन्नत होकर अब 77वें स्थान पर है। अभी भी यहां कारोबार प्रारंभ करने के लिए औसतन 40 से 50 दिन का समय लगता है। केंद्र सरकार का यह प्रयास है कि अगले वर्ष के आकलन में भारत विश्व के प्रथम 50 देशों की श्रेणी में स्थान पाए। यह तभी संभव है जब राज्य सरकारें कारोबारी सुधार योजना पर समयबद्ध तरीके से कार्य करें। हिमाचल की बात की जाए तो यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि प्रदेश ने इस दिशा में सराहनीय प्रगति की है। आज हिमाचल का स्थान पूरे प्रदेश में 16वां है। राज्यों की श्रेणी में हिमाचल ने देशभर में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। जिससे यह आशा और बलवती हो जाती है कि आने वाले समय में हमारा प्रदेश निश्चय ही पहले 10 राज्यों की श्रेणी में स्थान पा सकेगा।

हिमाचल एक पहाड़ी प्रदेश होने के कारण औद्योगिकरण से जुड़ी कुछ मूलभूत समस्याओं से भी दो चार होता रहा है, मसलन मैदानी राज्यों के मुकाबले खर्चीले औद्योगिक व सामाजिक मूलभूत ढांचे का विकास, बाजार की कमी, उद्योगों की स्थापना के लिए बडे़ औद्योगिक क्षेत्रों का अभाव, समुचित दक्ष श्रमशक्ति का न मिलना तथा समय पर कच्चे माल की आपूर्ति न होना इत्यादि। आज सारे राज्यों में कारोबारी सुगमता के क्षेत्र में आगे बढ़ने की होड़ लगी है। वर्ष 2019 में ‘‘80 सूत्री कारोबारी सुधार कार्य योजना’’ भारत सरकार द्वारा सभी राज्यों को दी गई है। इस बार की योजना की खास बात यह है कि राज्यों का आकलन उनके द्वारा निवेशकों की सुविधा के लिए प्रक्रियाओं, नियमों, कानूनों व ऑनलाइन प्रणाली में जो सुधार किए गए हैं, इनकी समीक्षा मात्र राज्यों द्वारा किए गए साक्ष्यों के आधार पर नहीं होगी अपितु इन सुविधाओं का प्रयोग करने वाले वास्तविक निवेशकों/यूजर्स द्वारा फीडबैक से प्राप्त जानकारी के आधार पर की जाएगी कि वे इन दी गई सुविधाओं से कितने संतुष्ट हैं।

प्रदेश का नैसर्गिक सौंदर्य, स्वच्छ वातावरण, निवेशक की प्रशासन तक सहज पहुंच व पारदर्शी कार्यप्रणाली कुछ ऐसे बिंदु हैं, जो कि हिमाचल के पक्ष में जाते हैं, परंतु आश्चर्य की बात यह है कि भारत सरकार की पिछली व अबकी कारोबारी सुधार कार्य योजनाओं में इनका कोई भी उल्लेख नहीं है, जो कि होना चाहिए था। प्रदेश की इन निवेश मित्र अच्छी बातों के साथ ही हमें इस सच्चाई को भी स्वीकारना पड़ेगा कि अभी भी सही मायनों में कारोबारी सुगमता के क्षेत्र में यहां बहुत कुछ किया जाना बाकी है। प्रदेश के ‘‘भूमि सुधार व मुजारा कानून 1972’’ की ‘‘धारा 118’’ का सरलीकरण, प्रदेश में व्याप्त ट्रक यूनियनों का दबदबा, निवेशक को देने के लिए समुचित व अनुकूल लैंड बैंक की अनुपलब्धता, हवाई व रेलमार्ग से प्रदेश के औद्योगिक स्थलों का पूरी तरह व नियमित रूप से न जुड़ पाना तथा  बिजली के महंगे रेट आदि कुछ ऐसे बिंदु हैं जो एक निवेशक को प्रदेश में निवेश के लिए सोचने पर बाध्य करते हैं। आज प्रतियोगिता का यह युग है, जो सबसे सशक्त, वही कामयाब। अतः हमें इस बात को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना होगा कि अपने पहाड़ी प्रदेश की मूलभूत समस्याओं के बावजूद हमारा मुकाबला देश के उन राज्यों से है जहां भौगोलिक परिस्थितियां निवेश के अधिक अनुकूल हैं। आज के डिजिटल युग में, जबकि हर जानकारी ‘‘गूगल’’ पर उपलब्ध है तो हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि उद्यमी निवेश करने से पूर्व उस प्रदेश व जगह की समस्त अच्छी व बुरी जानकारी पहले ही प्राप्त कर लेता है। आज के बदले कारोबारी माहौल में प्रदेश को अपनी क्षमताओं व अक्षमताओं का सही आकलन करके ऐसा उचित निवेश मित्र वातावरण तैयार करना चाहिए जहां निवेश के अवसरों की सही पहचान हो सके तथा उन अवसरों को मूर्तरूप देने के लिए एक सशक्त कार्य योजना तैयार हो, तभी प्रदेश की आर्थिकी मजबूत होगी।


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