जनहित में व्यय करने की जरूरत

By: Jan 22nd, 2019 12:04 am

डा. ओपी जोशी   

स्वतंत्र लेखक

 सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती पर पिछले साल 31 अक्तूबर को प्रधानमंत्री ने नर्मदा किनारे के गांव केवडि़या में उनकी 182 मीटर ऊंची प्रतिमा ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ का लोकार्पण किया। उद्घाटन के बाद यह दुनिया की सबसे ऊंची एवं खर्चीली प्रतिमा साबित हुई है। 1700 टन की इस प्रतिमा को खड़ा करने में 25,000 टन लोहा व 90,000 टन सीमेंट का उपयोग हुआ। कई प्रकार की समस्याओं से जूझते देश में केवल एक प्रतिमा पर इतनी बड़ी राशि का व्यय न्यायोचित नहीं लगता। वर्तमान में लौह पुरुष की प्रतिमा के स्थान पर उनके सिद्धांतों तथा कार्य शैली पर अमल करने की ज्यादा जरूरत है। गरीब, विकासशील देश के खजाने के करीब तीन हजार करोड़ रुपए से सरदार पटेल की प्रतिमा खड़ी करने के बजाय कई दूसरे ज्यादा जरूरी और जनहित के कार्य किए जा सकते थे। इसे लेकर दुनियाभर में हमारी छीछालेदर हुई है। ब्रिटेन ने तो इसे लेकर हमारी खिल्ली भी उड़ाई है। प्रतिमा पर व्यय की गई राशि पर ‘इंडिया स्पेंड’ संस्था ने तो तुरंत ही गणना कर बताया कि इससे दो आईआईटी (इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी), दो आईआईएम (इंडियन इस्टीच्यूट ऑफ मैनेजमेंट) तथा छह इसरो (इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन) जैसी संस्थाएं स्थापित की सकती थीं। इसके साथ-साथ 425 छोटे बांध बनाकर 40 हजार हेक्टेयर भूमि में सिंचाई की सुविधा भी बढ़ाई जा सकती थी। स्वास्थ्य सेवाएं तथा पर्यावरण सुधार के साथ कई अन्य जनहित के कार्य इस राशि से किए जा सकते थे। मेडिकल जर्नल लैंसेट में कुछ समय पूर्व प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार देश में उचित इलाज के अभाव में 24 लाख लोग प्रतिवर्ष दुनिया से विदा हो जाते हैं। इन परिस्थितियों के मद्देनजर यदि देश के दवाखानों तथा एम्स में डाक्टरों तथा कर्मचारियों के रिक्त पदों को भरकर समुचित मात्रा में सामान्य रोगों की दवाएं उपलब्ध करवाई जातीं, तो देशवासियों के स्वास्थ्य में थोड़ा सुधार निश्चित होता। अभी कुछ समय पूर्व ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल’ ने एक छोटे, 24 घंटे के अध्ययन के आधार पर बताया था कि देश के 65 में से 60 शहरों की हवा खराब है। यह महज एक संयोग रहा है कि जिस समय विश्व की इस ऊंची प्रतिमा का उद्घाटन हो रहा था, उसी समय दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर भी काफी ऊंचा हो गया था। राजधानी के आनंद विहार, विवेक विहार तथा पंजाबी बाग जैसे इलाकों में ‘एयर क्वालिटी इंडेक्स’ 400 के खतरनाक स्तर को छू गया था। वर्ष 2015 में दिल्ली में केवल चार दिन स्वच्छ हवा के रहे। यहां प्रति वर्ष वायु प्रदूषण के कारण 22 हजार लोगों की मौत होती है। सरदार पटेल की प्रतिमा पर व्यय की गई राशि से यदि आठ-दस टावर दिल्ली में लगाए गए होते, तो दिल्ली की हवा साफ हो जाती। जल मल निस्तारण प्रणाली (सीवर सिस्टम) का कार्य भी काफी उदासीनता के साथ स्थानीय नगर निकाय करते हैं। एक सरकारी जानकारी के अनुसार जनवरी, 2017 से सितंबर, 2018 के बीच (लगभग 600 दिन) 153 सफाई कर्मी सफाई के उचित उपकरणों के अभाव में सीवर साफ करते हुए मारे गए, यानी प्रति पांच दिन में एक कर्मचारी। पटेल प्रतिमा पर किए गए व्यय की कुछ राशि से देश के प्रमुख शहरों के स्थानीय निकायों को यदि सफाई के समुचित उपकरण उपलब्ध कराए जाते, तो ये लोग बेमौत नहीं मारे जाते। स्वास्थ्य सेवाएं बढ़ाने, प्रदूषण नियंत्रण (विशेषकर दिल्ली का) तथा सफाई कर्मचारियों के लिए उपकरण खरीदी के अलावा स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालयों, रेलवे, पुलिस, डाक विभाग तथा न्यायालयों में खाली पड़े पदों को भरा जाता, तो थोड़ी बेरोजगारी कम होती एवं संस्था या विभागों की हालत भी सुधरती। गृह मंत्रालय द्वारा कुछ समय पूर्व दी गई जानकारी के अनुसार पुलिस में 5.5 लाख तथा रेलवे में 2.5 लाख पद खाली हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने निचली अदालतों में न्यायाधीशों व अन्य कर्मचारियों की नियुक्तियां न होने पर नाराजगी जताते हुए राज्य सरकारों को फटकारा है। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल व दिल्ली में हालत ज्यादा खराब बताई गई है। रेलवे में यदि हम उच्च पदों की नियुक्ति को छोड़े दें, तो 15 हजार मानव रहित रेलवे क्रासिंग पर तो सामान्य नियुक्तियां ही हो सकती थीं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सरदार वल्लभभाई पटेल की विशालकाय प्रतिमा पर किए गए इतने भारी व्यय की एवज में कई अन्य जनहित के कार्य किए जा सकते थे।


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