नशे में डूबती हिमाचल की जवानी

By: Jan 1st, 2019 12:06 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

दुख तब और ज्यादा बढ़ जाता है जब हम अपनी युवा पीढ़ी को नशे का आदी बनकर उन्हें बर्बाद होते देखते हैं। हिमाचल का युवा फौज में जाकर राष्ट्र सेवा करने वाला रहा है, लेकिन आजकल सेना की भर्तियों में उनके फूलते दम को देखकर यह अनुमान सहज लगाया जा सकता है कि हिमाचल प्रदेश में बढ़ते नशे का प्रचलन पहाड़ की जवानी को खोखला कर रहा है…

हिमाचल प्रदेश में कोई दिन ऐसा नहीं जाता है जब हम सूचना के विभिन्न माध्यमों से प्रदेश के किसी न किसी कोने में नशीले मादक पदार्थों के सौदागर पकड़े जाने अथवा नशे की गिरफ्त में आ रही हमारी युवा पीढ़ी से जुड़ी खबरों को देखते-पढ़ते न हों। नशा करने का प्रचलन सदियों पुराना है। भारतीय धर्म ग्रंथों में सोमरस अथवा सोमपान शब्द का उल्लेख प्रायः सुनने-पढ़ने को मिलता है। सोम का अर्थ शीतल बताया गया है और इसे शक्तिवर्धक, आयुर्वर्द्धक और चिरयुवा बनाए रखने वाला भी माना गया है।

इसलिए सोमरस को देवताओं का प्रमुख पेय पदार्थ कहा गया है। ऋग्वेद में इसे मीठा और स्वादिष्ट बताया गया है, जबकि शराब या अन्य सभी प्रकार के नशीले एवं मादक पदार्थ सोमरस के उलट इनका सेवन करने वाले की मति हर लेते हैं। उसे शारीरिक एवं आर्थिक रूप से कमजोर करने के अलावा उसकी सामाजिक हैसियत को तार-तार कर देते हैं और उसे स्वास्थ्य की दृष्टि से मृत्यु शैया तक पहुंचा देते हैं। नशे के आदी व्यक्ति के परिवार को बेवजह मानसिक संताप से गुजरना पड़ता है, तो वहीं ऐसे लोगों के कारण समाज पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। यही वजह है कि महात्मा गांधी का शराब को लेकर कहा गया यह कथन दृष्टव्य है कि ‘यदि देश में शराबबंदी लागू नहीं की गई, तो हमारी स्वतंत्रता गुलामी बनकर रह जाएगी’। दुख तब और ज्यादा बढ़ जाता है जब हम अपनी युवा पीढ़ी को नशे का आदी बनकर उन्हें बर्बाद होते देखते हैं। हिमाचल का युवा फौज में जाकर राष्ट्र सेवा करने वाला रहा है, लेकिन आजकल सेना की भर्तियों में उनके फूलते दम को देखकर यह अनुमान सहज लगाया जा सकता है कि हिमाचल प्रदेश में बढ़ते नशे का प्रचलन पहाड़ की जवानी को खोखला कर रहा है।

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी प्रदेश सरकार को पंचायती राज अधिनियम में संशोधन कर मादक पदार्थों के धंधे में संलिप्त पंचायत प्रतिनिधियों को अयोग्य घोषित करने तथा मादक पदार्थों के सेवन से मुक्त पंचायतों को पुरस्कृत करने का सुझाव दिया है। इसके अलावा उच्च न्यायालय ने स्कूल-कालेज के पाठ्यक्रम में नशीले पदार्थों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए आवश्यक विषय सामग्री तथा पीरियड इत्यादि की व्यवस्था करने को भी कहा है। न्यायालय ने सरकार, समाज के प्रबुद्ध वर्ग, पुलिस तथा प्रशासन को देवभूमि हिमाचल को नशामुक्त बनाने के लिए हर संभव उपाय करने का आह्वान करने के साथ-साथ पुलिस को नशे के सौदागरों पर नकेल कसने के लिए विशेष अभियान चलाने को कहा है। अभी पिछले दिनों नशे के खिलाफ प्रदेश के स्कूलों और कालेजों में विशेष अभियान भी चलाए गए हैं, जिसमें जागरूकता रैलियां निकालने, पोस्टर मेकिंग, स्लोगन राइटिंग, गु्रप डिस्कशन, वाद-विवाद और नाटक इत्यादि द्वारा विद्यार्थियों को जागरूक किया गया है। जिला कांगड़ा पुलिस ने इस वर्ष चरस और हेरोइन की तस्करी करने वालों पर कार्रवाई करते हुए 74 नशा तस्करों की संपत्ति जब्त करते हुए नूरपुर में 15 ऐसे नशा तस्कर पकड़े हैं, जिनके पास आय से कई गुना अधिक संपत्ति मिली है। आय से अधिक संपत्ति वाले नशे के तस्कर आज हिमाचल के हर गांव और कस्बों में मिल जाएंगे, क्योंकि उन्हें पुलिस और कानून का ज्यादा खौफ नहीं है। कांगड़ा पुलिस ने एनडीपीएस एक्ट के तहत 239 मामले जिले में दर्ज किए हैं। प्रदेश सरकार द्वारा धर्मशाला में शीतकालीन सत्र में विधानसभा को दी गई जानकारी के अनुसार नवंबर 2017 से नवंबर 2018 की अवधि के बीच में 280.147 किलोग्राम  चरस, 7.995 किलो अफीम, 148.265 किलो गांजा, 3.397 किलो हेरोइन, 74 ग्राम कोकीन, 483.056 किलो चूरापोस्त, 232425 नशे की गोलियां-केप्सूल, 15 नशीले इंजेक्शन और 1646 सिरप जब्त  किए हैं।

पुलिस का कहना है कि बाजार में चिट्टे के 01 ग्राम की कीमत 6 हजार है और इस धंधे में चोखा मुनाफा है। भारत में नारकोटिक ड्रग एवं साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस अधिनियम-1985 बनाया गया था, जिसे और प्रभावशाली बनाने के लिए 2014 तथा 2015 में इसमें और संशोधन किए गए। इसके अलावा मादक द्रव्यों की मांग में कमी लाने, नशीली दवा के आदी लोगों की पहचान, इलाज तथा पुनर्वास केंद्रों की स्थापना आदि के लिए राष्ट्रीय मादक द्रव्य निवारण संस्थान की स्थापना 1998 में की गई थी। हिमाचल प्रदेश में मलाणा क्रीम, चरस, शराब, भांग और गांजा जैसे नशे प्रचलन में रहे हैं, तो वहीं शराब की बिक्री से हिमाचल प्रदेश सरकार को वर्ष 2018-19 में 1552.88 करोड़ रुपयों की कमाई होने का अनुमान है। हिमाचल प्रदेश में पिछले तीन सालों में ड्रग्स के कारोबार में संलिप्त गिरफ्तार 3895 लोगों में से 161 महिलाएं और 32 विदेशी नागरिक भी शामिल हैं। राज्य सरकार ने एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 में संशोधन कर अब गिरफ्तारी के लिए ड्रग्स की मात्रा को और भी कम कर दिया है।

अब कम मात्रा के आधार पर आरोपी को सीधे जमानत नहीं मिलेगी। जाहिर है जब तक पुलिस नशे के कारोबारियों को कानून के पंजे में सख्ती से नहीं दबोचेगी और ऐसे लोगों को जब तक सख्त सजा नहीं मिलेगी, तब तक प्रदेश का माहौल ऐसे ही बिगड़ता रहेगा। मुझे इस मौके पर सिंघम फिल्म के अभिनेता अजय देवगन का वह डायलॉग याद आ रहा है जिसमें वह अपने डीजीपी को ताकीद करते हुए कहते हैं कि यदि पुलिस अपनी ड्यूटी ठीक से रे, तो शहर में किसी बदमाश की क्या मजाल जो वह किसी नन्हें बच्चे के हाथ से छोटा सा खिलौना भी छीन कर ले जाए। इसके लिए नशे के सौदागरों के बीच खौफ होना जरूरी है और पुलिस को भी अपने निगरानी तथा खुफिया तंत्र को दुरुस्त बनाने की जरूरत है।


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