मुकाम्बिका मंदिर

By: Jan 26th, 2019 12:06 am

मुकाम्बिका कर्नाटक के उडुपी जिले के कोल्लूर में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है, जिसकी गिनती दक्षिण भारत के चुनिंदा प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में होती है। कोल्लूर पश्चिमी घाट की तलहटी में बसा है और धार्मिक महत्व के साथ-साथ प्राकृतिक खूबसूरती के लिए भी जाना जाता है। यह मंदिर शक्ति को समर्पित है, जिनकी पूजा श्री मुकाम्बिका के नाम से की जाती है। कोल्लूर मंदिर आमतौर पर केरल और तमिलनाडु में ‘मुकाम्बी’ या ‘मूगंबिगाई’ के नाम से संबोधित किया जाता है। हालांकि कोल्लूर मुकाम्बिका मंदिर कर्नाटक में है, लेकिन मुकाम्बिका मंदिर जाने वाले अधिकांश भक्त केरल या तमिलनाडु से होते हैं। श्री मुकाम्बिका अन्य हिंदू देवी-देवताओं के बीच अद्वितीय है, क्योंकि देवी मुकाम्बिका महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली की शक्तियों का एक रूप है। मंदिर में मौजूद उधम लिंग पुरुष और शक्ति रूप को प्रदर्शित करता है। कोल्लूर मुकाम्बिका मंदिर हिंदुओं का एक पवित्र स्थल और एक प्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र है। श्री मुकाम्बिका सभी दिव्य शक्तियों का एक अवतार मानी जाती हैं और उनकी पूजा किसी भी रूप में की जा सकती है। स्कंद पुराण में कहा जाता है कि श्री मुकाम्बिका का ज्योतिर्लिंगम पुरुष और प्रकृति का एकीकरण है। माना जाता है कि यहां प्रार्थना करना मतबल हजारों मंदिरों में प्रार्थना करने के बराबर है। यहां कई महान संतों ने तपस्या की है। सरस्वती के रूप में मुकाम्बिका शिक्षा और कला की देवी है। रवि वर्मा और स्वाथि थिरूनल आदि जैसे महान कलाकार श्री मुकाम्बिका के भक्त थे। इस मंदिर से कई पौराणिक किंवदंतियां भी जुड़ी हैं। माना जाता है कि प्राचीन समय में कोला नाम के महर्षि किसी राक्षस के दुराचार का शिकार हो गए थे। वह राक्षस अधिक शक्ति प्राप्त करने के लोभ में तपस्या कर रहा था। तब श्री मुकाम्बिका ने देवी सरस्वती के रूप में उस राक्षस को गूंगा बना दिया था ताकि वो भगवान के सामने दुराचारी इच्छा न प्रकट कर सके। मूक हो जाने की वजह से उस राक्षस का नाम मुकासुर पड़ा यानी गूंगा राक्षस। गूंगा हो जाने के बाद गुस्से में उसका आतंक और बढ़ गया, वो ऋषि-मुनियों को परेशान करने लगा। तब कोला महर्षि के अनुरोध पर मां पार्वती ने शक्ति का रूप धारण कर उस राक्षस का वध किया। जिसके बाद देवी का नाम मुकाम्बिका पड़ा। महर्षि कोला के नाम पर गांव का नाम कोल्लूर रखा गया।

आने का सही समय

क्योंकि यह एक प्रसिद्ध मंदिर है इसलिए यहां श्रद्धालुओं का आगमन साल भर लगा रहता है, लेकिन मौसम के हिसाब से ग्रीष्मकाल के दौरान यह स्थल काफी ज्यादा गर्म रहता है। यहां आने का सही समय नवंबर से लेकर मार्च के मध्य का है। इस दौरान यहां का तापमान काफी ज्यादा अनुकूल बना रहता है।


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