मुखौटाधारी स्त्री को शक्ति देवी का प्रतीक माना जाता है

By: Jan 16th, 2019 12:04 am

 मुखौटाधारी स्त्री को शक्ति देवी का प्रतीक माना जाता है। और मुखौटे धारी पुरुष  राक्षस के प्रतीक माने जाते हैं। नृत्य के समय देवी शक्ति नर्तन करते हुए प्रत्येक मुखौटाधारी पुरुष को धाराशायी करती है। उन्हें बिच्छुबुटी के गठ्ठे से पीटती है। नृत्य करते हुए वह पुुरुष नारी शक्ति को प्राप्त करने का प्रयत्न भी करते हैं। नारी शक्ति उनकी एक नहीं चलने देती…

गतांक से आगे …

प्रयाण, बिशू, बिरशू, युद्ध नृत्य :

इस नृत्य को लोक नर्तक हाथ में कोई डंडा रुमाल, तलवार या डांगरू एक -दूसरे के पीछे या इधर-उधर बिना क्रम के खड़े होकर नाचते हैं। जब नर्तक दल, देव मंदिर से मेले के मैदान में या अपने गांव से मेले के मैदान तक या एक गांव से दूसरे गांव तक नाचते हुए आते और जाते हैं, तब यह लोक नृत्य प्रदर्शित होता है। इसमें ढोल, नरसिंगा, ढोलक, नगाड़ा, शहनाई और करनाल इत्यादि वाद्य बजाते हैं। दो नर्तक प्रारंभ से गाते हैं और शेष नाचते हुए आगे बढ़ते और गाते जाते हैं।

मुखौटा नृत्यः

 छतराड़ी यात्रा के प्रारंभ में बटुक महादेव की रथ यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा में आगे-आगे चार पुरुष मुखौटा पहने चलते हैं और मंदिर के प्रांगण में नृत्य करते हैं। उनके साथ ही एक पुरुष स्त्रीवेश में मुखौटा पहन कर लोक नृत्य करता है। स्त्री मुखौटाधारी शक्ति देवी का प्रतीक माना जाता है। और मुखौटाधारी पुरुष राक्षस के प्रतीक माने जाते हैं। नृत्य के समय देवी शक्ति नर्तन करते हुए प्रत्येक मुखौटाधारी पुरुष को धाराशायी करती है। उन्हें बिच्छुबुटी के गठ्ठे से पीटती है। नृत्य करते हुए वह पुुरुष नारी शक्ति को प्राप्त करने का प्रयत्न भी करते हैं। नारी शक्ति उनकी एक नहीं चलने देती। कुछ गीत इन पुरुष और स्त्री मुखौटाधारी नृतकों द्वारा गाए जाते हैं।

छट्टी लोकनृत्यः

यह वीर नृत्य लोक नृत्यों की अपेक्षा कुछ कठिन है। इसके लिए काफी पूर्वाभ्यास की आवश्यकता रहती है। यह नृत्य भी प्राय ः पुरुष ही नाचते हैं। इसलिए साधारण लोकनृत्य इस नृत्य की ठीक तरह से नहीं नाच पाते। इस नृत्य के लिए दक्ष नृत्य के साथ लोकवादक की भी आवश्यकता रहती है। इस नृत्य के साथ गीत यदि कंठों की अपेक्षा शहनाई पर भी गाया जाए तो भी काम चल रहता है। नहीं तो, ढाकिण मुरिण स्त्री के मधुर कंठ से निकले गीत को लय और ढोलक या नगाड़े की ताल पर भी यह लोक नृत्य अत्यंत लुभावना लगता है। इस नृत्य के लिए विशेष लोकगीतों को उतार-चढ़ाव के साथ गाया जाता है। इस लोक नृत्य में एक दूसरे के हाथ नहीं पकड़े जाते। नर्तक एक हाथ में रुमाल लेकर और दूसरे में खांडा या तलवार लेकर एक दूसरे के आगे पीछे गोल दायरे में क्रम से खड़े होकर झूम-झूमकर नाचते हैं। इसमें कदमों का क्रम अत्यंत जटिल होता है धूर में नाचने वाले नर्तक का अनुकरण करते हुए नर्तक दल के अन्य नर्तक नाचते हैं।

दिवाली नृत्य :दिवाली के समय खुले मैदान के मध्य में बहुत सारी लकडि़यों को इकट्ठी कर उन्हें रात को चलाया जाता है।    


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