लापरवाही से ताबूत बनती स्कूली बसें
नरेंद्र भारती
स्वतंत्र पत्रकार
आखिर मासूम कब तक मौत के मुंह में समाते रहेंगे, यह एक यक्ष प्रश्न बनता जा रहा है। स्कूली बच्चों की मौत का यह कोई पहला हादसा नहीं है, इससे पहले भी हजारों बच्चे काल का ग्रास बन चुके हैं। तेज रफ्तार के कारण न जाने कितने फूल खिलने से पहले ही मुरझा गए हैं…
सड़क हादसों में स्कूली बच्चों की दर्दनाक मौत की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। अभिभावकों में खौफ बढ़ता जा रहा है, क्योंकि स्कूल बसें मौत का ताबूत बनने लगी हैं। पांच जनवरी, 2019 शनिवार को करीब सात बजे हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के संगडाह-ददाहू मार्ग खड़काली के पास एक निजी स्कूल बस के खाई में गिरने से चालक समेत सात बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई। दर्दनाक हादसे में 12 बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। मृतक बच्चों में दो सगे भाई-बहन थे। बस के गहरी खाई में गिरने से बच्चों की लाशों के चिथड़े हो गए थे। स्कूल बस के भी परखचे उड़ गए हैं। यह हादसा नहीं सरासर हत्याएं हैं। नन्हे फूल खिलने से पहले ही मुरझा गए। सुबह जिन माता-पिता ने अपने नौनिहालों को खुशी से स्कूल भेजा था, उन्हें इस बात का इल्म नहीं था कि उनके बच्चे लौटकर नहीं आएंगे। घटना स्थल पर बच्चों के बैग, टिफिन, किताबें, बिखरी पड़ी थीं। माता-पिता अपने लाडलों के सामान देखकर रो रहे थे, चारों तरफ खून बिखरा था तथा चीखो-पुकार मची हुई थी।
मां-बाप बदहवास अपने चिरागों को ढूंढ रहे थे, लेकिन चिराग चिर निद्रा में सो चुके थे। नन्हे फूल खिलने से पहले ही मुरझा रहे हैं, हादसे दर हादसे हो रहे हैं, मगर व्यवस्था बहरी बनी हुई है। ऐसी खौफनाक त्रासदियां असमय मासूमों को निगल रही हैं। गत वर्ष नौ अप्रैल, 2018 को ऐसा ही एक भीषण हादसा कांगड़ा के नूरपुर के चेली में घटित हुआ था, जहां एक निजी स्कूल बस के खाई में गिरने से 26 बच्चों समेत 30 की मौत हो गई थी। इस हादसे में मरने वालों में अधिकतर बच्चे नर्सरी के, बस का चालक, एक शिक्षक व एक युवती शामिल थे, एक तेज रफ्तार मोटर साइकिल सवार को बचाने के चलते यह हादसा सामने आया। हादसा इतना भयंकर था कि 24 बच्चों ने घटनास्थल पर ही दम तोड़ दिया था। प्रतिवर्ष स्कूली बच्चे बेमौत मारे जा रहे हैं। 26 अप्रैल को कुशीनगर में चालक की घोर लापरवाही से हुए एक हादसे में कई घरों के चिराग चिरनिद्रा में सो गए। ऐसा ही दर्दनाक मंजर कुशीनगर में घटित हुआ, जहां ट्रेन से स्कूल वैन में 13 बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई। लाशों को ढांपने के लिए कफन भी कम पड़ गए। बच्चों ने बताया कि चालक ईयरफोन लगाकर गाने सुन रहा था, उसे चेताया मगर उसने ध्यान नहीं दिया और पल भर में हंसते-खेलते बच्चे लाशों में बदल गए। सीवान से गोरखपुर जा रही 55075 पैसेंजर टे्रन से डिवाइन स्कूल की वैन टकराने से बच्चे बेमौत मारे गए। कुशीनगर के इस हादसे में जिन्होंने अपने नौनिहाल खोए हैं, उन्हें उबरने में वर्षों लगेंगे। पिछले कुछ वर्षों से स्कूली बस हादसे बढ़ते ही जा रहे हैं। अतीत में घटित हादसों से सबक लिया होता, तो ऐसे हादसे न होते। चालकों की लापरवाही का खामियाजा बच्चों को जान देकर भुगतना पड़ रहा है। देश में बढ़ते स्कूली बस हादसे रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। अभी हिमाचल में घटित एक स्कूली हादसे की स्याही भी नहीं सूखी थी कि कुशीनगर हादसे ने एक नई इबारत लिख दी। ऐसे दर्दनाक मंजर को देखकर मन पसीज उठता है। ऐसा ही एक दर्दनाक हादसा सुंदरनगर में भी हुआ था, वहां भी नन्हे छात्र मारे गए थे। वर्ष 2015 में हिमाचल के जिला सिरमौर के नाहन में एक स्कूल बस के 150 फुट नीचे गिरने से एक छह साल की छात्रा की मौत हो गई थी और 34 बच्चे घायल हो गए थे। ऐसे लोगों को आजीवन कारावास देना चाहिए, जो जानबूझकर गलतियां करते हैं। यह हादसे नहीं, सरासर हत्याएं हैं। वर्ष 2013 में भी एक ऐसा ही हादसा हुआ था, जिसमें बच्चों की लाशों का अंबार लग गया था। आखिर मासूम कब तक मौत के मुंह में समाते रहेंगे, यह एक यक्ष प्रश्न बनता जा रहा है। स्कूली बच्चों की मौत का यह कोई पहला हादसा नहीं है, इससे पहले भी हजारों बच्चे काल का ग्रास बन चुके हैं। तेज रफ्तार के कारण न जाने कितने फूल खिलने से पहले ही मुरझा गए हैं। दिल्ली के वजीरावाद हादसे के बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्कूली बसों से छात्रों की सुरक्षा के लिए कई कानून बनाए थे, मगर इसके बाद भी इन दुर्घटनाओं पर रोक नहीं लग सकी। ऐसा लगता है इन नियमों को लागू करने में खामियां रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के मुताबिक चालक को भारी वाहन चलाने का पांच साल का अनुभव होना चाहिए तथा दो बार चालान होने पर चालक को सेवा से हटाया जाए। अधिकतम रफ्तार 40 किमी प्रति घंटे हो, बस में फर्स्टएड बाक्स के साथ आग बुझाने का यंत्र उपलब्ध होना चाहिए, मगर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की सरासर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इस तरह के हादसे स्कूल प्रबंधन की खामियों को उजागर करते हैं।
स्कूल प्रबंधन अप्रशिक्षित चालकों को रखते हैं, ऐसे लापरवाह चालकों का लाइसेंस रद्द करके सजा देनी चाहिए। पुलिस को भी ऐसे तेज गति से वाहन चलाने वालों को सबक सिखाना चाहिए। अब भले ही सरकारें व स्कूल प्रबंधन लाखों रुपए का मुआवजा दें, लेकिन मुआवजे का मरहम उनके चिरागों को वापस नहीं कर सकता। इस हादसे से सबक न सीखा, तो भविष्य में मासूम मरते रहेंगे, नन्हे चिराग बुझते रहेंगे। सरकार को भी चाहिए कि लापरवाह स्कूलों की मान्यता खत्म करके प्रबंधकों को सजा दी जाए। इन बढ़ते स्कूली बस हादसों पर संज्ञान लेना होगा, निगरानी रखनी होगी। प्रशासन को इस दर्दनाक हादसे को अनदेखा नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह लापरवाही बहुत ही जघन्य अपराध है। सरकारें मुआवजा देकर इतिश्री कर रही हैं, मगर मुआवजा इसका हल नहीं है। अभिभावकों को हादसों में खोए अपने लाडलों का दंश ताउम्र सालता रहेगा।
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