लाभकारी है मिड-डे-मील योजना

By: Jan 28th, 2019 12:08 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

हिमाचल प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छठी से आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को मिड-डे-मील योजना के तहत दोपहर का भोजन दिया जा रहा है। इस योजना के लागू होने से सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कई ऐसे गरीब परिवारों के बच्चों को लाभ पहुंचा है, जो प्रायः भूखे पेट ही स्कूल पहुंच जाते थे…

भारतवर्ष में स्कूली बच्चों को दोपहर का भोजन देने की शुरुआत 1925 में हुई थी, जब मद्रास म्युनिसिपल  कारपोरेशन ने गरीब बच्चों के लिए मध्यान्ह भोजन योजना की शुरुआत की थी। 1980 में गुजरात, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी ने अपने-अपने शिक्षण संस्थानों में प्राइमरी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए दोपहर में भोजन देने की शुरुआत की थी। बाद में भारतवर्ष में मध्यान्ह भोजन योजना को सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने, उन्हें स्कूलों में आने और पढ़ने के लिए प्रेरित रखने तथा उपस्थिति के दृष्टिकोण एवं नेक इरादे से 15 अगस्त, 1995 को एक केंद्रीय प्रायोजित स्कीम के रूप में देश के 2408 शिक्षा खंडों में शुरू किया गया। अक्तूबर 2007 से इस योजना का विस्तार करते हुए देश के सभी सरकारी प्राइमरी और मिडल स्कूलों के पहली से आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिए इस योजना को लागू कर दिया गया। हिमाचल प्रदेश के सभी सरकारी 10751 प्राइमरी, 2103 मिडल स्कूलों के अलावा 922 राजकीय उच्च विद्यालयों और 1836 वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाओं में पढ़ने वाले छठी से आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को दोपहर का भोजन दिया जा रहा है। इस योजना के लागू होने से सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कई ऐसे गरीब परिवारों के बच्चों को लाभ पहुंचा है, जो प्रायः भूखे पेट ही स्कूल पहुंच जाते थे अथवा कई माता-पिता दोपहर के भोजन की व्यवस्था न कर पाने के कारण भी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते थे। आज हिमाचल प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में न केवल मिड-डे-मील मिल रहा है, बल्कि मुफ्त वर्दियां, 8वीं तक निशुल्क शिक्षा और निशुल्क किताबों के वितरण से गरीब परिवारों के मेधावी विद्यार्थियों को लाभ पहुंचा है। मध्यान्ह भोजन योजना से विद्यालयों में समरसता और सामाजिकता की भावना को भी बढ़ावा मिला है। इससे समतावादी मूल्यों के प्रसार और अस्पृश्यता जैसी बुराइयों के उन्मूलन में सहायता मिल रही है, क्योंकि विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमि वाले बच्चे एक जगह पर एक साथ बैठकर साथ-साथ भोजन करते हैं।

इससे बच्चों में ज्ञानात्मक, भावात्मक और सामाजिक विकास में बढ़ोतरी के साथ-साथ समानता की भावना के विकास में भी वृद्धि दर्ज की गई है। मिड-डे-मील दुनिया की सबसे बड़ी योजनाओं में से एक है। इसके लिए भारतवर्ष के सभी सरकारी स्कूलों में दोपहर का भोजन बनाने की व्यवस्था एवं आधारभूत ढांचा तैयार किया गया है। कई राज्यों में पंचायती राज संस्थानों, स्वयं सहायता समूहों, मातृ संगठनों, स्थानीय समाज और गैर सरकारी संगठनों को भी इस योजना के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस योजना के अंतर्गत देशभर के 11,58,000   सरकारी स्कूलों के 11 करोड़ विद्यार्थियों को प्रत्येक कार्य दिवस को दोपहर का भोजन उपलब्ध करवाया जा रहा है। 2007-08 में केंद्र सरकार ने मिड-डे-मील के लिए 7324 करोड़ रुपए स्वीकृत किए थे, तो वर्ष 2018-19 में इस योजना के लिए 10500 करोड़ रुपए का बजटीय आवंटन किया गया है। इस योजना के अंतर्गत स्कूलों में 8,24,000 किचन शेड्स  बनवाए गए हैं। लगभग दो लाख छह हजार लोगों को कुक कम हेल्पर के रूप में दोपहर का भोजन तैयार करने के लिए रोजगार पर रखा गया है। हालांकि यह भी विचारणीय है कि इसके लिए इन वर्कर्स को मिलने वाला 1800 रुपए प्रति माह का मानदेय बेहद कम है, जिसमें तत्काल सम्मानजनक बढ़ोतरी की दरकार है। इन कार्यकर्ताओं को खाना बनाने के अलावा सामान लाना,  साफ-सफाई रखना और बर्तनों की धुलाई आदि कई कार्य करने पड़ते हैं और अमूमन उन्हें रोजाना पांच से छह घंटे तक ड्यूटी भी देनी पड़ती है। लिहाजा इन कुक कम हेल्पर्स के लिए उचित मानदेय दिया जाना वक्त का तकाजा भी है। कई विद्यालयों में नियमित स्वच्छ पेयजल आपूर्ति की शिकायतें हैं, जिन्हें प्राथमिकता के आधार पर सुधारने की जरूरत है। कई एनजीओ भी बढ़-चढ़कर इस योजना के क्रियान्वयन में अपना योगदान दे रहे हैं। एक एनजीओ अक्षय पात्र फाउंडेशन प्रतिदिन इस योजना के अंतर्गत कई राज्यों के 15 लाख बच्चों को दोपहर का भोजन परोस रही है और इस कार्य में 6300 कार्यकर्ता एनजीओ में कार्य कर रहे हैं।

इस योजना से बाजार को भी फायदा है, क्योंकि सारी खाद्य सामग्री और सब्जियां इत्यादि स्थानीय बाजारों से ही खरीदी जाती हैं। निस्संदेह इस बड़ी योजना से ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब परिवारों के लाखों बच्चों के दोपहर के भोजन की चिंताएं खत्म हुई हैं और वह पढ़ाई की ओर प्रवृत्त हुए हैं। मिड-डे-मील में भ्रष्टाचार की शिकायतों से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। जहां उचित निगरानी का अभाव है, वहां मिड-डे-मील प्रभारियों द्वारा हेरा-फेरी करने के भी कुछ मामले सामने आए हैं, क्योंकि कई स्कूलों में तय मानकों के अनुरूप भोजन तैयार नहीं किया जाता है। गैस सिलेंडर भी महंगा है, जिसकी व्यवस्था भी प्रतिदिन प्रत्येक विद्यार्थी के लिए निर्धारित मामूली 6.18 रुपयों में ही शामिल है।

जिन स्कूलों में बच्चों की संख्या काफी कम है, वहां प्रतिदिन 50-60 रुपयों में भोजन की तथा  गैस की व्यवस्था करना और भी कठिन है। कई बार अखबारों में मिड-डे-मील को लेकर यह खबरें भी पढ़ने को मिलती हैं कि बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए पौष्टिक आहार, अंडे, दूध, सब्जियों की व्यवस्था की जाएगी, लेकिन यह बातें अभी तक मात्र अखबारी बयानबाजी तक ही सीमित हैं। केंद्र सरकार से अपेक्षा है कि बच्चों को स्वादिष्ट एवं पौष्टिक आहार देने के लिए वर्तमान में खर्च की जा रही राशि में दो-तीन रुपए की प्रति विद्यार्थी तत्काल वृद्धि करे। अपने राष्ट्रीय स्वरूप में मिड-डे-मील एक प्रभावशाली और बेहतरीन योजना है, जो हमारे नौनिहालों के हक में है एवं इसे और मजबूत बनाने की आवश्यकता है।


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