विष्णु पुराण

By: Jan 12th, 2019 12:05 am

श्री मैत्रेयजी ने कहा, हे गुरु! हे भगवन! सृष्टि विषयक मेरे प्रश्न की उत्तर आपने मुझे भले प्रकार बता दी। हे मुनिवर! आपने जो विश्व-रचना विषयक प्रथम अंश कहा है, उनमें एक बात और जानने की इच्छा है। स्वयंभूव मनु के प्रियव्रत और उत्तानपाद नामक दो पुत्रों में से उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव का वृत्तांत आपने कहा। परंतु प्रियव्रत जी के विषय में आपने कुछ भी नहीं बताया। इसलिए उनके विषय में मेरी जिज्ञासा का समाधान आप हर्ष पूर्वक करिए। श्री पराशरजी ने कहा, प्रियव्रत का विवाह कर्दमजी की पुत्री से हुआ, जिससे सम्राट और कुक्षि नाम्नी पुत्रियां तथा दस पुत्र उत्पन्न हुए। प्रियव्रत के पुत्र अत्यंत मेधावी और विजय तथा माता-पिता के अत्यंत प्रिय हुए। अब उनके नामों को सुनो। आग्नीध्र, अग्निबाहु, वपुष्मान, द्युतिमान, मेधा, वृधातिथि, भव्य, सवन, पुत्र और दसवां ज्योतिष नामक हुए। प्रियव्रत के सभी पुत्र अपने बल और पराक्रम से विख्यात थे।

मेधाग्निबाहुपुत्रास्तु त्रयो योगपरायणाः।

जातिस्मरा महाभागा व राज्याय मनोदधुः।।

निर्मलाः सर्वकालन्तु समस्ताथयु वै मुने।

चकः क्रिया यथान्यायमफलाकाङि क्षणो हिते।।

प्रियव्रतो ददौ तेषां सप्तानां मुनिसत्तमः।

सप्तदीपानानि मैत्रेय विभज्य सुभहात्मनान।।

जल्बद्वीनमहाभाग साग्नीध्रय ददौ पिता।

मेधातिवेस्तथा प्रादाप्लक्षद्वीप तथापरम।।

शाल्मले च वपुष्मंत नरेन्द्रमभिषिक्तवान।

ज्योतिष्मन्तं कुशद्वीपे राजान कृतवान्प्रभु।।

द्यु तिमन्तं राजान क्रोञ्द्वीपे समादिषत।

शाकद्वीपेश्वरं चापि भव्य प्रियव्रत।।

उनमे मेधा आग्निबाहु और पुत्रास्तु नामक तीन पुत्र तो योग परायण और पूर्वजन्म का हाल जानने वाले हुए, राज्यादि भोगों से विरक्त रहे, क्योंकि  वे निर्मलचित और कर्म फल की कामना से परे होने के कारण सब विषयी में सदैव न्यायानुकूल रहते थे। हेमुनिसत्तम! राज। प्रियव्रत ने इनके अतिरिक्त शेष सात पुत्रों को सातद्वीप दिए। आग्नीध्र को जम्बूद्वीप तथा मेधातिथि को प्लक्ष नाम प्रदान किया। वपुष्मान को शाल्यल द्वीप और ज्योतिष्मान को कुश द्वीप का अध्रिपति बनाया। द्युतिमान कोंच द्वीप और भव्य को शाक द्वीप का राजा नियुक्त किया।

पुष्कराधिपति चक्रे सवमं चापि स प्रभुः।

जम्बूद्वीपेश्वरो यस्तु आग्नीघ्रो मुनिसत्तम।।

तस्य पुत्रा बभूवुस्ते प्रजापतिसमा नव।

नाभिः किम्पुरुश्चैव हरिवर्ष इलावृत्तः।।

रम्यो हिरण्वान्षष्टठश्च कुरुर्भष्टाश्च एव च।

केतुमालस्तथैवान्यः सामुचेष्टोऽभवन्नृपः।।

जम्बुद्वीपविभागाश्च तेषां विप्र निशामय।

पित्रा दत्त हिगाहवं तु वर्ष नाभेस्तु दक्षिणाम।।

लेमकूटं तथा वर्ष ददो किम्पुरुषाथय सः।

तृतीय नैनध वर्य हरिवर्षाथ दत्तवान।।

इलावृत्ताय प्रददौ मेरर्यत्र मध्यमः।

नीलाचर्लाश्रितं वर्ष रम्माय प्रददौ पिता।।

श्वेत तदुत्तर वर्ष पित्रा दत्त हिरण्वते।

यदुत्तर शृगवतौ वर्ष तत्कुरवे ददौ।।

मेरो पूर्वेण तद्वर्ष द्यद्राश्वाय प्रदत्तवान।

गन्धमादनवर्ष न केतुमाजाय दत्तवान।।

सवन को पुष्कर द्वीप का राजा बनाया। जम्बू द्वीप के राजा आग्नीघ्र के राजपति तुल्य नौ पुत्र हुए।  उनके नाम नार्भि, किपुरुष, प्रतिवर्ष, इलावृत्त, रम्ब, हिरण्यवान, कुरु, भ्रदाश्व और सश्कर्मा राज केतुमाल थे। हे ब्रह्मन! अब जम्बू द्वीप के जो विभाग हुए, उन्हें सुनो – आग्नीघ्र ने दक्षिण की ओर का  हिमवर्ष नाभि को प्रदान किया। किपुरुष को हेमकुट वर्ष और हरिवर्ष को नैषधवर्ष दिया।


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