सत्य को स्वीकार करो

By: Jan 26th, 2019 12:05 am

ओशो

जीवन के हर आयाम में सत्य के सामने झुकना मुश्किल है और झूठ के सामने झुकना सरल। ऐसी उलटबांसी क्यों है? उलटबांसी जरा भी नहीं है, सिर्फ तुम्हारे विचार में जरा सी चूक हो गई है, इसलिए उलटबांसी दिखाई पड़ रही है। चूक बहुत छोटी है, शायद एकदम से दिखाई न पड़े। सत्य के सामने झुकना पड़ता है, झूठ के सामने झुकना ही नहीं पड़ता, झूठ तुम्हारे सामने झुकता है और इसीलिए झूठ से दोस्ती आसान है, क्योंकि झूठ तुम्हारे सामने झुकता है और सत्य से दोस्ती कठिन है, क्योंकि सत्य के सामने तुम्हें झुकना पड़ता है। अंधा अंधेरे से दोस्ती कर सकता है, क्योंकि अंधेरा आंखें चाहिए ऐसी मांग नहीं करता, लेकिन अंधा प्रकाश से दोस्ती नहीं कर सकता है, क्योंकि प्रकाश से दोस्ती के लिए पहले तो आंखें चाहिए। अंधा अमावस की रात के साथ तो तल्लीन हो सकता है, मगर पूर्णिमा की रात के साथ बेचैन हो जाएगा। पूर्णिमा की रात उसे उसके अंधेपन की याद दिलाएगी। अमावस की रात अंधेपन को भुलाएगी, याद नहीं दिलाएगी। तुम कहते हो, जीवन के हर आयाम में सत्य के सामने झुकना मुश्किल है। यह सच है क्योंकि सत्य के सामने झुकने का अर्थ होता है अहंकार को विसर्जित करना, लेकिन दूसरी बात सच नहीं है, जो तुम कहते हो कि झूठ के सामने झुकना सरल क्यों है? झूठ तो सदा तुम्हारे सामने झुका हुआ खड़ा है, तुम्हारे पैरों में बैठा है।  झूठ के साथ दोस्ती आसान क्योंकि झूठ तुम्हें रूपांतरित करने की बात ही नहीं करता। झूठ तो कहता है कि तुम हो ही, जो होना चाहिए वही हो, उससे भी श्रेष्ठ तुम हो। झूठ तुम्हारी प्रशंसा के पुल बांधता है। झूठ तुम्हें बड़ी सांत्वना देता है और कितने-कितने झूठ हमने गढ़े हैं! इतने झूठ कि अगर तुम खोजने चलो तो घबरा जाओगे! सत्य तो एक है, झूठ अनंत हैं। जैसे स्वास्थ्य एक है और बीमारियां अनेक हैं, ऐसे ही सत्य एक है और सत्य तुम्हें फुसलाएगा नहीं, तुम्हारी खुशामद नहीं करेगा। सत्य तो कड़वा मालूम पड़ेगा, क्योंकि तुम झूठ की मिठास के आदी हो गए हो। झूठ तो अपने ऊपर शक्कर चढ़ाकर आएगा। सत्य तो जैसा है वैसा है। जो लोग झूठ के आदी हो गए हैं, वे सत्य से तो आंखें चुराएंगे, सत्य उनकी जीभ को जमेगा ही नहीं। सत्य तो उन्हें बहुत तिक्त मालूम होगा, कड़वा मालूम होगा। झूठ तुम्हारे अहंकार को पुष्ट करते है। इसलिए झूठ को स्वीकार कर लेना, आसान है, आसान क्या सुखद है।  सत्य को स्वीकार करने के लिए साहस चाहिए। सत्य को स्वीकार करने के लिए साहस ही नहीं, दुस्साहस चाहिए! सत्य को स्वीकार करने के लिए जोखिम उठाने की हिम्मत चाहिए इसलिए सत्य के सामने कोई झुकता नहीं। झुकना कौन चाहता है? कोई नहीं झुकना चाहता। सत्य के सामने झुकने को जो राजी है, वही धार्मिक व्यक्ति है। मैं उसी को संन्यासी कहता हूं, लेकिन सत्य के सामने वही झुक सकता है, जिसके भीतर ध्यान की किरण उतरी हो और जिसने देखा हो कि मैं तो हूं ही नहीं। बस उस मैं के न होने में ही झुकना है। झुकना तुम्हारा कोई संकल्प नहीं है। अगर कृत्य है, अगर संकल्प है, तो कर्ता फिर निर्मित हो जाएगा, फिर अहंकार बन जाएगा। तुम्हारे भीतर एक नया अहंकार पैदा हो जाएगा कि देखो मैं कितना विनम्र हूं, कैसा झुक जाता हूं, जगह-जगह झुक जाता हूं, मुझसे ज्यादा विनम्र कोई भी नहीं। इसलिए मैं अपने संन्यासियों को सिर्फ  एक बात कह रहा हूं, सिर्फ  एक औषधि कि तुम ध्यान में उतरो।


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