साझा उम्मीदवार संभव नहीं

By: Jan 22nd, 2019 12:04 am

बीते कल के संपादकीय में यह संदर्भ भी था। विपक्षी गठबंधन को सफल बनाने के मद्देनजर यह बुनियादी अनिवार्यता है कि भाजपा-एनडीए के मुकाबले विपक्ष का साझा और एक ही उम्मीदवार होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होगा, तो मोदी को हराना टेढ़ी खीर है, यह विपक्ष के बड़े नेता भी अनौपचारिक तौर पर स्वीकार करते रहे हैं। ऐसा होना इसलिए संभव नहीं है, क्योंकि हमारे देश की संरचना संघीय है। बेशक भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राष्ट्रीय दल हैं, लेकिन इनकी व्यापकता और चुनावी सफलता ‘राष्ट्रीय’ नहीं है। संघीय ढांचे के कारण ताकतवर क्षेत्रीय दल उभरे हैं और विपक्षी खेमे में जो चार मुख्यमंत्री फिलहाल हैं, वे सभी क्षेत्रीय दलों के नेता हैं। कोलकाता के ‘ब्रिगेड समावेश’ के मंच पर सभी क्षेत्रीय दल ही थे। कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे तो ‘प्रतीकात्मक’ थे, जो सोनिया-राहुल गांधी के दूत के तौर पर शामिल हुए थे। बहरहाल देवेगौड़ा से ममता और केजरीवाल तक सभी विपक्षी नेताओं की यह पहली और बुनियादी चिंता थी कि विपक्षी वोट आपस में बंटने नहीं चाहिए और भाजपा के खिलाफ एक ही साझा प्रत्याशी उतारा जाए, लेकिन राजनीतिक दलों की अपनी चुनावी महत्त्वाकांक्षा कहें या गठबंधन की दरारें मानें, 2019 के लोकसभा चुनाव में ऐसा संभव नहीं होगा। शुरुआत ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल से ही करें। वहां सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को कड़ी चुनौती भाजपा देगी, लेकिन कांग्रेस और वाममोर्चा किसी गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं। वाममोर्चा का कोई प्रतिनिधि भी ‘ब्रिगेड समावेश’ के मंच पर नहीं आया। केरल में वाममोर्चा सत्तारूढ़ है। वहां भी कांग्रेस नेतृत्व वाला गठबंधन अलग चुनाव लड़ेगा और हिंदुओं-ईसाइयों के समर्थन से भाजपा भी इस बार तगड़ी ताल ठोंक रही है। केरल में लोकसभा की 20 सीटें हैं। ओडिशा और आंध्रप्रदेश में विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव के साथ ही कराए जा सकते हैं। ओडिशा में बीजू जनता दल करीब 20 सालों से सत्ता में है और नवीन पटनायक मुख्यमंत्री रहे हैं। वह कोलकाता रैली में नहीं गए। ओडिशा में गठबंधन की संभावनाएं क्षीण हैं, क्योंकि बीजद किसी तीसरे मोर्चे का पक्षधर है, लिहाजा वहां बीजद के सामने भाजपा, कांग्रेस दोनों ही होंगी। ओडिशा में 21 लोकसभा सीटें हैं। आंध्र में फिलहाल तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) सत्ता में है, लेकिन जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी उसे जबरदस्त टक्कर देने की स्थिति में है। टीडीपी ने तेलंगाना में कांग्रेस के साथ जो गठबंधन किया था, उसे तोड़ दिया गया है। नतीजतन सभी दल अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ‘संघीय मोर्चे’ का प्रचार कर रहे हैं। उनकी मुलाकातें ममता बनर्जी से हुई हैं। अब राव और जगनमोहन रेड्डी भी ममता के महागठबंधन में शामिल नहीं हैं। वे गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेस गठबंधन के पक्षधर हैं। जाहिर है कि 42 सीटों वाले इन दोनों राज्यों में भी चुनाव बहुकोणीय ही होंगे। तमिलनाडु में 39 लोकसभा सीटें हैं। वहां द्रमुक और कांग्रेस में गठबंधन संभव है, लेकिन उनके अलावा सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक, भाजपा, पीएमके, एमडीएमके और कमल हासन की पार्टियां भी चुनावी मैदान में हैं। पड़ोसी राज्य कर्नाटक में मौजूदा गठबंधन कब तक बरकरार रहता है, हालात के मद्देनजर कुछ भी नहीं कहा जा सकता। दक्षिण से उत्तर की ओर आएं, तो 80 लोकसभा सीट वाले देश के सबसे बड़े राज्य-उत्तर प्रदेश में बेशक सपा-बसपा गठबंधन हो गया है, लेकिन कांग्रेस ने सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी है। मुलायम सिंह के छोटे भाई शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी भी अलग चुनाव लड़ेगी। सत्तारूढ़ भाजपा तो मुख्य प्रतिद्वंद्वी है ही। बिहार में एक बनाम एक की संभावनाएं हैं, लेकिन चुनावों तक माहौल और समीकरण देखने पड़ेंगे। कोलकाता रैली में चीख-चीख कर बोलने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ‘आप’ ने कांग्रेस से गठबंधन करने से इनकार कर दिया है। ‘आप’ पंजाब में भी कांग्रेस के समानांतर चुनाव लड़ेगी, जबकि भाजपा और अकाली दल तीसरा पक्ष हैं। यह आकलन मोटे तौर पर किया गया है, लेकिन गंभीर और सटीक है। एकीकृत विपक्ष का सफल प्रयोग 1977 में जनता पार्टी के रूप में किया गया था। उसके बाद के गठबंधन चुनाव के बाद ही बने हैं। 2019 में विपक्ष की रणनीति अब क्या होगी, यह देखना पड़ेगा।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App