सुधारों की डगर पर सरकारी बैंक

By: Jan 7th, 2019 12:06 am

जयंती लाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

निश्चित रूप से नए वर्ष 2019 से केंद्र सरकार द्वारा बैंकों में आर्थिक अनियमितता और धोखाधड़ी करके विदेश भागने की संभावनाओं पर तत्काल रोक लगाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंकों के चेयरमैन, प्रबंध निदेशकों तथा मुख्य कार्याधिकारियों को अधिकार संपन्न बनाया गया है। इससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के धन की धोखाधड़ी और दुरुपयोग रुकेगा…

यकीनन नए वर्ष 2019 की शुरुआत से ही देश में बेहतर बैंकिंग की संभावनाओं का परिदृश्य दिखाई दे रहा है। हाल ही में 2 जनवरी को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बैंक ऑफ बड़ौदा में विजया बैंक और देना बैंक के विलय को मंजूरी दी है। इन तीनों बैंकों के विलय के बाद नया एकीकृत बैंक देश में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) तथा एचडीएफसी बैंक के बाद तीसरा बड़ा बैंक होगा। इन तीन बैंकों के एकीकरण से मजबूत वैश्विक बैंक आकार लेगा। आपसी समन्वय की दृष्टि से बैंक को एक-दूसरे के नेटवर्क, कम लागत की जमा और बैंकों की सहायक संस्थाओं की शक्तियों का लाभ मिलेगा। इससे बैंकों के उपभोक्ता आधार, बाजार पहुंच, संचालन क्षमता, उत्पाद और सेवा आधार में बढ़ोतरी होगी।

निश्चित रूप से नए वर्ष 2019 से केंद्र सरकार द्वारा बैंकों में आर्थिक अनियमितता और धोखाधड़ी करके विदेश भागने की संभावनाओं पर तत्काल रोक लगाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंकों के चेयरमैन, प्रबंध निदेशकों तथा मुख्य कार्याधिकारियों को अधिकार संपन्न बनाया गया है। बैंकों के ये उच्च अधिकारी प्रत्यक्ष कर्ज चुकाने में जानबूझकर चूक करने वाले ऐसे कर्जदारों, जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं हुई है, के लिए लुकआउट नोटिस जारी करने का आग्रह स्वयं गृह मंत्रालय से कर सकेंगे। इस अधिकार का उद्देश्य बैंकों के कर्जदारों को बैंकों के साथ धोखाधड़ी करके देश छोड़कर भागने से रोकना है। सामान्यतः जांच एजेंसियां बैंकों से जानबूझकर चूक करने वाले कर्जदारों के खिलाफ शिकायत पर एफआईआर दर्ज करने में समय लेती हैं। इस संबंध में केंद्रीय सरकार के नए अहम कदम से  बैंक के चूककर्ताओं के लिए देश से भागने की कोई गुंजाइश नहीं होगी। उल्लेखनीय है कि अब तक गृह मंत्रालय ने सीबीआई, इंटरपोल, राजस्व सूचना निदेशालय, रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के नामित अधिकारियों, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को लुकआउट सर्कुलर का आग्रह करने का अधिकार दिया हुआ था। लुकआउट सर्कुलर का आग्रह मिलने के बाद गृह मंत्रालय देश के सभी हवाई अड्डों के सभी आव्रजन जांच केंद्रों को ऐसे किसी व्यक्ति को देश से बाहर जाने से रोकने की मंजूरी देता है, जिसे भारत के आर्थिक हितों के लिए हानिकारक माना जा रहा है।

वस्तुतः बैंक संबंधी वित्तीय अनियमितता में लिप्त या आपराधिक जांच का सामना कर रहे कोई 28 लोग या तो देश छोड़कर भाग गए हैं या विदेश में रह रहे हैं। निश्चित रूप से अब सरकार के इस कदम से बैंक कर्ज संबंधी वित्तीय घोटाले और कर्ज डूबाने वाले कारोबारी देश छोड़कर नहीं भाग सकेंगे और उनके प्रत्यर्पण यानी देश वापस लाने संबंधी मुश्किलों से बचा जा सकेगा। इससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के धन की धोखाधड़ी और दुरुपयोग रुकेगा। देश में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा सरल बैंक ऋण का नया परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है। तीन जनवरी, 2019 को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की रिपोर्ट में कृषि, छोटे उद्योग और कारोबार को पर्याप्त कर्ज देने की बात कही गई है। गौरतलब है कि विगत 19 नवंबर, 2018 को आरबीआई के केंद्रीय निदेशक मंडल की बैठक में लिए गए निर्णयों से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कर्ज आवंटन सहित विभिन्न बैंकिंग कार्यों में नई जान फूंकी जा सकेगी। रिजर्व बैंक की उक्त बैठक में आरबीआई का आर्थिक पूंजी ढांचा, घाटे और फंसे हुए कर्ज की समस्या से जूझ रहे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए तात्कालिक सुधारात्मक कदम, संकटग्रस्त मझोले-छोटे और सूक्ष्म उपक्रमों के लिए ऋण पुनर्गठन की योजना तथा बैंकों के लिए बेसल नियामकीय पूंजी ढांचा संबंधी मसलों पर उपयुक्त निर्णय हुए हैं। वस्तुतः सरकार की यह इच्छा थी कि वह पूंजी की तरलता के लिए रिजर्व बैंक के अतिरिक्त भंडार के बड़े हिस्से का इस्तेमाल कर सके। इस परिप्रेक्ष्य में बैंक ऑफ अमरीका मेरिल लिंच ने भी कहा है कि रिजर्व बैंक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों  को अपने सुरक्षित कोष से एक से तीन करोड़ रुपए तक सरलता से उपलब्धत करा सकता है। देश के अधिकांश अर्थविशेषज्ञों का मानना है कि सरकार द्वारा राजकोषीय घाटे के प्रबंधन के लिए रिजर्व बैंक के अतिरिक्त भंडार का उपयोग नहीं करना चाहिए, लेकिन इस धन का बैंकों के पुनर्पूंजीकरण और गरीबी कम करने में उपयोग किया जा सकता है। निश्चित रूप से आरबीआई द्वारा पूंजी नियमों में नरमी से बैंकों के पास उपयुक्त कर्ज देने के लिए धन आ सकेगा। केंद्र सरकार ने निर्णय लिया है कि वह जनवरी से मार्च 2019 के बीच सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 83000 करोड़ रुपए डालेगी, इससे चालू वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान बैंकों में कुल प्रभावी निवेश 1.06 लाख करोड़ रुपए हो जाएगा। चूंकि सरकार किसी सरकारी बैंक को विफल नहीं होने देना चाहती है, अतएव सरकार बैंकों को जरूरी पूंजी मुहैया कराने की डगर पर आगे बढ़ी है। इससे पूंजी की किल्लत से परेशान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को जल्द राहत मिलेगी।

चूंकि भारत में बैंकों की जन हितैषी योजनाओं का संचालन सामान्यतया सरकारी बैंकों पर आधारित है। अतएव सरकारी बैंकों की मजबूती जरूरी है। देश भर में चल रही विभिन्न कल्याणकारी स्कीमों के लिए धन की व्यवस्था करने और उन्हें बांटने की जिम्मेदारी सरकारी बैंकों को सौंपी गई है। सरकारी बैंकों द्वारा मुद्रा लोन, एजुकेशन लोन और किसान क्रेडिट कार्ड सहित अनेक कल्याणकारी योजनाओं के जरिए बड़े पैमाने पर कर्ज बांटा जा रहा है। चूंकि बीमा या सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ लेने के लिए बैंक खाता जरूरी है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में बैंकिंग सुविधाओं की भारी कमी है। ऐसे में भारत की नई बैंकिंग जिम्मेदारी बैंकों के निजीकरण से संभव नहीं है। सरकारी बैंकों को ही सक्षम बनाना जरूरी है। निश्चित रूप से सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) में जो अतिरिक्त पूंजी डाली जा रही है, उससे बैंकों में फंसे कर्ज (एनपीए) के लिए प्रावधान में सुधार लाने में मदद मिल रही है।

देश और दुनिया के अर्थ विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के द्वारा छोटे और कमजोर सरकारी बैंकों में पुनर्पूंजीकरण का कदम एक बड़ा बैंकिंग सुधार है। निस्संदेह बैंक ऑफ बड़ौदा (बीओबी) में विजया बैंक और देना बैंक के विलय, केंद्र सरकार द्वारा कर्ज डूबाने वाले बड़े उद्योगपतियों को देश छोड़कर भागने से रोकने के लिए बैंकों के उच्च अधिकारियों को ही सक्षम बनाने तथा आरबीआई के माध्यम से सरकारी बैंकों को अतिरिक्त कर्ज देने में सक्षम बनाने संबंधी जो निर्णय लिए गए हैं, वे बैंकों के डूबते हुए कर्ज से गंभीर रूप से बीमार भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में महत्त्वपूर्ण सहयोग करेंगे।


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