सैनिक स्कूल छात्रवृत्ति रोकना वाजिब नहीं

By: Jan 17th, 2019 12:07 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

हिमाचल प्रदेश के निजी शैक्षणिक संस्थानों में अढ़ाई सौ करोड़ के छात्रवृत्ति घोटाले की जांच का जिम्मा तो प्रदेश सरकार ने सीबीआई को सौंप दिया है, लेकिन पिछले तीन शैक्षणिक सत्रों से सैनिक स्कूल सुजानपुर टिहरा में पढ़ने वाले मेधावी हिमाचली बच्चों की छात्रवृत्ति क्यों रोकी गई है…

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी पुणे के लिए जोश-जज्बे और राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत युवाओं की पौध तैयार करने के उद्देश्य से सन् 1961 में भारत के प्रत्येक राज्य में सैनिक स्कूलों को खोलने का विचार तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके मेनन के दिमाग में आया था। इसी क्रम में 1974 में उस समय की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने सुजानपुर टिहरा में सैनिक स्कूल की स्थापना को लेकर शिलान्यास किया था और 2 नवंबर, 1978 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री नीलम संजीवा रेड्डी ने इस प्रतिष्ठित विद्यालय का उद्घाटन किया था। विंग कमांडर एचएस मेहता इस स्कूल के पहले संस्थापक प्रधानाचार्य थे। आज तक सुजानियन के 34 बैच यहां से पास आउट हो चुके हैं।

जिला मुख्यालय हमीरपुर से 24 किलोमीटर की दूरी पर सुजानपुर टिहरा के चौगान में स्थित इस विद्यालय की गौरवशाली उपलब्धियां रही हैं। यहां पढ़ने वाले कैडेट्स को अनुशासन, समय की पाबंदी, आपसी सहयोग एवं बंधुत्व भावना, खेलों में भाईचारा, विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी और सेना में अधिकारी के रूप में शामिल होना सिखाया जाता है। आज तक यहां से पढ़कर निकले कैडेट्स एनडीए, आईएमए, ओटीए, वायु सेना, नौसेना में चयनित हुए हैं, तो मेडिकल, पशु चिकित्सा, इंजीनियरिंग और  सरकारी सेवा में क्लास वन अधिकारी बनने वाले छात्रों की तादाद भी काफी है। भारतीय सशस्त्र सेनाओं में अधिकारी के रूप में चयनित होने को लेकर हिमाचली भावनाएं जगजाहिर हैं।

यही वजह है कि इस बार हुई सैनिक स्कूल प्रवेश परीक्षा में छठी कक्षा के लिए कुल 3583 और नवमी कक्षा के लिए 1544 अर्थात कुल 5127 बच्चों ने भाग लिया। आजादी के बाद से ही बड़ी संख्या में हिमाचली युवा सेना में भर्ती होते आ रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से शिक्षा के प्रचार-प्रसार में वृद्धि होने के साथ ही बड़ी संख्या में हमारे युवा सैन्य अधिकारी के रूप में भी चयनित हो रहे हैं। ऐसे समय में जब भारतीय सेना में अधिकारियों के कुल स्वीकृत 49 हजार 631 पदों में से लगभग नौ हजार से अधिक पद रिक्त चल रहे हों, तो वहां सैनिक स्कूलों का महत्त्व अपने आप बढ़ जाता है। भारतवर्ष के अधिकतर राज्यों में सैनिक स्कूल हैं और ज्यादा से ज्यादा बच्चे सैनिक स्कूल में प्रवेश लें, इसके लिए वहां की सरकारें अपनी तरफ से राज्य के छात्रों को वजीफे का प्रावधान भी करती हैं। बिहार और हरियाणा में पहले से ही दो-दो सैनिक स्कूल हैं, लेकिन अब हरियाणा देश का ऐसा पहला राज्य बनने जा रहा है, जहां केंद्र सरकार के रक्षा मंत्रालय ने झज्जर जिले के मातनेहल गांव में कुंजपुरा और रेवाड़ी के बाद तीसरे सैनिक स्कूल को खोलने के लिए अपनी मंजूरी प्रदान कर दी है। इसके लिए मातनेहल गांव की पंचायत द्वारा 38 एकड़ जमीन उपलब्ध करवाई गई है, तो वहीं हरियाणा सरकार ने 50 करोड़ रुपए खर्च करने के साथ-साथ भूमि, भवन, फर्नीचर, परिवहन और शैक्षणिक उपकरणों पर होने वाले समस्त पूंजीगत खर्च का बोझ उठाने का समझौता भी किया है। इसके अलावा हरियाणा सरकार ने प्रदेश के छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति को भी दोगुना कर दिया है। वहीं यदि हिमाचल प्रदेश के एकमात्र सैनिक स्कूल सुजानपुर टिहरा में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को मिलने वाली छात्रवृत्ति की बात करें, तो यह बेहद दुखद और चौंकाने वाला सत्य है कि इन छात्रों को पिछले तीन शैक्षणिक सत्रों अर्थात 2015-16 से 2017-18 तक की अवधि के लिए छात्रवृत्ति हिमाचल प्रदेश शिक्षा निदेशालय द्वारा जारी ही नहीं की गई है। वर्तमान समय में इस विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों की फीस ही एक लाख रुपए सालाना हो चुकी है, जबकि अन्य खर्चे अलग हैं। यह भी कठोर सत्य है कि यहां पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे मध्यमवर्गीय परिवारों से संबंधित हैं और प्रदेश सरकार द्वारा केवल नाममात्र की ही छात्रवृत्ति हिमाचली बोनाफाइड छात्रों को दी जा रही थी, जो 2015 से रुकी पड़ी है। शिक्षा निदेशालय को डाली गई आरटीआई के जवाब में 26 नवंबर, 2018 को सूचना दी गई है कि छात्रवृत्ति का मामला राज्य सरकार और आडिटर जनरल के बीच चल रहा है और जब कभी भी विभाग को राज्य सरकार से निर्देश मिलेंगे, तो रुकी हुई छात्रवृत्ति जारी कर दी जाएगी। हैरानी  वाली बात है कि आखिर ऐसा क्या पेंच फंस गया है, जो हिमाचली छात्रों को लगातार पिछले तीन-चार वर्षों से इस लाभ से वंचित रखा जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के निजी शैक्षणिक संस्थानों में अढ़ाई सौ करोड़ के छात्रवृत्ति घोटाले की जांच का जिम्मा तो प्रदेश सरकार ने सीबीआई को सौंप दिया है, लेकिन पिछले तीन शैक्षणिक सत्रों से बेवजह रोकी गई सैनिक स्कूल सुजानपुर टिहरा में पढ़ने वाले मेधावी हिमाचली बच्चों की छात्रवृत्ति क्यों रोकी गई है? इसको लेकर क्यों शिक्षा विभाग में सुस्ती का आलम जारी है? पिछले वर्ष राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के लिए भारतवर्ष में सबसे ज्यादा कैडेट्स की सिलेक्शन होने पर सैनिक स्कूल सुजानपुर टिहरा को रक्षा मंत्री की ट्रॉफी से नवाजा गया है, तो वहीं खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की तरफ से चयनित होने वाले कैडेट्स को बधाई पत्र भेजे गए हैं।

उम्मीद है कि जयराम ठाकुर सरकार, प्रदेश शिक्षा विभाग को 31 मार्च से पहले पिछले चार शैक्षणिक सत्रों से रोकी गई हिमाचली बोनाफाइड छात्रों की छात्रवृत्ति जारी करने का आदेश देगी। सरकार से यह अपेक्षा भी रहेगी कि प्रदेश सरकार हरियाणा राज्य की तर्ज पर हिमाचल प्रदेश में भी दूसरा सैनिक स्कूल खोलने की कवायद शुरू करेगी  और प्रदेश के इस एकमात्र सैनिक स्कूल को दरपेश आ रही समस्याओं के निराकरण के लिए आवश्यक कदम उठाएगी।


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