अदरक की सबसे धांसू किस्म तैयार

By: Feb 10th, 2019 12:08 am

नौणी यूनिवर्सिटी ने तैयार किया गिरिगंगा नाम से सबसे जानदार बीज, पहले हिमतगिरि ने मचाई थी धमाल

अदरक में अधिक पैदावार, तेल की ज्यादा मात्रा व कम सड़न रोग विशेषता वाली किस्म जल्द ही देश के किसानों को मिलने वाली है। डा. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी, सोलन ने पांच साल की मेहनत से सोलन गिरीगंगा नाम से अदरक की नई किस्म तैयार की है। यह किस्म हिमाचल के मध्य व निम्न पर्वतीय क्षेत्रों के अलावा देश के पूर्वोतर राज्यों, सिक्किम व केरल जहां मसाला आधारित फसलों का उत्पादन ज्यादा होता है, बहुत उपयुक्त है। क्लोन चयन विधि से की तैयार किस्म विवि के सब्जी विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा. अश्वनी कुमार शर्मा ने बताया कि इस किस्म का विकास सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र से क्लोन चयन विधि द्वारा किया गया है। विभाग के वैज्ञानिक डा. हैप्पी देव शर्मा ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के मसाला आधारित फसलों पर ऑल इंडिया कॉर्डिनेटिड रिसर्च प्रोजेक्ट के तहत इसको विकसित करने पर काम किया। इस प्रोजेक्ट के तहत नौणी विवि के वैज्ञानिकों ने देश से करीब 200 किस्म के अदरक को एकत्रित किया। क्लोन चयन विधि पर पांच साल के शोध के बाद इस अदरक की प्रजाति को विकसित करने में कामयाबी मिली। इस प्रजाति को अगले साल किसानों को दिया जाएगा। पैदावार में भारी वृद्धि पहले देश में हिमगिरी किस्म थी, लेकिन अब नौणी के वैज्ञानिक ने सोलन गिरीगंगा किस्म को तैयार किया है। हिमगिरी किस्म से 120 से 125 प्रति हेक्टेयर होती थी, जबकि शोध के दौरान सोलन गिरीगंगा में फसल की पैदावार 30 से 35 फीसद अधिक पैदावार पाई गई। हिमगिरी में तेल की मात्रा 1.20 फीसद जबकि गिरीगंगा में 1.45 फीसद है।  इसमें सड़न रोग की मात्रा भी दस फीसद कम पाई गई। नौणी विवि के कुलपति डा. एचसी शर्मा ने विभाग के वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा कि इस प्रजाति से अदरक के उत्पादन को बढ़ाने में मदद मिलेगी और इसका नौणी विवि में ही उपलब्ध होगा है।

 –मोहिनी सूद,नौणी

अब की बार ओलों की मार

हिमाचल में मौसम के बदले तेवरों ने खेती पर खट्टा-मीठा गहरा असर डाला है। शिमला, किन्नौर, चंबा, सोलन-सिरमौर के ऊंचाई वाले इलाकों सेब के लिए यह बारिश रामबाण मानी जा रही है। इससे जहां पेड़ों में कीड़ा लगने की आशंका एक तरह से खत्म हो जाती है,वहीं सेब की बंपर फसल की उम्मीद भी बंध गई है।

दूसरी ओर कांगड़ा, चंबा, ऊना, हमीरपुर, बिलासपुर आदि जिलों के मैदानी इलाकों में ओलों ने फसल पर खूब मार दी है। इससे जहां गोभी और मटर की फसल को खूब नुकसान हुआ है, वहीं कहीं कहीं गेहूं की हालत बिगड़ गई है। आने वाले समय में अगर दोबारा ओले गिरते हैं ,तो फसलों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। दूसरी ओर सूचना यह भी है कि सोलन समेत कई इलाकों मेें ओलावृष्टि कम हुई है, इससे वहां कोई ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है।

चंगर में फसलें रिचार्ज

प्रदेश के चंगर इलाकों में बारिश का सबसे ज्यादा सकारात्मक असर हुआ है। करीब एक फीट तक पानी नीचे होने से अब गेहूं आदि फसलों में नई जान आ गई है। आगामी काफी समय तक यह नमी बरकरार रहेगी। किसानों को एक बार फिर से गेहूं की अच्छी फसल की आस है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

नौणी यूनिवर्सिटी से एक्सपर्ट डा. जेएन शर्मा का कहना है कि ताजा बारिश फसलों के लिए काफी अच्छी है। नकदी फसलों के साथ चंगर में होने वाली पारंपरिक खेती के लिए यह रामबाण के समान है। हालांकि ओलों से  फसलों को नुकसान हो सकता है।

किसान  बागबानों के सवालों के जवाब

टमाटर में पता धब्बा रोग की रोगथाम के लिए किस दवाई का छिड़काव करें?

स्पेनोसेड़ दवाई 1.0 मि.ली./4 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।

बंद कमरे में खुंब उत्पादन के लिए जलवायु कैसी हो सफेद खुंब की फसल में कमरे का तापमान कितना बनाए रखें ?

बंद कमरे में खुंब उत्पादन के लिए जलवायु उचित है। सफेद खुंब की फसल में कमरे का तापमान 17-18 सें. तक बनाए रखें और पानी भी छिड़के। पानी छिड़कने के बाद हवा चलाएं ताकि खुंब के ऊपर पानी न रहे।

माटी के लाल

सवा किलो का शलगम और डेढ़-डेढ़ फुट की मूली

दाड़लाघाट के मेहनतकश किसान अमर ने किया कमाल

दाड़लाघाट उपमंडल के अंतर्गत ग्राम पंचायत हनुमान बड़ोग के एक मेहनतकश किसान अमर शर्मा ने सब्जियों की अच्छी किस्मों की पैदावार कर क्षेत्रवासियों को दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर कर दिया है। अमर शर्मा अपने भाई के साथ कड़ी मेहनत व लग्न से कई बार लोगों को अच्छी किस्म की सब्जियां उगाकर अचंभित कर देते हैं। बताते चलें कि अभी पिछली गर्मियों में भी ही सेब की उन्नत पैदावार उत्पन्न कर गर्मियों में सेब के पेड़ों से अच्छी पैदावार ली थी, अब वहीं इन्होंने मूली तकरीबन डेढ़ फुट और शलगम का वजन तकरीबन एक किलो 250 ग्राम के आसपास उगाकर लोगों को अचरज में डाल दिया है। अमर शर्मा इस युग में भी सयुंक्त परिवार में रहते हैं और ज्यादातर समय साग सब्जियों और उत्तम कृषि करने में देते हैं। इनका कहना है कि सयुंक्त परिवार सबसे बढि़या परिवार होता है। यहां मिलजुल कर सभी एक दूसरे का हाथ बंटाते हैं। आजकल भारत सरकार भी तरह-तरह के ऋण देकर लोगों को किसानी के लिए आगे बढ़ने का मौका दे रही है। अमर शर्मा का कहना है कि इस कामयाबी के बाद उनका लक्ष्य इस प्रजाति के सेब अधिक मात्रा में उगाना तथा उन्हें कामयाब करना ही उनका अगल लक्ष्य है, ताकि नॉन ऐप्पल जोन वाले इस क्षेत्र में सेब की फसल में कामयाबी मिल सके और अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिल सके।

– केशव वशिष्ठ, दाड़लाघाट    

 किसानों को टिप्स

किसान भाईयों को रासायनिक खादों का कम से कम प्रयोग करना चाहिए ताकि लोगों के स्वास्थ्य पर हमारे द्वारा उगाई गई सब्जियों का विपरित असर न पड़े। मैंने अपने बागबान में जैविक और गोबर खाद का ही अधिक उपयोग किया और उससे उत्पादन में कोई कमी नहीं आई। बीज पर भी अधिक उत्पादन निर्भर करता है। हम बाजार से उन्नत किस्म के बीज ढूंढ कर प्रयोग करते हैं और मेहनत तथा लगन के साथ उनकी निराई गुड़ाई, अवांछित घास समय-समय पर निकालते रहें, तो निश्चित रूप से हमें अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।

साल में 90 लाख के सेब बेच रहे नरेश

ठियोग की महोग पंचायत के गांव सिरो के प्रगतिशील बागबान नरेश ठाकुर बागबानी के नरेश है। नरेश ठाकुर सौ बीघा निजी भूमि में इस समय करीब सालाना नौ हजार के करीब सेब उत्पादन कर रहे हैं और हर साल करीब 80 से 90 लाख का सेब बेच रहे हैं। नरेश ठाकुर के बागीचे में सेब की रायल किस्मों के अलावा स्पर वैरायटियों की कुल 20 किस्में हैं। सौ बीघा भूमि में नरेश ठाकुर के पाचं हजार से अधिक सेब के पौधे लगे हैं। 45 वर्षीय नरेश ठाकुर ने बताया कि यह उनकी तथा उनके भाईयों की हाड़तोड मेहनत का नतीजा है कि आज बागबानी में उनकी पहचान बनी है। नरेश ठाकुर का कहना है कि सही बागबानी को लेकर जागरूकता ही एक सफल बागबान का मूल मंत्र है। उन्होंने बताया कि आज के दौर में बागबान वैराटियों के पीछे भाग रहे हैं जो गलत है। सेब की वैराटियों का चयन जमीन हाईट के हिसाब से होना चाहिए।

– रोहित सिमटा, ठियोग

सब्जी उत्पादन

प्रदेश के निचले पर्वतीय क्षेत्रों में भिंडी परभनी क्रांति, पालम कोमल, पी 8, अर्का अनामिका, वर्षा उपहार, तुलसी (संकर), पंचाली (संकर), उमंग (संकर), इंद्रनील (संकर) तथा  फ्रांसबीन कन्टेडर, प्रीमियर, पालम मृदुला, फाल्गुनी, सोलन, नैना, अर्का कोमल की बिजाई का उचित समय चल रहा है। बिजाई के समय भिंडी में 100 क्विंटल गोबर की गली सड़ी खाद, 150 किग्रा 12:32:16 खाद 50 किग्रा, म्यूरेट ऑफ पोटाश तथा 50 किग्रा यूरिया खाद प्रति हेक्टेयर में डालें। फ्रांसबीन में 200 क्टिंबल गोबर की खाद, 310 किग्रा 12ः32ः16 खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेतों में डालें। भिंडी व फ्रांसबीन में खरपतवार नियंत्रण हेतु तीन लीटर लासो (एलाक्लोर) या 4 लीटर स्टांप (पेंडिमिथेलिन) प्रति हेक्टेयर की दर से 750 लीटर पानी में घोलकर बिजाई के तुरंत बाद छिड़काव करें।

 इन्हीं क्षेत्रों में कद्दू वर्गीय सब्जियों जैसे खीरा (लौंग ग्रीन, पाइनसेट, अमृत (संकर), मालिनी (संकर), नं 243 (संकर), चप्पन कद्दू (पूसा अलंकार, आस्ट्रेलियन ग्रीन), करेला (सोलन हरा, सोलन सफेद, चमन (संकर) व घीया (पूसा मंजरी, पूसा मेघदूत, पी एसपीएल) की सीधी बिजाई भी खेतों में की जा सकती है।

 मध्यवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में ग्रीष्मकालीन सब्जियों (टमाटर, बैंगन, मिर्च, शिमला मिर्च) की पनीरी उगाने के लिए उचित समय चल रहा है। जीवाणु झुलसा रोग (वैक्टीरियल विल्ट) प्रभावित क्षेत्रों में इस रोग के लिए प्रतिरोधी किस्मों जैसे टमाटर, पालक पिंक, पालम प्राइड, संकर-7711, (अवतार), यश (संकर), हेमसोना (संकर), नवीन 2000, बैंगन (अर्का निधि, अर्का केशव, हिसार श्यामल व पीपीसी), लाल मिर्च (सूरजमुखी) तथा शिमला मिर्च (योलो बेंडर व कैलिफोर्निया बंडर) का ही चयन करें।

 पनीरी उगाने के लिए 3 मीटर लंबी, एक मीटर चौड़ी क्यारियों में 20-25 किग्रा गली-सड़ी गोर की खाद, 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 15-20 ग्राम फफूंदनाशक इंडोफिल, एम-45 तथा 20-25 ग्राम कीटनाशक जैसे फोलीडॉल धूल 5 सेंमी., मिट्टी की ऊपरी सतह में मिलाने के उपरांत 4 सेंमी. पंक्तियों की दूरी पर पतली बिजाई करें।

 खीरा, चप्पन कद्दू, करेला, घीया, तोरी इत्यादि के बीजों को आधा किग्रा मिट्टी की क्षमता वाले पोलिथीन के लिफाफों में आधा भाग मिट्टी व आधे भाग गोबर की गली-सड़ी खाद भरकर 1-2 बीज प्रति लिफाफे में लगाकर बरामदे या पोली हाउस में रखें। पौधे के तैयार होने तथा उचित मौसम आने पर इसका पौधारोपण करें।

फसल संरक्षण

 भूरी सरसों व राया की फसल में इन दिनों तेले का अत्याधिक प्रकोप होता है। तेले की रोकथाम के लिए फसल पर साइपरमैथरिन-10 ईसी या मिथाइस डेमिटान 25 ईसी या 60 मिली डाइमिथोएट 30 ईसी (1 मिली. प्रति लीटर पानी में) का छिड़काव करें। दवाई छिड़कने के बाद सरसों के पत्तों को साग के लिए प्रयोग न करें।

 चने में फली-छेदक सुंडी के आक्रमण के प्रति सावधान रहें तथा इसका अधिक प्रकोप होने की स्थिति में तुरंत एनपीवी (350-500 एलई प्रति हेक्टेयर) के घोल कर छिड़काव करें। 50 प्रशित फूल होने पर अजोडिरोवटिन (0.03 प्रतिशत) अथवा 875 मिली मोनोक्रोटोफॉस 36 एसएल, 625 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर या 25 किग्रा कार्बेरिल 10 डीपी प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। गोभी प्रजाति की सब्जियों में तेले व सुंडियों के नियंत्रण के लिए, मैलाथ्यिन 50 ईसी (1 मिली प्रति लीटर पानी में) का छिड़काव करें। फूल तोड़ने के सात दिन पहले फसल पर छिड़काव न करें। प्याज के रोगों की रोकथाम के लिए इंडोफिल एम-45 या रिडोनिल एम जैड (25 ग्राम प्रति 20 लीटर पानी) का छिड़काव करें।            –  जयदीप रिहान, पालमपुर

खेत नहीं है, तो गमले में उगाएं यह गोभी

हिमाचल में ऐसे हजारों लोग हैं, जो खेती का शौक तो रखते हैं,लेकिन जमीन न होने के कारण मनमसोस कर रह जाते हैं। आपके पास भी जमीन नहीं है,तो फिक्र न करें। आपकी दिक्कत कुछ हद तक खत्म करने का प्रयास किया है नौणी यूनिवर्सिटी ने। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने चाइनीज गोभी के नाम से प्रचलित किस्म से ‘सोलन बंद सरसों’ बंदगोभी की हाइब्रिड वैरायटी ईजाद की है। सोलन बंद सरसों गोभी को उगाने के लिए बड़े खेतों की जरूरत भी नहीं है। इसे किचन गार्डन, गमलों और पॉली हाउस में उगाया जा सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका बीज आम बंदगोभी के मुकाबले दो के बजाय छह माह में तैयार हो सकेगा। सलाद में भी इस बंदगोभी की खासी डिमांड है। शोध में दावा किया गया है कि इस बंदगोभी का एक कप शरीर में 91.6 फीसदी विटामिन की रोजाना मात्रा को पूरा करता है जबकि 53.6 फीसदी विटामिन सी, विटामिन बी-6, बी-2, बी-1, पोटाशियम, कैलशियम, मैनिजियम, विटामिन ए, फालिक, जिंक की मात्रा को पूरा करता है। इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। खून की कमी दूर होती है। नौणी विवि के कुलपति डा.एच सी शर्मा ने बताया कि इसमें जूस बाजार में मिलने वाली दूसरी गोभी के मुकाबले अधिक होता है, जो शरीर की पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है। इसके पोषक तत्व हर उम्र के लोगों के लिए फायदेमंद हैं।

– कृषि संवाददाता, नौणी

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