आर्थिक सोच के नए दायरे

By: Feb 4th, 2019 12:05 am

केंद्रीय बजट की उम्मीदों में हिमाचल सरकार के सामने अपना बजट बनाने का तिलिस्म परवान चढ़ेगा, तो लोकसभा चुनाव का उत्प्रेरक माहौल राज्य के पैमाने तय करेगा। बजट में राजनीतिक निवेश की दरगाह के ठीक सामने जयराम सरकार की पैरवी में, नए निवेश की कसरतें और हालिया रोड शो का अंदाज आशाओं की सुबह दिखा सकता है। बंगलूर और हैदराबाद तक पहुंचे मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपनी आर्थिक सोच के दायरे बड़े किए हैं और इस तरह हिमाचल की प्रस्तुति के मायने आत्मविवेचन भी कर रहे हैं। यह प्रदेश खुद अपनी नीतियों की समीक्षा में निवेश बाजार में उतरा है, तो समाधानों की पिच  तैयार करने की इच्छाशक्ति दर्ज होती है। बजट के ठीक पूर्व हिमाचल सरकार ने प्रदेश के लिए आत्मनिर्भरता मापी है और यह भी साबित करने की कोशिश की कि इस बार निजी क्षेत्र हिमाचल आएगा तो, उसके लिए लाल कालीन पर चलने के लिए वजह व भरोसा रहेगा। निवेश के जरिए रोजगार की परिपाटी को सशक्त करने की भूमिका बजट अदा कर सकता है। बेशक सरकार ने प्रथम चरण में ही लैंड बैंक चिन्हित करते हुए, नए निवेश को सार्थक आमंत्रण दिया है, लेकिन इस दिशा में घोषित नीति का ब्यौरा बजट को देना होगा। जिस पथ निवेश चलता है, उसी पर बजट को केंद्रित करने की भूमिका में जयराम सरकार भी कमर कस ले तो यकीनन राज्य की दृष्टि और छवि बदलेगी। अब तक हिमाचल की राहें और निगाहें, केवल केंद्रीय बजट के अनुचरण में अपनी व्याख्या करती रही हैं। इस बार भी कमोबेश इसी हिसाब या अनुपात से हिमाचली बजट की पेशकश रहेगी, लेकिन अगर मुख्यमंत्री अलग से निजी निवेश का अध्याय जोड़ पाएं तो यह आगे बढ़ने का दृष्टिपत्र तथा निवेशक के लिए विश्वास करने का प्रमाणित दस्तावेज होगा। निवेश दरअसल एक ऐसी परिकल्पना है जो निजी क्षेत्र से हिमाचल की भागीदारी तय करेगी। यह बजट के जरिए निवेशक के मन में एहसास पैदा करने की पहल का प्रण सरीखा हो सकता, अगर एक व्यापक दस्तावेज अलग से चिन्हित हो जाए। हिमाचल को निवेश राज्यों की सोहबत में खड़ा करने की पहल, प्रारूप, प्रासंगिकता तथा प्राथमिकता का वर्णन बजट के जरिए हो, तो भविष्य की आर्थिकी के प्रति प्रदेश का नजरिया सामने आएगा। ऐसे कई आर्थिक, नीतिगत तथा विकासात्मक फैसले हैं, जिन्हें स्वतंत्र रूप से पेश किया जा सकता है। अगर जयराम का बजट पारंपारिक वेशभूषा में अपने वित्तीय संतुलन की कहानी में कर्मचारियों को पुचकारता तथा आम जनता को तोहफे बांटता ही नजर आएगा, तो बंगलूर, हैदराबाद या देश के अन्य भागों में प्रस्तावित रोड शो की तस्वीर में अपने रंग नहीं  भर पाएगा। हिमाचल को अगर प्रस्तावित इन्वेस्टर मीट में निवेश प्रस्तावों को वास्तव में अमल में लाना है, तो वर्तमान बजट की रूपरेखा में इरादे पूरी तरह चिन्हित करने होंगे। मसलन निवेश प्राथमिकताओं में विभिन्न क्षेत्रों के हिसाब से सरकार की ओर से दी जाने वाली सहूलियतों की स्पष्टता बजट में दर्ज हो सकती है। हिमाचल प्रदेश किन क्षेत्रों के लिए इन्वेस्टर मीट लेकर आ रहा है, इसका ब्यौरा और खाका अगर निर्धारित करना है, तो बजट प्रस्तावों की भूमिका अहम हो जाएगी। प्रदेश अगले दशक में खुद को कहां देखना चाहता है, इसकी भूमिका बजट की प्रस्तुति से ही मालूम होगी। यानी हिमाचल के विकास तथा अधोसंरचना निर्माण का खाका अगर स्पष्ट नहीं हुआ, तो निवेशक को दिशा चुनना मुश्किल होगा। अब तक केवल औद्योगिक विकास में ही निवेश रूपांतरित रहा, जबकि अब राज्य के अपने आइडिया तथा नवाचार पर केंद्रित निवेश को स्थान देने की जरूरत है। इसके साथ विनिवेश तथा अलाभकारी सार्वजनिक उपक्रमों से मुक्ति का रास्ता भी स्पष्ट होना चाहिए। क्या बजट विनिवेश पर साहसिक होगा या निजी निवेश के सहायक के रूप में सरकारी खर्च पर कटौतियां करेगा। यह भी देखना होगा कि अधोसंरचना निर्माण में कितना साहस दिखाया जाता है। खासतौर पर कनेक्टिविटी के लिहाज से वर्तमान हवाई अड्डों के विस्तार में बजट की भाषा क्या होती है तथा केंद्रीय बजट से हाई-वे तथा फोरलेन निर्माण के दावों को यथार्थ कैसे मिलता है, इस पर प्रदेश सरकार को बजटीय कसौटियां तय करनी हैं। प्रस्तावित इन्वेस्टर मीट के अपने शृंगार में बजटीय प्रावधान क्या होते हैं तथा आधारभूत सुविधाओं से युक्त अधोसंरचना कैसे स्वागत करेगी, यह परिचय भी बजट को देना है। कान्वेंशन टूरिज्म से आईटी पार्कों के निर्माण तक बजट अगर मुखर होता है, तो इन्वेस्टर मीट को निश्चित रूप से दस्तावेजी आमंत्रण मिलेगा।


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