कश्मीर पर दीर्घकालीन योजना जरूरी

By: Feb 18th, 2019 12:07 am

कुलभूषण उपमन्यु

हिमालयन नीति अभियान के अध्यक्ष

 इस तरह की अवैध घोषणा के बल पर गिलगित-बल्तिस्तान पाकिस्तान ने कब्जे में लिया और शेष पाक अधिकृत कश्मीर को आक्रमण के द्वारा अवैध कब्जे में लिया। अतः पकिस्तान का कश्मीर राग पूरी तरह अवैध दावों पर आधारित है…

पुलवामा आत्मघाती हमले में हमारे 44 जवानों के शहीद होने की घटना को अंजाम देकर पाकिस्तान ने अपनी हद लांघ दी है। इसकी सजा शीघ्र ही दी जानी चाहिए। हमारी सरकार और देशभर की जनता और अन्य राजनीतिक दलों ने एक मत से इस दिशा का संकल्प करके सही भावना को अभिव्यक्त किया है। अब केवल समय का इंतजार है। सभी शहीदों जिनमें हिमाचल के तिलक राज भी शामिल हैं, की शहादत को सलाम।  आजादी के तत्काल बाद से ही पाकिस्तान भारत विरोधी साजिशों में जुटा हुआ है। जब महाराजा कश्मीर ने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए, तो हमले के जोर पर हथियाए गए कश्मीर के हिस्से पर पाकिस्तान का दावा और कब्जा सभी मानदंडों पर अवैध ही है। गिलगित-बल्तिस्तान पर भी कब्जा चालाकी और ठगी से किया गया है और अवैध है। रूसी क्रांति के बाद कश्मीर के हिस्से गिलगित-बल्तिस्तान की रणनीतिक स्थिति को देखते हुए अंग्रेज सरकार को इसका महत्त्व समझ आया। उन्होंने 26 मार्च, 1935 को महाराजा कश्मीर से गिलगित-बल्तिस्तान को 60 साल की लीज पर ले लिया। 1947 तक अंग्रेजों ने इस भाग पर सीधा शासन किया। 1947 में आजादी मिलने पर अंग्रेजों ने गिलगित-बल्तिस्तान को महाराजा कश्मीर को वापस कर दिया, किंतु वहां शासन व्यवस्था स्थापित करने में कोई सहयोग नहीं किया।

वहां अंग्रेज फौजी अफसर मेजर ब्राउन, जो गिलगित में उपस्थित अंग्रेजी सेना, गिलगित स्काउट्स का प्रभारी था, उसने गिलगित- बल्तिस्तान को पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर डाली। गिलगित-बल्तिस्तान की लीज रद्द करके अंग्रेजों ने यह भू-भाग तो महाराजा कश्मीर को वापस कर दिया था, अब या तो विलय की घोषणा महाराजा कश्मीर कर सकता था या महाराजा का कोई अधिकृत अधिकारी। मेजर ब्राउन तो अंग्रेजों का अफसर था, उसे इस तरह के विलय की घोषणा करने का कोई कानूनी अधिकार ही नहीं था। इस तरह की अवैध घोषणा के बल पर गिलगित-बल्तिस्तान पाकिस्तान ने कब्जे में लिया और शेष पाक अधिकृत कश्मीर को आक्रमण के द्वारा अवैध कब्जे में लिया। अतः पकिस्तान का कश्मीर राग पूरी तरह अवैध दावों पर आधारित है। संयुक्त राष्ट्र संघ में मामला देना भारत की उदारता थी, जो रणनीतिक रूप से पाकिस्तान जैसे शातिर देश को देखते हुए आज एक गलती महसूस होती है। उसके आधार पर भी पाकिस्तान को कश्मीर के अवैध कब्जे में लिए क्षेत्र से सेना हटानी थी, तब जाकर भारतीय सेना की निगरानी या कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी के बीच जनमत संग्रह होना था। पाकिस्तान ने कभी हथियाए हुए इलाके से अपनी सेना हटाने का काम नहीं किया, क्योंकि उसे मालूम था कि कश्मीरी अवाम उसके हक में वोट नहीं करेगा, क्योंकि कश्मीरी या तो सूफी मतावलंबी थे या शिया और इस्माइली थे, जिन पर सुन्नी कभी विश्वास नहीं कर सकते थे। सूफियों, शियाओं, इस्मैलियों के प्रति आज तक भी वह  अविश्वास कायम है, जिसका सबूत उनके ऊपर भी आतंकी हमलों से आए दिन मिलता रहता है। अतः इस दृष्टि से भी पाकिस्तान ही झूठा ठहरता है। महाराजा कश्मीर के साथ गद्दारी के लिए ही मेजर ब्राउन को बाद में पाकिस्तान ने स्टार ऑफ पाकिस्तान के सम्मान से नवाजा। फिर 1971 में बांग्लादेश का निर्माण पूर्वी पाकिस्तान के विघटन के बाद हुआ। इसके लिए युद्ध में भारत को भी बांग्लादेश की मदद करनी पड़ी। इसके लिए पाकिस्तान को भारत पर आरोप नहीं मढ़ना चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान के आम चुनाव में शेख मुजीब की अवामी लीग को बहुमत मिला। शेख पूर्वी पाकिस्तान, यानी वर्तमान बांग्लादेश के रहने वाले थे। जाहिर है कि सत्ता पूर्वी पाकिस्तान के हाथ जाने वाली थी। यह बात पश्चिमी-पाकिस्तानी तत्कालीन नेताओं को हजम नहीं हुई और उन्होंने शेख मुजीब को पश्चिमी पाकिस्तान बुलाकर कैद कर लिया। इससे पूर्वी पाकिस्तान में विरोध के स्वर उग्र होते गए। पाकिस्तानी नेतृत्व ने पूर्वी पाकिस्तान पर ऐसा दमन चक्र शुरू किया, जिसमें लाखों लोग मार दिए गए और हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार  हुए। इस दमन से त्रस्त लाखों पूर्वी पाकिस्तानी भारत में शरणार्थी बन कर घुस आए। भारत की यह मजबूरी थी कि उन्हें मानवीय आधार पर रोटी-पानी की सुविधा दे। भारत ने अपना फर्ज पूरा किया, किंतु पाकिस्तान तो मसले को सुलझाने के बजाय अत्याचार की बाढ़ लाने में व्यस्त था। इसका प्रतिकार पूर्वी-पकिस्तान के लोगों ने मुक्तिवाहिनी सेना बनाकर करना शुरू किया।

भारत को अपनी सीमाओं और संसाधनों की रक्षा के लिए उन्हें कुछ सहायता करनी ही पड़ी। पाकिस्तान ने चिढ़कर भारत पर ही हमला कर दिया। पाकिस्तान की हार हुई और बांग्लादेश का उदय हुआ। इस चिढ़ का बदला लेने के लिए भुट्टो का तख्ता पलट करने के बाद सत्ता में आए फौजी तानाशाह जिया-उल-हक ने आपरेशन टोपा के नाम से भारत विरोधी गुप्त षड्यंत्र शुरू किया, जिसमें पहले तो बांग्लादेश बनाने का बदला लेने के लिए पंजाब में आतंकवाद की शुरुआत की और वहां असफल रहने के बाद कश्मीर में आतंकवाद फैलाने की योजना शुरू कर दी। इसके लिए जिया-उल-हक ने पाकिस्तान और कश्मीर में पेट्रो डालर की मदद से मदरसों में बहावी इस्लाम की कट्टरपंथी शिक्षा का प्रसार और उन कट्टरपंथी नव शिक्षितों को आतंकी गतिविधियों में सक्रिय करने की दोहरी चाल पर कार्य शुरू किया। हालांकि आज भी आम कश्मीरी शांति से रहना चाहता है, किंतु आतंक फैलाने के लिए एक-दो प्रतिशत लोग भी बहुत होते हैं। इस तरह के कायरतापूर्ण युद्ध को पाकिस्तान हमारे ऊपर थोप रहा है। हुर्रियत जैसे कुछ संगठन पाकिस्तान से पैसा लेकर पत्थरबाजों को पैसा देकर आतंक रोधी अभियानों में लगे सैनिकों पर पथराव करवाते हैं, ताकि दुनिया को यह दिखाया जा सके कि स्थानीय जनता भारत के विरुद्ध है और पाकिस्तान के साथ है, किंतु पाकिस्तान अपने यहां पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में आए दिन सरकार विरोधी-प्रदर्शनों, गिलगित-बल्तिस्तान में जारी दमन चक्र और वहां की जनसांख्यिकी को बाहर से ले जाकर सुन्नी लोगों को बसाकर बदलने के बारे में कुछ भी कहने-सुनने को तैयार नहीं होता।

हालांकि बलूचिस्तान भी आजाद स्टेट थी, जिसने पाकिस्तान में विलय नहीं किया था, जिसे पाकिस्तान ने 1948 में आक्रमण करके हथिया लिया था। सिंध में पहले ही जिए सिंध आंदोलन दशकों तक चलता रहा है, जिसे बेरहमी से दबाया गया, किंतु अब फिर उसका पुनः उदय  हो रहा है। इस सारी परिस्थिति को देखते हुए भारत को पाकिस्तान से तत्कालिक हिसाब चुकता करने के साथ दीर्घकालीन योजना पर कार्य करना चाहिए।


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