किसी अजूबे से कम नहीं हैं रामायण के पात्र

By: Feb 23rd, 2019 12:04 am

विश्वामित्र वैदिक काल के विख्यात ऋषि (योगी) थे। ऋषि विश्वामित्र बड़े ही प्रतापी और तेजस्वी महापुरुष थे। ऋषि धर्म ग्रहण करने के पूर्व वे बड़े पराक्रमी और प्रजावत्सल नरेश थे। प्रजापति के पुत्र कुश, कुश के पुत्र कुशनाभ और कुशनाभ के पुत्र राजा गाधि थे। विश्वामित्र जी उन्हीं गाधि के पुत्र थे। विश्वामित्र शब्द विश्व और मित्र से बना है जिसका अर्थ है-सबके साथ मैत्री अथवा प्रेम। एक दिन राजा विश्वामित्र अपनी सेना को लेकर वशिष्ठ ऋषि के आश्रम में गए। विश्वामित्र जी उन्हें प्रणाम करके वहीं बैठ गए…

 -गतांक से आगे…

विश्वामित्र

विश्वामित्र वैदिक काल के विख्यात ऋषि (योगी) थे। ऋषि विश्वामित्र बड़े ही प्रतापी और तेजस्वी महापुरुष थे। ऋषि धर्म ग्रहण करने के पूर्व वे बड़े पराक्रमी और प्रजावत्सल नरेश थे।प्रजापति के पुत्र कुश, कुश के पुत्र कुशनाभ और कुशनाभ के पुत्र राजा गाधि थे। विश्वामित्र जी उन्हीं गाधि के पुत्र थे। विश्वामित्र शब्द विश्व और मित्र से बना है जिसका अर्थ है-सबके साथ मैत्री अथवा प्रेम। एक दिन राजा विश्वामित्र अपनी सेना को लेकर वशिष्ठ ऋषि के आश्रम में गए।

विश्वामित्र जी उन्हें प्रणाम करके वहीं बैठ गए। वशिष्ठ जी ने विश्वामित्र जी का यथोचित आदर-सत्कार किया और उनसे कुछ दिन आश्रम में ही रह कर आतिथ्य ग्रहण करने का अनुरोध किया। इस पर यह विचार करके कि मेरे साथ विशाल सेना है और सेना सहित मेरा आतिथ्य करने में वशिष्ठ जी को कष्ट होगा, विश्वामित्र जी ने नम्रतापूर्वक अपने जाने की अनुमति मांगी, किंतु वशिष्ठ जी के अत्यधिक अनुरोध करने पर थोड़े दिनों के लिए उनका आतिथ्य स्वीकार कर लिया।

वशिष्ठ जी ने नंदिनी गौ का आह्वान करके विश्वामित्र तथा उनकी सेना के लिए छह प्रकार के व्यंजन तथा समस्त प्रकार की सुख-सुविधा की व्यवस्था कर दी। वशिष्ठ जी के आतिथ्य से विश्वामित्र और उनके साथ आए सभी लोग बहुत प्रसन्न हुए। नंदिनी गौ का चमत्कार देखकर विश्वामित्र ने उस गौ को वशिष्ठ जी से मांगा, पर वशिष्ठ जी बोले राजन! यह गौ मेरा जीवन है और इसे मैं किसी भी कीमत पर किसी को नहीं दे सकता।

वशिष्ठ जी के इस प्रकार कहने पर विश्वामित्र ने बलात् उस गौ को पकड़ लेने का आदेश दे दिया और उसके सैनिक उस गौ को डंडे से मार-मार कर हांकने लगे। नंदिनी गौ ने क्रोधित होकर उन सैनिकों से अपना बंधन छुड़ा लिया और वशिष्ठ जी के पास आकर विलाप करने लगी।

वशिष्ठ जी बोले कि हे नंदिनी! यह राजा मेरा अतिथि है, इसलिए मैं इसको शाप भी नहीं दे सकता और इसके पास विशाल सेना होने के कारण इससे युद्ध में भी विजय प्राप्त नहीं कर सकता। मैं स्वयं को विवश अनुभव कर रहा हूं। उनके इन वचनों को सुन कर नंदिनी ने कहा कि हे ब्रह्मर्षि! आप मुझे आज्ञा दीजिए, मैं एक क्षण में इस क्षत्रिय राजा को उसकी विशाल सेना सहित नष्ट कर दूंगी। और कोई उपाय न देख कर वशिष्ठ जी ने नंदिनी को अनुमति दे दी।

आज्ञा पाते ही नंदिनी ने योगबल से अत्यंत पराक्रमी मारक शस्त्रास्त्रों से युक्त पराक्रमी योद्धाओं को उत्पन्न किया, जिन्होंने शीघ्र ही शत्रु सेना को गाजर-मूली की भांति काटना आरंभ कर दिया।

अपनी सेना का नाश होते देख विश्वामित्र के सौ पुत्र अत्यंत कुपित हो वशिष्ठ जी को मारने दौड़े। वशिष्ठ जी ने उनमें से एक पुत्र को छोड़ कर शेष सभी को भस्म कर दिया। अपनी सेना तथा पुत्रों के नष्ट हो जाने से विश्वामित्र बड़े दुःखी हुए।

अपने बचे हुए पुत्र को राज सिंहासन सौंप कर वे तपस्या करने के लिए हिमालय की कंदराओं में चले गए। कठोर तपस्या करके विश्वामित्र जी ने महादेव जी को प्रसन्न कर लिया और उनसे दिव्य शक्तियों के साथ संपूर्ण धनुर्विद्या के ज्ञान का वरदान प्राप्त कर लिया।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App