गणेश प्रताप सिंह ही था राजा चंद्रपाल

By: Feb 20th, 2019 12:05 am

एक दिन  गणेश प्रताप सिंह के पास हूल इलाके का एक आदमी आया और उसने राजा को एक तांबे का टुकड़ा दिखाया। उसने कहा कि उसके गांव के पास तांबे की एक खान निकली है। यदि इसे खोदा जाए तो इससे बहुत लाभ हो सकता है। राजा ने आदेश दिया और इससे जो आय हुई उससे पुराने मंदिरों की मरम्मत और नए मंदिरों का निर्माण करवाया गया…

गतांक से आगे …

गणेश वर्मन ः गणेश वर्मन ने बहुत समय तक राज्य कर लिया था और वृद्ध अवस्था और मुगलों के कारण उसने राजपाट का कार्य अपने पुत्र प्रताप सिंह को सौंप दिया।

गणेश प्रताप सिंह (1559 ई.) ः इस राजा के बारे में कहते हैं कि यह बड़ा दयालु और धर्म परायण था। वह लक्ष्मी नारायण मंदिर की मरम्मत तथा कुछ नए मंदिरों का निर्माण करवाना चाहता था, परंतु धन के अभाव के कारण वह इस कार्य को करने में असमर्थ था। मंत्रियों ने कर लगाने को कहा पर उसने ऐसा नहीं किया। एक दिन उसके पास हूल इलाके का एक आदमी आया और उसने राजा को एक तांबे का टुकड़ा दिखाया। उसने कहा कि उसके गांव के पास तांबे की एक खान निकली है। यदि इसे खोदा जाए तो इससे बहुत लाभ हो सकता है। राजा ने आदेश दिया और इससे जो आय हुई उससे पुराने मंदिरों की मरम्मत और नए मंदिरों का निर्माण करवाया गया। इसके पश्चात प्रताप सिंह और कांगड़ा के राजा के बीच लड़ाई छिड़ गई। राजा का नाम वंशावली में चंद्रपाल लिखा मिलता है। कांगड़ा के राजाओं के नाम के साथ ‘चंद्र’ लगता है और ‘पाल’ बंगाहल राजाओं के साथ लगता था। हो सकता है यह लड़ाई आरंभ में बंगाहल के साथ हुई होगी और कांगड़ा उसकी सहायता के लिए आया हो। बाद में चंबा और कांगड़ा के बीच घोर युद्ध हुआ होगा। इसमें कटोच राजा की पराजय हुई और उसका छोटा भाई जीत चंद लड़ाई में मारा गया। बहुत-सा धन, हाथी और घोड़े चंबा के राजा के हाथ आए और चंबा के साथ लगते क्षेत्र चड़ी और घरोह पर चंबा ने अधिकार कर लिया। इस लड़ाई के संबंध में यह उल्लेख भी मिलता है कि चंबा की सेनाओं ने गुलेर की राजधानी पर भी अधिकार कर लिया था। इससे यह भी पता लगता है कि चंबा की लड़ाई कटोच वंशीय राजा गुलेर के साथ भी हुई होगी। प्रताप सिंह मुगल सम्राट अकबर (1556-1605ई.) का समकालीन था। उसने अपने राज्य के आरंभिक काल में ही छोटे-छोटे पहाड़ी राज्यों को अपने अधीन कर लिया था। चंबा भी इससे अछूता न रह सका। बाद में अकबर ने अपने वित्त मंत्री टोडरमल को इन पहाड़ी राजाओं के पास शाही भू-संपत्ति के लिए जमीन प्राप्त करने के लिए भेजा। टोडरमल ने जहां अच्छी उपजाऊ भूमि कांगड़ा नरेशों से ली वहां उसने चंबा से भी ‘रेहलू’ का क्षेत्र तथा कांगड़ा का ‘चड़ी’ और ‘घरोह’ का भाग जो उसने कांगड़ा से हथिया लिया था, लेकर शाही जागीर में ले लिया। इस प्रकार से चंबा के नरेश प्रताप सिंह वर्मन से लेकर चंबा दो सौ वर्ष  तक मुगल सम्राटों के अधीन रहा।


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