गिरगिट का सपना

By: Feb 20th, 2019 12:05 am

एक गिरगिट था। अच्छा, मोटा-ताजा। काफी हरे जंगल में रहता था। खान-पीने की कोई तकलीफ  नहीं थी। आसपास जीव-जंतु बहुत मिल जाते थे। फिर भी वह उदास रहता था। उसका ख्याल था कि उसे कुछ और होना चाहिए था। और हर चीज, हर जीव का अपना एक रंग था। पर उसका अपना कोई एक रंग था ही नहीं। थोड़ी देर पहले नीले थे, अब हरे हो गए। हरे से बैंगनी आदि।  पास के बिल में एक सांप था। ऐसा बढि़या लहरिया था उसकी खाल पर कि देखकर मजा आ जाता था! आसपास के सब चूहे-चमगादड़ उससे खौफ खाते थे। वह खुद भी उसे देखते ही दुम दबाकर भागता था। या मिट्टी के रंग में मिट्टी होकर पड़ रहता था। उसका ज्यादातर मन यही करता था कि वह गिरगिट न होकर सांप होता, तो कितना अच्छा था! जब मन आया, पेट के बल रेंग लिए। जब मन आया, कुंडली मारी और फन उठाकर सीधे हो गए। एक रात जब वह सोया, तो उसे ठीक से नींद नहीं आई। दो-चार कीड़े ज्यादा निगल लेने से बदहजमी हो गई थी। नींद लाने के लिए वह कई तरह से सीधा-उलटा हुआ, पर नींद नहीं आई। आंखों को धोखा देने के लिए उसने रंग भी कई बदल लिए, पर कोई फायदा नहीं हुआ। हलकी-सी ऊंघ आती, पर फिर वही बेचैनी। आखिर वह पास की झाड़ी में जाकर नींद लाने की एक पत्ती निगल आया। उस पत्ती की सिफारिश उसके एक और गिरगिट दोस्त ने की थी। पत्ती खाने की देर थी कि उसका सिर भारी होने लगा। उसका शरीर जमीन के अंदर धंसता जा रहा है। थोड़ी ही देर में उसे महसूस हुआ जैसे किसी ने उसे जिंदा जमीन में गाड़ दिया हो। वह बहुत घबराया। यह उसने क्या किया कि दूसरे गिरगिट के कहने में आकर ख्याहमख्याह वह पत्ती खा ली। अब अगर वह जिंदगी  भर जमीन के अंदर ही दफन रहा तो। वह अपने को झटककर बाहर निकलने के लिए जोर लगाने लगा। पहले तो उसे कामयाबी हासिल नहीं हुई। पर फिर लगा कि ऊपर जमीन पोली हो गई है और वह बाहर निकल आया है। ज्यों ही उसका सिर बाहर निकला और बाहर की हवा अंदर गई, उसने एक और ही अजूबा देखा। उसका सिर गिरगिट के सिर जैसा न होकर सांप के सिर जैसा था। वह पूरा जमीन से बाहर आ गया, पर साँप की तरह बल खाकर चलता हुआ। अपने शरीर पर नजर डाली, तो वही लहरिया नजर आया जो उसे पास वाले सांप के बदन पर था। उसने कुंडली मारने की कोशिश की, तो कुंडली लग गई। फन उठाना चाहा तो, फन उठ गया। वह हैरान भी हुआ और खुश भी। उसकी कामना पूरी हो गई थी। वह रेंगता हुआ उस इलाके से दूसरे इलाके की तरफ  बढ़ गया। नीचे से जो पत्थर-कांटे चुभे, उनकी उसने परवाह नहीं की। नया-नया सांप बना था, सो इन सब चीजों को नजर-अंदाज किया जा सकता था। पर थोड़ी दूर जाते-जाते सामने से एक नेवला उसे दबोचने के लिए लपका, तो उसने सतर्क होकर फन उठा लिया। उस नेवले की शायद पड़ोस के सांप से पुरानी लड़ाई थी। सांप बने गिरगिट का मन हुआ? कि वह जल्दी से रंग बदले ले, पर अब रंग कैसे बदल सकता था। अपनी लहरिया खाल की सारी खूबसूरती उस वक्त उसे एक शिकंजे की तरह लगी। नेवला फुदकता हुआ बहुत पास आ गया था। गिरगिट आखिर था तो गिरगिट ही। वह सामना करने की जगह एक पेड़ के पीछे जा छिपा। उसकी आंखों में नेवले का रंग और आकार बसा था। कितना अच्छा होता अगर वह सांप न बनकर नेवला बन गया होता! तभी उसका सिर फिर भारी होने लगा। थोड़ी देर में उसने पाया कि जिस्म में हवा भर जैसा पहले हुआ वैसे ही लहरिया सांप एक नेवले में बदल चुका था। उसने आसपास नजर दौड़ाना शुरू किया कि अब कोई सांप नजर आए, तो उसे वह लपक ले। पर सांप वहां कोई था ही नहीं। कोई सांप निकलकर आए, इसके लिए उसने ऐसे ही उछलना-कूदना शुरू किया। कभी झाडि़यों में जाता, कभी बाहर आता। कभी सिर से जमीन को खोदने की कोशिश करता। एक बार जो वह जोर-से उछला तो पेड़ की टहनी पर टंग गया। टहनी का कांटा जिस्म में ऐसे गड़ गया कि न अब उछलने बने, न नीचे आते। आखिर जब बहुत परेशान हो गया, तो वह मनाने लगा कि क्यों उसने नेवला बनना चाहा। इससे तो अच्छा था कि पेड़ की टहनी बन गया होता। नींद का एक और झोंका आया और उसने पाया कि सचमुच अब वह नेवला नहीं रहा, पेड़ की टहनी बन गया है। उसका मन मस्ती से भर गया। नीचे की जमीन से अब उसे कोई वास्ता नहीं था। वह जिंदगी भर ऊपर ही ऊपर झूलता रह सकता था। उसे यह भी लगा जैसे उसके अंदर से कुछ पत्तियां फूटने वाली हों। उसने सोचा कि अगर उसमें फूल भी निकलेगा, तो उसका क्या रंग होता और क्या वह अपनी मर्जी से फूल का रंग बदल सकेगा। अभी वह सोच ही रहा था कि कौवे उड़ खड़े हुए। पर उसने हैरान होकर देखा कि कौवों के साथ वह भी उसी तरह उड़ खड़ा हुआ है। पर तभी नजर पड़ी, नीचे खड़े कुछ लड़कों पर जो गुलेल हाथ में लिए उसे निशाना बना रहे थे। पास उड़ता हुआ एक कौवा निशाना बनकर नीचे गिर चुका था। उसने डरकर आंखें मूंद लीं। मन ही मन सोचा कि कितना अच्छा होता अगर वह कौवा न बनकर गिरगिट ही बना रहता उसने आंखें खोल लीं। वह अपनी उसी जगह पर था जहां सोया था। वहीं गिरगिट का गिरगिट था। वही चूह-चमगादड़ आसपास मंडरा रहे थे उसने जल्दी से रंग बदला और दौड़कर उस गिरगिट की तलाश में हो लिया जिसने उसे नींद की पत्ती खाने की सलाह दी थी। मन में शुक्र भी मनाया कि अच्छा है वह गिरगिट की जगह और कुछ नहीं हुआ, वरना कैसे उस गलत सलाह देने वाले गिरगिट को गिरगिटी भाषा में मजा चखा पाता।

 


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