चंडीगढ़ में बदलते पर्यावरण पर चिंता
एनआईटीटीटीआर में हिमालयन इकोलॉजी पर चौथा इंटरनेशनल डायलॉग प्रोग्राम
चंडीगढ़ -पिछले तीन वर्षों में लगातार प्रभावशाली संवाद के बाद, आज नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नीकल टीचर्स ट्रेनिंग एंड रिसर्च (एनआईटीटीटीआर) कैंपस, चंडीगढ़ में हिमालयन इक्कोलॉजी पर चौथे इंटरनेशनल डायलॉग (अंतरराष्ट्रीय संवाद) का आयोजन किया गया, जिसमें काफी लोगों ने सहभागिता की। इस संवाद के दौरान पर्यावरण में आ रहे व्यापक बदलावों पर जोर दिया गया, जो कि पिछले कुछ सालों में कृषि पर इसके प्रभाव और संभावित संभावनाओं के तौर पर स्पष्ट होकर सामने आ रहा है। जस्टिस राजीव शर्मा, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय, चंडीगढ़ ने एक बौद्धिक स्तर पर अपने अध्यक्षीय संबोधन में उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन की खराब होती स्थिति पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज, हम देख रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन से पर्यावरण को बचाने के लिए कुछ खास संख्या में लोग आगे नहीं आ रहे हैं। जिस तरह से हिमालय के पहाड़ों का रंग प्राचीन सफेद से भूरे रंग में बदल रहा है, उससे पर्यावरण में बदलाव स्पष्ट हो रहे हैं। जब भी हम कोई नीतिगत निर्णय लेते हैं, तो हमें भावी पीढ़ी को ध्यान में रखना चाहिए। हम अभी भी पर्यावरण को बचाने के लिए अपना दायित्व निभा सकते हैं और इसका दायित्व अगली पीढ़ी को भी सौंप सकते हैं। देविंद्र शर्मा, मैनेजिंग ट्रस्टी, डायलॉग हाई-वे, जो हिमालय से जुड़ी अपनी जड़ों के लिए भी जाना जाता है, ने कृषि और जलवायु परिवर्तन और डायलॉग हाई-वे के पीछे के इरादे के बीच संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हिमालय दुनिया की लगभग 20 प्रतिशत आबादी का समर्थन करता है। श्री शर्मा ने कहा कि ष्ष्अध्ययनों से पता चला है कि कम ऊंचाई वाले हिमालयी ग्लेशियर इन क्षेत्रों में पानी के जोखिम को बढ़ाने वाले बढ़ते तापमान के कारण उच्चतर गति की तुलना में तेज गति से पानी खो रहे हैं। हिमालयन इक्कोलॉजी पर चौथे इंटरनेशनल डायलॉग के पहले दिन के अंतिम सत्र में जस्टिस राजीव शर्मा, प्रो वीरेंद्र कुमार पॉल, अनिल जोशी और मंशी आशेर द्वारा पहाड़ों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर एक गहन चर्चा हुई।
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