दिवास्वप्न

By: Feb 4th, 2019 12:04 am

 रवि कुमार सांख्यान, बिलासपुर

सारा जनवरी मैंने खिड़कियां नहीं खोली

वे दरख्तों के पत्ते गिर गए होंगे

वे दरख्त जल की त्रिवेणी अवस्था में

नहाए होंगे

उन पर न होगा गौरैया, चिडि़यों का कलरव

कहीं-कहीं मनु संतान उन्हें काट रहा होगा

उनके तने से गगनचुंबी भवन बन रहे होंगे

वह ऋतुराज आगमन को लालायित होगा

वह दरख्त मानव को माफ कर रहा होगा

इस विश्वास संग कि कभी तो पछताएगा अनजान मानव

देर तब बहुत हो चुकी होगी

प्रलय बेला दरवाजे पर दस्तक दे रही होगी फिर प्राणी हाथ मलता नजर आएगा

मुझे तो यह दिवास्वप्न महज लगता है अंधविश्वास

विश्व गुरु मनु संतान कैसे तोड़ सकता है ईश का दृढ़ विश्वास

 


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