सामाजिक समरसता जरूरी

By: Feb 4th, 2019 12:04 am

 जोगिंद्र ठाकुर, भल्याणी, कुल्लू

हिमाचल प्रदेश देवभूमि के नाम से विख्यात है। यहां की लोक संस्कृति और मान्यताओं में सामाजिक सद्भावना के दर्शन किए जा सकते हैं। सह अस्तित्व की भावना ही समाज के विभिन्न घटकों को पास लाती है। कुछ रूढि़यों व स्वार्थ के कारण बंजार क्षेत्र में एक देव कारज में सामाजिक सद्भाव को तोड़ने का प्रयास हुआ है, जो सही नहीं है। इसे दो समुदायों के बीच टकराव के रूप में प्रचारित करना दुर्भाग्यपूर्ण है। एकात्म समरस समाज की कल्पना भारत के सर्वांगीण विकास का आधार हो सकता है। समाज के सभी घटकों के संपूर्ण विकास को संज्ञान में रखकर ही आगे बढ़ा जा सकता है। हमारे देश के महामहिम राष्ट्रपति जन सामान्य के प्रतिनिधि हैं। राज्य व केंद्र सरकार उनके अधिकारों के संरक्षण के प्रति वचनबद्ध हैं। ऐसे  में इन मुद्दों पर राजनीतिक हित साधने के लिए समाज को भटकाना एक ओछी हरकत है। समाज के प्रबुद्ध लोगों को इस प्रकार के कुप्रयासों को हतोत्साहित करना चाहिए। सामाजिक एकता के ताने-बाने में सामाजिक समरसता का रंग भरना समय की आवश्यकता है।

 


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