अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्रि मेला मंडी

By: Mar 2nd, 2019 12:07 am

पूरे देश में शिवरात्रि का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन हिमाचल जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, यहां के हर त्योहार की अपनी एक खास विशेषता और महत्ता है। इसलिए हिमाचल में चाहे कोई भी त्योहार हो या फिर मेले, हर उत्सव की अपनी ही धूम होती है…

मंडी में सदियों से मनाए जाने वाले शिवरात्रि महोत्सव को अब आधिकारिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के उत्सव का दर्जा मिल गया है। पूरे देश में शिवरात्रि का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन हिमाचल जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, यहां के हर त्योहार की अपनी एक खास विशेषता और महत्ता है। इसलिए हिमाचल में चाहे कोई भी त्योहार हो या फिर मेले, हर उत्सव की अपनी ही धूम होती है। वैसे ही शिवरात्रि का त्योहार हिमाचल में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। खासकर हिमाचल के अंतरराष्ट्रीय मंडी उत्सव की तो बात ही निराली है। उत्तर-पश्चिमी भारत में भगवान शिव की पौराणिक गाथाएं गहरी जडं़े जमाए हुए हैं। इसलिए मंदिरों में भी शिव पूजन को बहुत महत्त्व दिया जाता है। ग्रामीण लोगों के लिए यह सबसे बड़ा त्योहार होता है इसलिए सब खुलकर खर्च करते हैं। यह त्योहार लोग बड़े उत्साह से मनाते हैं। यूं तो पूरा वर्ष इस त्योहार के लिए लोग बचत करते हैं, परंतु त्योहार से एक मास पूर्व वास्ताविक तैयारी प्रारंभ होती है। देव परंपरा के संरक्षण व धार्मिक अनुष्ठानों में मंडी नगर का विशेष ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा पुरातात्विक महत्त्व रहा है, जिससे यह नगर छोटी काशी के नाम से विख्यात है। हिमाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में जहां शिवरात्रि अत्यंत श्रद्धा से मनाई जाती है, वहीं मंडी के मेले को अंतरराष्ट्रीय मेले के रूप में मनाया जाता है। यह धार्मिक उत्सव मंडी नगर में बड़े उत्साह से सैकड़ों वर्षों से मनाया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में इस बार भी कई देवी-देवता शिरकत करेंगे। अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव के लिए देवता सजने शुरू हो गए हैं। गांव में न केवल उत्सव को लेकर देवलुओं में उत्साह है, बल्कि देवताओं में भी सुंदर दिखने की होड़ लगी रहती है। देवताओं के शृंगार का काम देवताओं के खास कारीगर और देवलू करते हैं। खास बात यह है कि केवल शिवरात्रि के लिए ही कुछ देवता खास तौर पर शृंगार करते हैं, जबकि वर्ष भर ये देवता स्वर्ण आभूषणों व नगों को नहीं पहनते हैं। इसकी खास वजह यह है कि देवता शिवरात्रि जलेब में शामिल होने आते हैं, जिसे शिव की बारात कहा जाता है। मंडी के पड्डल मैदान में 4 मार्च से मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि माहोत्सव की तैयारियां शुरू हो गई हैं। हालांकि इस बार शिवरात्रि 4 मार्च को मनाई जा रही है, लेकिन मंडी में शिवरात्रि का मेला 5 मार्च से विधिवत शुरू होगा और 11 मार्च तक चलेगा। मंडी से करीब 100 किलोमीटर दूर कमरूनाग से मंडी के अराध्य देव कमरूनाग पुलिस सुरक्षा के बीच शिवरात्रि के पैदल सफर पर निकल गए हैं। व्यापारियों ने भी पड्डल मैदान में पहुंचना शुरू कर दिया है और प्रशासन की ओर से भी उत्सव की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। देव कमरूनाग ने अपनी कोठी से शिवरात्रि के सफर को लगभग 3 दर्जन लोगों के साथ शुरू किया है। वे एक सप्ताह का पैदल सफर कर मंडी शहर में पहुंचेंगे। पैदल सफर में देवता को पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा उपलब्ध करवाई गई है। वे तीन मार्च को मंडी पहुंचेंगे। इस सफर के दौरान अराध्य देव कमरूनाग अलग-अलग स्थानों पर अपने भक्तों का अतिथ्यि स्वीकार करेंगे। सफर के दौरान उन्हें अलग-अलग स्थानों से दो दर्जन से अधिक धामों का न्यौता मिल चुका है। बता दें कि अपने इस सफर में देव कमरूनाग अपने भक्तों के घरों में ही विराजमान होकर उनका अतिथ्यि स्वीकार करेंगे।  इसके बाद देवता मंडी के देव माधोराय से मिलन कर मां टारना के मंदिर में विराजमान होंगे और फिर चार मार्च से अंतरराष्ट्रीय स्तर के इस महोत्सव की शुरुआत होगी। इस दिन मुख्य जलेब भी निकलेगी। इस जलेब में माधवराय से मिलने और भूतनाथ मंदिर में हाजिरी भरने के लिए देवता खास साज-सज्जा के साथ आते हैं। यही नहीं देवता के ऐसे कई वाद्ययंत्र भी केवल शिवरात्रि में आते हैं जिनकी ध्वनियों से छोटी काशी मंडी देवलोक सी प्रतीत होती है। अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। इस महोत्सव में हर वर्ष 6 सांस्कृतिक संध्याएं होती हैं, लेकिन इस बार प्रशासन ने इसमें कटौती करते हुए सिर्फ  चार संध्याओं को ही आयोजित करने का निर्णय लिया है।

पहाड़ों की काशी में पहुंचेंगे 250 देवता

पहाड़ों की काशी कहे जाने वाले मंडी में मनाए जाने वाला अंतरराष्ट्रीय स्तर का यह महोत्सव खास इसलिए है क्योंकि इसमें इस काशी से करीब 250 देवता पहुंचकर देव कमरूनाग से मिलते हैं, अंतरराष्ट्रीय कलाकार इसमें हिस्सा लेते हैं और खुद प्रदेश के सीएम इसका उद्घाटन और राज्यपाल इसका समापन करते हैं। प्रशासन के बड़े अधिकारी इसमें शामिल होते हैं। उत्तर भारत के सबसे बड़े समारोहों में इसकी गिनती होती है। गौर हो कि मंडी को पहाड़ों की काशी इसलिए कहा जाता है क्योंकि छोटे से इस शहर में छोटे बड़े मिलाकर 81 मंदिर हैं।


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