आत्मसमर्पण के बाद खत्म हुई थी तारागढ़ की लड़ाई

By: Mar 27th, 2019 12:05 am

जब जगत सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया और तारागढ़ किले की लड़ाई समाप्त हो गई तो पृथ्वी सिंह का झगड़ा बसौली के राजा संग्राम पाल के साथ भलई के परगने के बारे में उठ खड़ा हुआ। कहते हैं कि पृथ्वी सिंह ने भलई और जूंड का भाग बसौली के राजा संग्राम पाल को जगत सिंह के विरुद्ध सहायता पाने के उद्देश्य से दिया था…

गतांक से आगे …

पृथ्वी सिंह ने इन राणाओं को दबाकर सारा पांगी क्षेत्र सीधा अपने आधिपत्य में कर लिया और वहां अपने अधिकारियों को नियुक्त कर दिया। इसका पता हमें ‘किलाड़’ और ‘साच’ के मध्य एक शिलालेख से मिलता है। यह लेख 1642 ई. का है। उसने पहले पांगी और चुराह में सरकारी कार्यालय भवन बनाए। जब जगत सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया और तारागढ़ किले की लड़ाई समाप्त हो गई तो पृथ्वी सिंह का झगड़ा बसौली के राजा संग्राम पाल के साथ भलई के परगने के बारे में उठ खड़ा हुआ।  कहते हैं कि पृथ्वी सिंह ने भलई और जूंड का भाग बसौली के राजा संग्राम पाल को जगत सिंह के विरुद्ध सहायता पाने के उद्देश्य से दिया था। क्षेत्र के देने की शर्तों के बारे में तो पता नहीं परंतु पृथ्वी सिंह इस क्षेत्र को संग्राम पाल से वापस चाहता था। अतः झगड़ा मुगल दरबार तक पहुंचा और सन् 1648ई. में एक मुगल अधिकारी ने इसका निर्णय चंबा के पक्ष में दिया। पृथ्वी सिंह नौ बार मुगल दरबार में आया था और उसकी स्वामी भक्ति से प्रसन्न होकर बादशाह ने उसे 16000 रुपए आय की जागीर ‘जसवां दून’ में दी और कई मूल्यवान वस्तुएं भी प्रदान की। भरमौर के गद्दी खत्रियों का विश्वास है कि उनके पूर्वज पृथ्वी सिंह के समय में लौहार से आकर यहां बसे थे। पृथ्वी सिंह ने प्रयाग, काशी, गया आदि धार्मिक स्थानों की भी यात्रा की थी। उसके राज्यकाल में खजियार में खाजी नाग, महला में हिडिंबा और चंबा में राम-सीता के मंदिरों का निर्माण हुआ। उसके आठ पुत्र थे। बड़े पुत्र का नाम शत्रु सिंह था।

चतर सिंह (1660-1690 ई.)

एक ताम्रपत्र के अनुसार चतर सिंह का नमा शत्रु सिंह था, परंतु वह चतुर सिंह के नाम से प्रसिद्ध था।  जब वह राजा बना तो उसने अपने छोटे भाई जय सिंह को अपना मंत्री बनाया। उसने जय सिंह को बसौली के राजा संग्रामपाल (1635-1673 ई.) के पास भेजा कि वह उसके परगना भलई का भाग उसे वापस कर दे, परंतु संग्रामपाल देने से इंकार कर दिया। देते समय क्या शर्तें हुई थी, कह नहीं सकते थे या तो यह परगना अल्प अवधि के लिए दिया गया था और संग्राम पाल इस पर सदा के लिए अपना अधिकार जमाना चाहता था या उसने जगत सिंह के साथ युद्ध करते समय पृथ्वी सिंह की सहायता नहीं की होगी। अतः चतर सिंह ने बसौली पर आक्रमण करके बाहुबल से भलई का परगना संग्राम पाल से वापस ले लिया।


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