आयात शुल्क की नई चुनौती

By: Mar 11th, 2019 12:05 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

अब यदि वाणिज्यिक वार्ता और कूटनीतिक प्रयासों से अमरीका के साथ कारोबार तनाव खत्म करने की कोशिश को कामयाबी नहीं मिले, तो भारत को अपने उद्योग-कारोबार और सांस्कृतिक मूल्यों के मद्देनजर अमरीका के अनुचित दबाव से बचना होगा। ऐसे में भारत कुछ कठोर रुख अपनाते हुए अमरीका से आयात होने वाले पूर्व निर्धारित उत्पादों पर 1 अप्रैल, 2019 से शुल्क वृद्धि कर सकता है…

हाल ही में अमरीका भारत को व्यापार में तरजीही वाले देशों की सूची से निकालने की डगर पर आगे बढ़ा है। पांच मार्च को अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमरीका की संसद को एक पत्र के जरिए भारत को दी गई प्राथमिकताओं की सामान्यीकरण प्रणाली (जीएसपी) को समाप्त करने के अपने इरादे से अवगत कराया है। ऐसे में यदि अमरीका जीएसपी के फैसले पर कायम रहता है, तो 60 दिनों के बाद भारत का तरजीही व्यापार दर्जा खत्म हो जाएगा। ज्ञातव्य है कि वर्ष 1976 से जीएसपी व्यवस्था के तहत विकासशील देशों को दी जाने वाली आयात शुल्क रियायत के मद्देनजर करीब 2000 भारतीय उत्पादों को शुल्क मुक्त रूप से अमरीका में भेजने की अनुमति मिली हुई है। अमरीका से मिली व्यापार छूट के तहत भारत से किए जाने वाले करीब 5.6 अरब डालर यानी 40 हजार करोड़ रुपए के निर्यात पर कोई शुल्क नहीं लगता है। आंकड़े बता रहे हैं कि जीएसपी के तहत तरजीही के कारण अमरीका को जितने राजस्व का नुकसान होता है, उसका एक-चौथाई भारतीय निर्यातकों को प्राप्त होता है।

उल्लेखनीय है कि तीन मार्च को अमरीका-राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि भारत अमरीका पर बहुत अधिक शुल्क लगाने वाला देश है। ऐसे में अब अमरीका भारतीय उत्पादों पर जवाबी शुल्क (मिरर टैक्स) लगा सकता है। ट्रंप ने अमरीका मोटर साइकिल हार्ले-डेविडसन का उदाहरण देते हुए कहा कि जब हम भारत को मोटर साइकिल भेजते हैं, तो उस पर 100 प्रतिशत का शुल्क लगाया जाता रहा था, जिसे घटाकर 50 फीसदी किया गया, लेकिन जब भारत हमें मोटर साइकिल का निर्यात करता है, तो हम कुछ भी शुल्क नहीं लगाते हैं। ट्रंप ने कहा कि  अब समय आ गया है कि अमरीका भी परस्पर बराबर जवाबी शुल्क लगाएगा। हालांकि मैं भारत के उत्पादों पर 100 प्रतिशत का शुल्क नहीं लगाने जा रहा हूं, लेकिन मैं 25 प्रतिशत का शुल्क लगाने जा रहा हूं। यह स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि भारत सरकार द्वारा विदेशी ई-कामर्स कंपनियों को यूजर डेटा को भारत में ही रखने के लिए नियम बनाने के मद्देनजर भी ट्रंप ने अमरीकी कंपनियों के हित में शुल्क बढ़ाने का मन बनाया है। इसके अलावा विदेश व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को व्यापार में तरजीही वाले देशों की सूची से निकालने की मंशा के पीछे एक कारण यह भी है कि भारत ने अमरीकी पशुओं के दूध से बने डेयरी प्रोडक्ट लेने से मना किया है, क्योंकि अमरीका में दुधारू पशुओं को चारे में मांसाहार खिलाया जाता है। ऐसे में भारत के इस फैसले के पीछे सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनाएं हैं, लेकिन भारत का कहना है कि डेयरी प्रोडक्ट के लिए सर्टिफिकेशन प्रक्रिया का पालन हो, तो भारत को आयात से कोई आपत्ति नहीं होगी। इसमें कोई दोमत नहीं है कि अमरीका का यह कदम भारत-अमरीकी कारोबार के लिए एक बड़ी चुनौती है। अमरीका भारत का सबसे बड़ा वैश्विक कारोबारी सहयोगी है। भारत से अमरीका को निर्यात 2017-18 में बढ़कर 47.87 अरब डालर हो गया, जो एक साल पहले वर्ष 2016-17 के 42.21 अरब डालर से ज्यादा है। इसकी वजह से व्यापार घाटे को लेकर अमरीका की चिंता बढ़ी है, लेकिन अमरीका का भारत के साथ व्यापार घाटा महज करीब 22 अरब डालर है। जबकि अमरीका का चीन के साथ व्यापार घाटा 566 अरब डालर है। यकीनन अमरीका को भारत की जरूरत है और भारत को भी अपने आर्थिक उद्देश्यों के लिए अमरीका की जरूरत है। जहां अमरीका अब भी दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, वहीं भारत दुनिया में सबसे तेज आर्थिक विकास दर वाला बड़ा देश है। भारत दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ बाजार है। ऐसा विशाल उपभोक्ता प्रधान भारत अमरीका के लिए आर्थिक जरूरत बन गया है। ऐसे में यदि अमरीका 60 दिन के बाद जीएसपी व्यवस्था से भारतीय वस्तुओं को बाहर करता है, तो इससे भारत के छोटे निर्यातकों तथा उनके द्वारा दिए जा रहे रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। खासतौर से अमरीका को प्रोसेस्ड फूड, फुटवियर, बुने हुए कपड़े, प्लास्टिक प्रोडक्ट्स, इंजीनियरिंग उत्पाद, साइकिल के पुर्जे आदि उत्पादों का निर्यात करने वाले भारतीय निर्यातक प्रभावित होंगे। निर्यात संगठनों के फेडरेशन फियो ने कहा है कि जीएसपी के तहत लाभों के समाप्त होने से ऐसी सुविधा प्राप्त भारतीय निर्यातकों को सरकार की वित्तीय मदद की जरूरत होगी, तभी वे अमरीकी बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रहेंगे। ऐसे में भारत ने पांच मार्च को ट्रंप द्वारा भारत के तरजीही व्यापार दर्जे को खत्म करने के ऐलान और आयात शुल्क बढ़ानेके साथ संरक्षणवादी बनते अमरीका को भारत के हितों के लिए राजी करने के विशेष प्रयास भी जरूरी हैं। ज्ञातव्य है कि पिछले साल ट्रंप प्रशासन ने कड़ा रुख अपनाते हुए भारत से आयातित 50 उत्पादों पर शुल्क मुक्त की रियायत खत्म कर दी थी। इनमें प्रमुखतया इस्पात, एल्यूमीनियम, हैंडलूम और एग्रीकल्चर सेक्टर से जुड़े हुए उत्पाद शामिल थे।

भारत- अमरीका के बीच कारोबार संबंधी विवाद पिछले साल जुलाई 2018 में उच्च स्तर पर पहुंच गया, जब भारत ने 29 कृषि उत्पादों पर शुल्क लगाने की घोषणा कर दी। अमरीका से आने वाले सेब, जैतून और अखरोट पर 50 प्रतिशत ज्यादा कर लगाने के अलावा कुछ औद्योगिक उत्पाद भी निशाने पर रहे हैं। भारत ने इन उत्पादों पर कर लगाने का फैसला पांच बार टाला है। निस्संदेह एक ऐसे समय में जब अमरीका और चीन के बीच कारोबार वार्ता के दौरान चीन के लचीले एवं कूटनीतिक दृष्टिकोण के कारण दोनों देशों के बीच ट्रेड वॉर के समाप्त होने की संभावना बन गई है, ऐसे में भारत-अमरीका के बीच कारोबारी तनाव को कम करने के लिए चीन की तरह भारत के लचीले और कूटनीतिक रुख की जरूरत है।

इस परिप्रेक्ष्य में भारत अमरीका के साथ कारोबार संबंधों के तनाव को कम करने के लिए लचीला रुख अपनाते हुए अमरीका से आयात होने वाले उन्नत तकनीक से लैस स्मार्ट फोन, सूचना एवं संचार तकनीक से जुड़े उत्पाद जैसे विभिन्न उत्पादों पर कम आयात शुल्क लगाने की डगर पर आगे बढ़ सकता है, लेकिन अब यदि वाणिज्यिक वार्ता और कूटनीतिक प्रयासों से अमरीका के साथ कारोबार तनाव खत्म करने की कोशिश को कामयाबी नहीं मिले, तो भारत को अपने उद्योग-कारोबार और सांस्कृतिक मूल्यों के मद्देनजर अमरीका के अनुचित दबाव से बचना होगा। ऐसे में भारत कुछ कठोर रुख अपनाते हुए अमरीका से आयात होने वाले पूर्व निर्धारित उत्पादों पर 1 अप्रैल, 2019 से शुल्क वृद्धि कर सकता है। हम आशा करें कि भारत और अमरीका के बीच वाणिज्यिक और कूटनीतिक प्रयासों से द्विपक्षीय कारोबार संबंधों का तनाव कम होगा। इससे दोनों देशों के बीच निर्धारित किए गए 500 अरब डालर के द्विपक्षीय व्यापार की दिशा में कदम आगे बढ़ सकेंगे। इससे दोनों देशों में मैत्रीपूर्ण आपसी कारोबार व निवेश संबंधों के कारण रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं भी मजबूत होंगी।


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