ईश्वर से अलग कुछ नहीं

By: Mar 23rd, 2019 12:05 am

श्रीश्री रवि शंकर

क्या आप जानते हैं, छह दर्शनों में से पहले तीन दर्शन तो भगवान के बारे में बात तक नहीं करते, न्याय, वैशेषिक और सांख्य दर्शन। गौतम महर्षि के द्वारा रचित न्याय दर्शन ज्ञान के बारे में चर्चा करता है कि आपका ज्ञान सही है या नहीं। ज्ञान के माध्यम को जानना कि वह सही है या नहीं, यह है न्याय दर्शन। उदाहरण के लिए आप अपनी इंद्रियों के द्वारा ये देख पाते हैं कि सूर्य ढल रहा है या सूर्य निकल रहा है, लेकिन न्याय दर्शन कहता है नहीं, आप केवल उस पर विश्वास नहीं कर सकते, जो आप देख रहें हैं, आपको उससे परे जाकर खोजना है कि क्या वास्तव में सूर्य ढल रहा है या फिर पृथ्वी घूम रही है। वैशेषिक दर्शन हमें लगता है कि कोपरनिकस ने यह खोज की थी कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है, मगर यह बिलकुल असत्य है। उन्होंने जरूर पता लगाया था, लेकिन उसके पहले भारत में बहुत लंबे समय से लोग ये बात जानते थे कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है।  न्याय दर्शन इन सबके बारे में बात करता है। वह बात करता है धारणाओं की और उन धारणाओं के संशोधन की और फिर आता है वैशेषिक दर्शन।  यह संसार की सभी वस्तुओं की गिनती करता है। जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश और फिर सारी वस्तुएं और विषय और इन सबका विश्लेषण।  यह है वैशेषिक दर्शन। इसमें वे मन, चेतना, बुद्धि, स्मृति और इन सबके बारे में चर्चा करते हैं। इसके बाद है सांख्य दर्शन। तो ये तीन दर्शन ईश्वर के बारे में बात नहीं करते, बल्कि वे चेतना के बारे में बात करते हैं। केवल योग सूत्रों में जो कि चौथा दर्शन है वे ईश्वर के विषय पर चर्चा करते हैं।  इसलिए आपको ईश्वर पर विश्वास करने के लिए विवश नहीं करना है, लेकिन आपको किसी पर तो विश्वास करना होगा। आपको कम से कम चेतना पर तो विश्वास करना होगा।  भगवान ही तो अस्तित्व है। आमतौर पर जब हम ईश्वर के बारे में सोचते हैं, तो हम स्वर्ग में बैठे किसी व्यक्ति के बारे में सोचते हैं, जिसने ये सृष्टि बनाई और फिर इस सृष्टि से दूर जाकर बैठ गए और हर एक के अंदर गलतियां निकालने में जुट गए। आप जो भी करें, वे एक डंडा लेकर आपको सजा देने को तैयार बैठे हैं। हमने ऐसे भगवान के बारे में कभी बात नहीं की। भगवान ही तो अस्तित्व है। यह पूरी सृष्टि एक ऐसे तत्त्व से बनी है, जिसका नाम है प्रेम और यही तो ईश्वर है ! आप ईश्वर से अलग नहीं हैं। ईश्वर के बाहर कुछ भी नहीं है, सब कुछ ईश्वर के अंदर ही स्थापित है। तो ये अच्छा, बुरा, सही, गलत और इन सबसे परे है। सुख-दुःख ये सब कोई मायने नहीं रखता। केवल एक है जिसका अस्तित्व है, वह एक  पूर्ण है और यदि आप उसे कोई नाम देना चाहें तो ईश्वर कह सकते हैं या फिर चिंता मत करिए केवल स्वयं को जान जाइए। आप जब इस भाव को अपने अंदर महसूस करते हैं, तो आपको एक अलग ही अनुभूति का आभास होता है।


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