ऐतिहासिक बातलेश्वर मंदिर
गतांक से आगे…
ये देवमूर्तियां हैं शिव, विष्णु, गणेश, दुर्गा और सूर्य। इनमें प्रधान बितान केंद्रित मंदिर के ढके बरामदे से जुड़े रहते हैं। इनमें आगे मंडप होता है और ऊपर शिखर पर आमलक। इनके मध्य के प्रधान मंदिर का शिखर उत्तुंग होता है। बातल का शिवलिंग भी इसी शैली का सुंदर लघु नमूना है, जो इन अधिकतर विशेषताओं से परिपूर्ण है, किंतु तत्कालीन सुविधा एवं स्थान के दृष्टिगत इनके चारों कोनों में लघु मंदिर नहीं है। उनकी जगह मंदिर के आगे एक कोने में शिवजी के सहायक देवताओं की मूर्तियां चबूतरे पर रखी होती थीं। वर्तमान समय में मंदिर के रखरखाव में तनिक परिर्वतन किया गया है। मुख्य मंदिर लगभग 20 फुट ऊंचा है। मंदिर का गर्भगृह 9 फुट लंबाई और चौड़ाई से संयुक्त एक कुंड, जिसमें शिवलिंग एवं जलहरी स्थापित है। मूर्ति अढ़ाई सौ वर्ष पूर्व मध्यप्रदेश की क्षिप्रा नदी से लाई गई थी। शिवलिंग का आधार तांबे तथा चांदी के आवरण से अवस्थित है। शिवालय गांव के मध्य में स्थित है। मंदिर में नियमित पूजा पाठ चलता रहता है। सदियों से गांव में एक प्रथा चली आ रही है कि जब इलाके में अकाल पड़ जाए, तो गांव वाले शिवजी की पिंडी के ऊपर तक मंदिर के गर्भगृह को सैकड़ों बाल्टियों से पानी में डुबो देते हैं और शिवजी का पूजन कीर्तन होता है। आश्चर्यजनक परिणाम यह है कि एक-दो दिन में बारिश हो जाती है। इससे भी अद्भुत बात यह है कि जल शिवलिंग कुंड में ही समा जाता है। यह वास्तुकला का अद्भुत नमूना कहा जा सकता है। कहा जा सकता है कि बातल का शिवालय क्षेत्र के प्राचीन देवालयों में इतिहास की स्मृति भी है। यह गांव की सामाजिक धुरी ही नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र में संस्कृति प्रेम की प्रेरणा भी देता है।
-अमरदेव आंगिरस, दाड़लाघाट
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