क्यों हैं देवता दैत्यों से श्रेष्ठ
श्रेष्ठ होने के लिए बुद्धिमता का होना भी अति आवश्यक है। देवताओं में यही गुण उन्हें दैत्यों से श्रेष्ठ बनता है। तब देवर्षि ने पूछा, हे पिताश्री! आप ये कैसे कह सकते हैं कि दैत्यों में बुद्धि नहीं है? क्या वे मूर्ख हैं? तब ब्रह्मदेव ने कहा,नहीं पुत्र। वे मूर्ख नहीं हैं किंतु अज्ञानी हैं। यही कारण है कि वे आज दुःख भोगने को विवश हैं, लेकिन तुम्हारे संदेह को मिटाना भी आवश्यक है…
एक बार देवर्षि नारद घूमते-घूमते अपने पिता के पास ब्रह्मलोक पहुंचे। वहां परमपिता ने उनका स्वागत किया और उनके आने का उद्देश्य पूछा। तब नारद ने कहा, हे पिताश्री! आप इस समस्त संसार के जनक हैं। सृष्टि में जो कुछ भी है उनकी उत्पत्ति आपसे ही हुई है। जिस प्रकार कश्यप की पत्नी अदिति से देवों की उत्पत्ति हुई है, उसी प्रकार उनकी पत्नी दिति से दैत्यों की। इसके अतिरिक्त बल में भी वे देवताओं से बढ़कर ही हैं। फिर क्या कारण है कि आज जहां देवता स्वर्ग में समस्त सुख भोग रहे हैं, वहीं दैत्य पाताल में निवास करने को विवश हैं। महादेव के विषय में तो मैं नहीं कह सकता किंतु आपने और नारायण ने सदैव देवों को ही श्रेष्ठ समझा है। मैं इसका कारण समझने में असमर्थ हूं। कृपया बताइए क्यों आप और श्रीहरि देवों को दैत्यों से श्रेष्ठ समझते हैं? ब्रह्माजी ने कहा, नारद ये सत्य है कि दैत्य देवताओं के बड़े भाई हैं और ये भी सत्य है कि बल में भी वे देवताओं से बढ़कर है, किंतु केवल आयु अथवा बल में बड़ा होना श्रेष्ठता की पहचान नहीं है। श्रेष्ठ होने के लिए बुद्धिमता का होना अति आवश्यक है। देवताओं में यही गुण उन्हें दैत्यों से श्रेष्ठ बनाता है। तब देवर्षि ने पूछा, हे पिताश्री! आप ये कैसे कह सकते हैं कि दैत्यों में बुद्धि नहीं है? क्या वे मूर्ख हैं? तब ब्रह्मदेव ने कहा,नहीं पुत्र। वे मूर्ख नहीं हैं किंतु अज्ञानी हैं। यही कारण है कि वे आज दुःख भोगने को विवश हैं, लेकिन तुम्हारे संदेह को मिटाना भी आवश्यक है। ऐसा करो, देवों और दैत्यों दोनों को ब्रह्मलोक में भोजन के लिए आमंत्रित करो। वहां तुम्हे पता चल जाएगा कि देवता क्यों दैत्यों से श्रेष्ठ हैं। ब्रह्माजी की आज्ञा से देवर्षि नारद तत्काल देवों और दैत्यों के पास गए और उन्हें ब्रह्मदेव का निमंत्रण दिया। वैसे तो आपसी प्रतिस्पर्धा और ईर्ष्या के कारण देव और दैत्य कभी भी एक स्थान पर इकट्ठे नहीं होते थे, किंतु ये परमपिता की आज्ञा थी, जिसे कोई मानने से इंकार नहीं कर सकता था। इसीलिए देव और दैत्य दोनों ब्रह्मलोक भोज के लिए पहुंचे। सबने परमपिता को प्रणाम किया। ब्रह्मदेव ने कहा, तुम सभी यहां आए हो, तो बताओ एक साथ भोजन करना पसंद करोगे अथवा अलग-अलग और पहले भोजन कौन करेगा। परमपिता की ये बात सुनकर देवता दैत्यों के साथ भोजन करने को राजी हो गए, किंतु दैत्यों ने देवताओं के साथ भोजन करने से मना कर दिया। उन्होंने कहा, प्रभु! देवता हमारे चिरशत्रु हैं इसी कारण हम उनके साथ भोजन नहीं कर सकते। रही पहले भोजन करने की बात तो हम देवताओं से बड़े हैं। हमारी माता दिति भी माता अदिति से बड़ी हैं। इसी कारण पहले भोजन करने का सौभाग्य तो हमें ही प्राप्त होना चाहिए। देवता ये सुनकर दैत्यों के बाद भोजन करने के लिए तैयार हो गए। ब्रह्माजी दैत्यों को लेकर भोजनगृह पहुंचे और उन्होंने सभी दैत्यों के हांथों को लौहदंड के साथ सीधा बांध दिया। उसके बाद उन्होंने उन्हें भोजन करने की आज्ञा दी। भोजन की आज्ञा तो मिल गई और सामने थाल में स्वादिष्ट भोजन भी रखा था, किंतु दैत्य खाएं कैसे। लौहदंड से बंधा होने के कारण उनके हाथ मुड़ कर उनके मुख तक पहुंच ही नहीं सकते थे। कुछ दैत्यों ने उन दंडों को खोलने का प्रयास किया किंतु भला ब्रह्मा द्वारा बांधे गए बंधन को कौन खोल सकता था। अब कोई और उपाय न देख कर उन्होंने जैसे तैसे खाने का प्रयत्न आरंभ किया। कुछ भोजन उछाल कर अपने मुंह में डालने का प्रयत्न करने लगे, तो कोई पशु जैसे पात्र में मुंह डालकर खाने लगे। देवर्षि नारद ये सब देख रहे थे। आखिरकार दैत्य ब्रह्माजी के पास आए और उन्होंने कहा, हे परमपिता! अगर हमारा अपमान ही करना था, तो हमें आमंत्रित क्यों किया? फिर ब्रह्माजी ने कहा,चलो देखते हैं कि देवता किस प्रकार भोजन करते हैं। ये कहकर उन्होंने देवताओं को बुलाया। सारे दैत्य प्रसन्नतापूर्वक वहीं रुके रहे ताकि वे देवताओं को अपमानित होते हुए देख सकें। देवताओं के साथ भी वही शर्त रखी गई। देवता भी उस प्रकार भोजन करने में असमर्थ हो गए। किंतु फिर कुछ सोच कर सारे देवता आमने सामने बैठ गए और एक दूसरे को प्रेम से भोजन कराने लगे। इस प्रकार उन्हें अपने हाथ मोड़ने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। उन्होंने भोजन भी किया और ऐसे भोज से उन सभी का आपसी प्रेम भी बढ़ गया। भर पेट भोजन करने के बाद देवता ब्रह्मदेव के पास आए और कहा, परमपिता! इस प्रकार की परीक्षा के लिए धन्यवाद। आज जिस अपनत्व से हमने भोजन किया है वैसा पहले कभी नहीं किया। जब दैत्यों ने देवताओं की बुद्धिमता देखी तो वे बड़े लज्जित हुए। देवर्षि नारद ने ब्रह्माजी से कहा, आज आपने मुझे भी अमूल्य शिक्षा दी है।
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