गणगौरः मां पार्वती के शांगार और पूजन का पर्व

By: Mar 30th, 2019 12:07 am

गणगौर त्योहार मुख्यतः राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है। यह पर्व विशेष रूप से महिलाएं मनाती हैं। विवाहिता महिलाएं पति की लंबी आयु और कुशल वैवाहिक जीवन के लिए और अविवाहित कन्याएं मनोवांछित वर पाने के लिए गणगौर पूजा करती हैं। हालांकि गणगौर का पर्व होली के दूसरे दिन से ही आरंभ हो जाता है, लेकिन इस पर्व की मुख्य पूजा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही की जाती है। पूरे 16 दिन तक महिलाएं भगवान शिव और पार्वती का व्रत और पूजन करती हैं। जानते हैं क्यों होती है गणगौर पूजा? और क्या है पौराणिक कथा? कृष्ण प्रतिपदा से यह त्योहार चैत्र शुक्ल तृतीया तक मनाया जाता है। इस बार 8 अप्रैल तक ये त्योहार मनाया जाएगा। जिन कन्याओं का विवाह होता हैं, उनके लिए प्रथम वर्ष सौलह दिन गणगौर पूजन अत्यंत आवश्यक माना  गया है। स्त्रियां व कन्याएं तालाब से मिट्टी लाकर ईसर-गणगौर (शिव-पार्वती) की मूर्तियां बनाती हैं। इसके बाद 16 दिन तक चलने वाली इस पूजा के लिए हरी दूर्वा, पुष्प और तालाब का जल लेने के लिए महिलाएं और लड़कियां टोली बनाकर लोकगीत गाते हुए कलश भरकर सिर पर लाती हैं और इस कलश या जल से भरे लौटे को दूर्वा और फूलों से सजाती हैं और इस पानी से ईसर और गणगौर का पूजन करती हैं। चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रातः स्नान करके गीले वस्त्रों में ही घर के किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोने चाहिए।

गणगौर की पौराणिक कथा

एक बार की बात है कि भगवान शिव शंकर और माता पार्वती भ्रमण के लिए गए थे, उनके साथ नारद मुनि भी थे। चलते-चलते वे एक गांव में पंहुच गए, उनके आने की खबर पाकर सभी उनके स्वागत की तैयारियों में जुट गए। कुलीन घरों से स्वादिष्ट भोजन पकने की खुशबू आने लगी, लेकिन कुलीन स्त्रियां स्वादिष्ट भोजन लेकर पहुंचती, उससे पहले ही गरीब परिवारों की महिलाएं अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने पहुंच गइर्ं। माता पार्वती ने उनकी श्रद्धा व भक्ति को देखते हुए सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। जब उच्च घरों की स्त्रियां तरह-तरह के मिष्ठान लेकर हाजिर हुइर्ं, तो माता के पास उन्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा तब भगवान शंकर ने पार्वती से कहा, आपने सारा आशीर्वाद तो इन गरीब स्त्रियों को दे दिया, अब इन्हें आप क्या देंगी? माता ने कहा इनमें से जो भी सच्ची श्रद्धा लेकर यहां आई है उस पर ही इस विशेष सुहाग रस के छींटे पड़ेंगे और वह सौभाग्यशालिनी होगी। तब माता पार्वती ने अपने रक्त के छींटे बिखेरे जो उचित पात्रों पर पड़े और वे धन्य हो गई। लोभ-लालच और अपने ऐश्वर्य का प्रदर्शन करने पहुंची महिलाओं को निराश लौटना पड़ा। मान्यता है कि यह दिन चैत्र मास की शुक्ल तृतीया का दिन था, तब से लेकर आज तक स्त्रियां इस दिन गण यानी भगवान शिव और गौर यानी माता पार्वती की पूजा करती हैं।


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