चीनी से 300 गुना मीठा पर शुगर का दुश्मन मोंक फ्रूट

By: Mar 31st, 2019 12:07 am

वैज्ञानिकों ने चीन में पाए जाने वाले मोंक फ्रूट को स्टीविया की तर्ज पर मिठास के विकल्‍प के तौर पर तैयार किया है। कहने को मॉक फ्रूट चीनी के मुकाबले करीब 300 गुना अधिक मीठा होता है, लेकिन यह शुगर के मरीजों के लिए लाभदायक है

भारत में शुगर एक ऐसी व्याधि है, जिससे हर इनसान खौफ  खाता है। शुगर से बचने के लिए आए दिन लोग आपको नए-नए उपाय करते मिल जाएंगे, लेकिन इस बार शुगर का पक्का इंतजाम खोज लिया है सीएसआईआर पालमपुर के वैज्ञानिकों ने। चीन में पाए जाने वाले मोंक फू्रट को स्टीविया की तर्ज पर मिठास के विकल्प के तौर पर तैयार किया है। कहने को मोंक फू्रट चीनी के मुकाबले करीब 300 गुना अधिक मीठा होता है, लेकिन यह शुगर के मरीजों के लिए लाभदायक है। बताया जाता है कि इसे देश में बड़े स्तर पर तैयार भी कर लिया जा रहा है।  जानकारों की मानें, तो जहां स्टीविया में थोड़ी कड़वाहट होती है वहीं, मोंक फ्रूट का स्वाद अधिक मिठास भरा होता है।   खास बात यह भी कि पेय पदार्थ, पके हुए या बेक्ड भोजन में प्रयोग किए जाने के बावजूद इसकी मिठास कायम रहती है। चीन में इसे सर्दी, खांसी, गले के रोगों के ईलाज में प्रयोग किया जाता है, जबकि खून साफ  करने में भी इसकी अहम भूमिका है।

– जयदीप रिहान, पालमपुर

दुनिया की सबसे ताकतवर सब्जी अब हिमाचल में ऑटिचोक‌

दुनिया भर में हार्ट- लीवर और पाचन शक्ति को मजबूती देने वाली सब्जी के नाम से मशहूर सब्जी आटिचोक अब हिमाचल में भी लहलहाती नजर आएगी। कांगड़ा जिला के पटौला गांव में प्रगतिशील किसान बलवीर सैणी फोन नंबर (98162-32359) ने यह कमाल कर दिखाया है। करीब 6 माह पहले सैणी ने अपने पोलीहाउस और खुले खेतों में आटिचोक को रोपा था,जो अब पूरी तरह तैयार हो गई है। कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के वैज्ञानिक डा. प्रदीप कुमार ने बताया कि अमूमन यह सब्जी इटली, मिश्र, स्पेन, अर्जेंटीना, तुर्की, इरान और अमरीका में पाई जाती है। इसे उबालने के बाद खाया जाता है, तो भारत में कुछ स्थानों में इसे पकाकर भी खाने योग्य बनाया जाता है। यह सब्जी जहां हार्ट और लीवर को मजबूत करती है, वहीं पाचन शक्ति को भी बढ़ाती है। ब्लड शुगर को कंट्रोल करती है तथा रक्त से विषैले पदार्थों को बाहर निकालती है। यही नहीं, जानलेवा हैंगओवर पर भी इसका यूज होता है।

-जयदीप रिहान, पालमपुर

विमुक्त शर्मा, गगल

वाह! ईंटों पर उगाए जंगली बूटों में डाली जान

सोलन के दुर्लभ सिंह पुरी से सीख पा रही देश-दुनिया

सोलन जिला से संबंध रखने वाले दुर्लभ सिंह पुरी ने देश-विदेश में ऐसा आयाम स्थापित किया है। दि रॉयल हॉर्टीकल्चर सोसायटी लंदन के सदस्य रहे हैं व उन्हें पौधों को नए तरीकों से उगाने के लिए दर्जनों पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।  पुरी ने घर के आंगन में ही ईंटों पर ऐसी दुर्लभ प्रजाति के पौधे उगाए हैं, जो जंगल के वातावरण में ही पैदा हो सकते हैं। औषधीय पौधों के विलिप्त होती प्रजातियों को संरक्षित करने की पहल की है। इसमें बनफशा, सफेद मूसली, ब्रम्ही, फनेज, जैसे औषधीय पौधे शामिल हैं। उनका कहना है कि ईंटों की मौस पर जड़ें पकड़ने के बाद इसे आसानी से खेतों में उगाया जा सकता है। ईंट में मौस पैदा करने के लिए इसे 15 दिन तक पानी में रखना पड़ता है। मौस आने पर अधिक तेजी से बढ़ने वाली किस्म के किसी भी पौधे के सबसे छोटे हिस्से को बांधा जाता है। इसमें धीरे-धीरे जड़ आ जाती है। इसके बाद जब पौधा बढ़ने लगता है, तो उसे खेतों में या फिर गमले में लगाया जा सकता है। इस विधि में खाद का प्रयोग नहीं किया जाता। पौधे को ईंट में लगे रहने से भी पौधा जीवित रहेगा। सोलन स्थित प्रयोगशाला में देश-विदेश के वैज्ञानिक सलाह के लिए आते हैं। वह 30 वर्षों से अधिक समय से बागबानी से जुड़े हैं।

टिप्स: आज के बेरोजगार युवा मेहनत नहीं करना चाहते। वे आसन तरीके से काम करना पसंद करते हैं, लेकिन एक कहावत है न कि मेहनत रंग लाती है। अभी की हुई मेहनत आपको आगे चलकर आसान बना देती है। इसलिए कोई भी काम है उसको कुछ अलग  करने की सोचो क्यों नहीं कामयाबी आपके कदम चुमती है।

फोन नं. 8580705759

उनकी इस तकनीक को लंदन की प्रसिद्ध पत्रिका गार्डन के प्रमुख पृष्ट पर दर्शाया गया था व उन्हें हिमोत्सव पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

दुर्लभ सिंह जब आखों की कमजोरी के चलते कई साल तक हरे रंग के कमरे में रहे तो यहीं से उनका प्रकृति के प्रति प्रेम बढ़ गया। उन्होंने सबसे पहले ग्लेडियोलस के बीज क्यारी में लगाए। बीज की पहचान रखने के लिए उनके साथ पलम की कटी हुई उल्टी-सीधी टहनियां लगा दी व कुछ समय बाद न केवल बीज बल्कि सभी टहनियों में भी अंकुर फूट आए। इसी के साथ उनका फूल-पौधे उगाने का शौक बढ़ गया। देखते ही देखते घर के आंगन में लगभग 300 किस्म के रंग-बिरंगे फूल व पौधे लहराने लगे। बहरहाल दुर्लभ सिंह पुरी को अनेकों राज्य व राष्ट्र स्तरीय संस्थानों द्वारा ने सम्मानित किया है।

हजारों दरख्त सूखे, चूड़धार की हवा खतरे में, बचा ले सरकार

चूड़धार सेंक्चुरी में खरशु के पेड़ों में कीड़ा लगने से हजारों पेड़ सूख गए हैं। हजारों की संख्या में पेड़ सूखने की कगार पर हैं। पेड़ सूखने से पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित माने जाने वाले प्रसिद्ध धार्मिक स्थल चूड़धार पर्यावरण खतरे में पड़ गया है। नौहराधार व राजगढ़ क्षेत्र के दर्जनों गांव में चारे का संकट अभी से पैदा हो गया है। विभाग ने हजारों पेड़ों को बचाने के लिए प्रयास तो शुरू कर दिए हैं, मगर अभी तक विभाग को इसमें सफलता नहीं मिल पाई है। वन विभाग को 2017 में खरशु के पेड़ों के सूखने का पता चला था। खैर विशेषज्ञ भी अभी तक कोई ठोस उपाय नहीं कर पाए हैं।  चूड़धार सेंक्चुरी 55-52 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है। यहां 70 हजार से अधिक पेड़ खरशु के हैं। इसके अलावा बान, बुरास, रई, देवदार व मोरू समेत दर्जनों प्रजाति के लाखों पेड़ हैं।  हिमालयन वन अनुसंधान केंद्र शिमला से डा. रंजीत सिंह ने बताया कि खरशु नामक पेड़ में फंगस लगी है, जिससे यह सूख रहे हैं। इसके लिए हमारी टीम दौरा कर चुकी है। नौहराधार में तैनात आरओ की टीम को फेंज्युसाईड नामक दवाई का लेप लगाने की सलाह दी है।

-संजीव ठाकुर, नौहराधार

हिमाचल केसरी का खिताब दादा को समर्पित

मिलिए पंकज कुमार गुज्जर से

जिला मंडी की कोटली तहसील के अंतर्गत गुज्जर रोपडू से संबंध रखने वाले पंकज कुमार ने हिमाचल के दंगलों में अपने पुश्तैनी रुतबे को कायम रखा है। वर्ष 2019 में पंकज अपनी पूरी तैयारी के साथ प्रदेश के अखाड़ों में उतरकर नामी पहलवानों को चित कर खूब नाम कमा रहे हैं। 11 नंवबर, 1996 को जन्मे पंकज ने अंतरराष्ट्रीय मंडी शिवरात्रि में हिमाचल केसरी 2019 का खिताब जीतकर खूब नाम कमाया है। यह खिताब पंकज के लिए खास इसलिए भी है क्योंकि पंकज के दादा कन्हैया राम ने यह खिताब राजाओं के समय लगातार पांच बार जीता है और पांच बार लगातार जीत हासिल करने वाले को पांचवे साल चांदी का गुर्ज देकर सम्मानित किया जाता है। इसके बाद पंकज के पिता नेत्र सिंह ने भी इस खिताब को अपने नाम किया है। वर्ष 2019 में पहलवान पंकज गुज्जर ने होली मेला पालमपुर के दंगल में भी हिमाचल केसरी का खिताब जीता है। इससे पहले बिलासपुर के घुमारवीं में आयोजित होने वाले हिमाचल केसरी खिताब को भी पंकज ने जीता है। पंकज घुमारवी के चैहड़ अखाड़े में परशुराम अवार्डी जगदीश राव के पास प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। पंकज गुज्जर तीन बार राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में विजेता भी रह चुके हैं। वह 92 किलोभार वर्ग में मिट्टी और मैट पर रेस्लिंग के लाजवाब प्लेयर साबित हुए हैं।

– नितिन राव, धर्मशाला

बागबानों को सलाह

मटर का तुड़ान करें और मंडियों में भेजें। नर्सरी में पानी न खड़ा होने दें। निचले व मध्यम पर्वतीय क्षेत्रों में टमाटर शिमला मिर्च बैंगन, तेज मिर्च की स्वस्थ पौध तैयार करने के लिए 3 मीटर लंबी, 1 मीटर चौड़ी तथा 15 सेंटीमीटर ऊंची मिट्टी तथा गोबर की क्यारियां बनाएं तथा उनका उपचार फामेंलिन पानी 1ः7 से करें। अनुमोदित किस्मों की ही बीजाई से करें। फ्रांसबीन की बौनी किस्मों को 45×15 सेमी. की दूरी पर बुआई करें। शीतोष्ण फलों सेब, आड़ू , अखरोट, पौकानट आदि के बीजों को क्यारियों में बीजने से पहले स्ट्रेटिफिकेशन के लिए डालें। नींबू प्रजाति व लीची में जस्ते की कमी को पूरा करने के लिए किग्रा जिंक सल्फेट+ 500 ग्रा. अनबुझा चुना प्रति 100 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। नींबू प्रजाित में चश्में तथा आम में कलम करने का कार्य पूरा करें। पौधे में घास की मल्चिंग लगा लें।

-मोहिनी सूद, नौणी

पूजा अर्चना के साथ लाहुल में कृषि कार्य शुरू

भले ही लाहुल-स्पीति जिला की जमीन चार से दस फुट बर्फ के बीच दबी हुई है और कृषि कार्य करना असंभव है, लेकिन लाहुल के उदयपुर के निवासियों ने परंपरा को  कायम रखते हुए कृषि कार्य शुरू कर दिया है। लाहुल-स्पीति विशेष परंपरानुसार एवं पूजा-अर्चना के साथ कृषकों ने कृषि कार्य शुरू कर दिया है। उदयपुर में चित्रोड़ी त्योहार के साथ खेती का कार्य शुरू हुआा। चित्रौड़ी के दिन जमीन से बर्फ  हटाकर खेतों में मिट्टी फेंकी जाती है। स्थानीय निवासी हीराम गौड़ ने बताया कि हर कोई बड़ी शिद्दत से इस परंपरा को निभाता है।

– कार्यालय संवाददाता-कुल्लू

माटी के लाल

किसान ने 10-10 के उगाए चुकंदर

संतोषगढ़ निवासी कुलबीर सिंह ने हर्बल खेती कर 10-10 किलोग्राम के चुकंदर उगाए हैं। कुलबीर सिंह ने बताया कि उन्होंने करीब 3 दिन महीने पहले चुकंदर के बीज बोये थे और आज जब उन्होंने उनकी पटाई की तो उनमें से तकरीबन सभी चुकंदर वजन में 10-10 किलोगाम के निकले। उन्होंने बताया कि इन सभी चुकंदर की खेती के लिए सिर्फ देसी खाद का ही प्रयोग किया गया है। कुलवीर सिंह ने बताया कि इससे पहले भी उन्होंने हर्बल खेती के जरिए करीब 10-10 किलोग्राम की मूलियां पैदा की हैं।

टिप्स : मैं बेरोजगारों युवाओं को उस गाने की याद दिलाना चाहता हूं। ‘खून में तेरे मिट्टी, मिट्टी में तेरा खून’, सच में मैं यही कहना चाहूंगा कि इस मिट्टी से जुड़ो                   – डीआर सैणी, संतोषगढ़

किसान बागबानों के सवाल

  1. नया पावर टिल्लर खरीदने पर सबसिडी के लिए कैसे आवेदन किया जाता है ?

– राजेश कुमार, सोलन

यदि कोई भी किसान-बागबान पॉवर ट्रिलर लेने की सोच रहा है तो इसके लिए सबसिडी का प्रावधान है। उद्यान एवं कृषि विभाग दोनों सबसिडी मुहैया करवाती है। दोनों ही विभागों के अलग-अलग नॉम्ज है। खासतौर पर उद्यान विभाग के सौजन्य से सबसिडी लेने के फायदे अधिक होते हैं, सबसिडी भी अधिक मिलती है। कृषि विभाग की सबसिडी फिक्स है और विभाग द्वारा कुछ फर्में अपरूव की होती हैं, वहां इन्हीं फर्मों से किसान-बागबानों को पॉवर ट्रिलर खरीदना होता है।

  1. फूलगोभी में पत्तों को सफेद कीड़ा लग रहा है। इसके लिए क्या करना चाहिए ?

– कर्ण सिंह, ऊना

अमेडा क्रोप लीड 17.8 पर लीटर एक एमएल का  फूलगोभी पर छिड़काव करें।

आप सवाल करें, मिलेगा हर जवाब

आप हमें व्हाट्सएप पर खेती-बागबानी से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी भेज सकते हैं। किसान-बागबानों के अलावा अगर आप पावर टिल्लर-वीडर विक्रेता हैं या फिर बीज विक्रेता हैं,तो हमसे किसी भी तरह की समस्या शेयर कर सकते हैं।  आपके पास नर्सरी या बागीचा है,तो उससे जुड़ी हर सफलता या समस्या हमसे साझा करें। यही नहीं, कृषि विभाग और सरकार से किसी प्रश्ना का जवाब नहीं मिल रहा तो हमें नीचे दिए नंबरों पर मैसेज और फोन करके बताएं। आपकी हर बात को सरकार और लोगों तक पहुंचाया जाएगा। इससे सरकार को आपकी सफलताओं और समस्याओं को जानने का मौका मिलेगा।

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(01892) 264713, 307700, 94183-30142, 88949-25173

पृष्ठ संयोजन जीवन ऋषि – 98163-24264


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