जंजीरों से बांध कर रखी जाती हैं देवी मडभाखन, दोषियों को देती हैं कड़ी सजा।

By: Mar 12th, 2019 1:53 pm

प्रदेश में देवी-देवताओं के मूल स्थान स्थापित होने के पीछे आलौकिक शक्तियों के साथ-साथ गहरी आस्था है। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में वर्षों से सराज क्षेत्र के देऊल गांव से आ रही श्रीदेवी मडभाखन के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। लक्ष्मी का रूप श्रीदेवी मडभाखन की उत्पति कश्मीर राज्य से सैकड़ों वर्ष पहले हुई है। बागाचुनौगी क्षेत्र के देवबल्ह क्षेत्र में माता पानी के बीचों-बीच (तालाब) में विराजमान हंै। पानी का सर देऊल खड्ड से निकला है, लेकिन पूरा वर्ष देवी पानी के बीचों-बीच विराजमान रहती हैं। जहां प्रदेश के मंडी, कांगड़ा, ऊना, शिमला कुल्लू के अलावा पंजाब, कश्मीर, पठानकोट से भक्त हाजिरी भरने आते हैं। राजाओं के समय में शिवरात्रि महोत्सव सेरी मंच पर होता था। उस समय राजा ने कहा था कि मैं उस देवी-देवता को मानूंगा। जो स्वयं चलकर मेरे पास आए। ऐसा सुनकर देवी स्वयं चलकर राजा के समक्ष प्रकट हुई। कश्मीर से कोई पुजारी आया था। उसके थैले से सोनी की पिंडी आ गई और बागीचुनौगी के पास गिर गई। इसके उपरांत किसी व्यक्ति को हल जोतते हुए सोने की पिंडी मिल गई। जिसे बाद में देवी का रथ बनाकर पूजा करना शुरू कर दिया गया। देवी जब भी शिवरात्रि पर्व में आती हैं, तो देवी को जंजीरों से बाधा जाता है। क्योंकि अगर किसी ने देवी से रात को कुछ बोल दिया, तो देवी मां रात को भाग कर समस्या हल कर देती थी। मूल स्थल पर देवी को मां दुलासन नाम से जाना जाता है। हर शिवरात्रि महोत्सव में देवी मडभाखन ब्यास नदी के किनारे स्थित पंचवक्त्र में ठहरती हैं। देवी मां हर दीन-दुखी की समस्या हल करने में हमेशा तत्पर रहती हैं और दोषियों को कड़ी सजा देती है। निसंतान दंपत्तियों को संतान की प्राप्ति का आशीर्वाद देती हंै। गुर दौलत राम ने बताया कि फागण माह में देवी-मां के दरबार में मेले का आयोजन होता है, जबकि कार्तिक माह में मां का जाग होता है। इस दौरान सैकड़ों भक्त मां के दरबार हाजिरी भरकर आशीवाद लेते हैं।


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